Thursday 26 November 2015

Hadeesi Hadse 184


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हदीसी हादसे 72
बुखारी 1107
"मुहम्मद ने किसी दावत में गोह (गोहटा ) का गोश्त खाया - 
इब्न अब्बास कहते हैं अगर यह हराम होता तो मुहम्मद बयान करते "
*कबीलाई माहौल में हर बात की गुंजाईश है- खाया होगा कोई तअजजुब की बात नहीं। तअजजुब तो इन ज़मीर फ़रोश ओलिमा पर है जो ऐसी हदीसें भी माहौल को देख कर गढ़ते हैं - - -
"मुहम्मद सल ने कभी मांस को चख्खा नहीं . एक बार लोगों ने इसरार किया कि आप गोश्त चखिए ताकि उम्मत को आसान हो कि उनके प्यारे नबी ने भी गोश्त खाया। इस पर सल ने अपनी एक उंगली पर लम्बी परत की पट्टी बाँधी और उंगली को गोश्त के शोरबे में डुबो कर तर किया, फिर पट्टी खोल कर उंगली को चूसा , इस तरह मुसलामानों के लिए गोश्त हलाल किया।"
यह तक़रीर हिदू श्रोताओं के लिए गढ़ी गई जो मेरे कान में आई . 
हैरत का मुक़ाम है कि गोह खाने की गवाही खुद मुहम्मद के चाचा अब्बास देते हैं और मशहूर ज़माना है कि मुहम्मद को बकरे के सीने का गोस्त पसंद था, आज उनको एक शाकाहारी साबित किया जा रहा ई।
 
बुखारी 1219
"अबू हरीरा कहते हैं कि मुहम्मद ने मुझे किसी लश्कर में रवाना किया और कहा कि अगर कुरैश कबीले के दो फलां फलां लोग मिलें तो इनको आग में जला कर मार डालना । मैं रवानगी के वक़्त मुहम्मद से रुखसत के लिए पहुंचा तो उनहोंने अपना फैसला बदलते हुए कहा कि उनको आग से जला कर न मरना , यह सजा तो अल्लाह ही देता है, बस मार देना।"
*मुहम्मद अव्वल दर्जे के मुन्तकिम थे , इस बात की गवाह खुद उनकी बेगम आयशा कहती हैं कि
"सल ने कभी अपने ज़ाती मुआमले का बदला नहीं लिया मगर मुआमला अगर अल्लाह का हो तो अल्लाह के दुश्मन को कभी छोड़ा नहीं 
(बुखारी 1449)
गौर तलब है कि मुहम्मद दर परदा खुद अल्लाह बने हुए हैं, इस बात की गवाह कुरान और हदीसें हैं, अगर अकीदत की ऐनक उतार कर इन का इन का अध्यन किया जाए .
उपरोक्त दोनों नाम मुहम्मद को उस वक़्त के याद हैं जब मक्का में लोग इनका और इनके कुरान का मज़ाक़ उड़ाते थे और बाद में इनको ख़त्म कर देने का फैसला हुवा।
काश कि ये फितना उसी वक़्त मौत के हवाले हो जाता तो मुमकिन है मुसलमान कहे जाने वाली मखलूक आज दुन्या में सुर्ख रु होती।
बुखारी 1220
"मुहम्मद कहते हैं, जब तक हाकिम ख़ुदा की नाफ़रमानी और गुनाहगार होने का हुक्म न दे, इसकी इताअत और फ़रमा बरदारी लाज़िम है . लेकिन जब इनकी ख़िलाफ़ वरज़ी करे तो नाफ़रमानी लाज़िम है ."
*किस ख़ुदा की नाफ़रमानी ?
इन्सानी दर्द ना आशना खुदा की जो कहता हो कि
"कुफ्फार की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर ही शुमार किए जाएँगे , इनको मौत पर कोई गुनाह नहीं।"
इस्लाम ने हर अच्छी बात का इस्लामी करन कर रख्खा है , उस पर अमल करना, परोसे हुए दस्तर ख्वान में नजासत शामिल कर देने की तरह है।
दुन्या की 20%आबादी इंसानियत के ख़िलाफ़, इस्लामियत का शिकार है .



जीम. मोमिन 

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