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हदीसी हादसे 78
बुखारी 1144`
क़रार हदीबिया का ज़िक्र इस से पहले के अबवाब में आ चुका है, यहाँ पर मैं अबूबकर की जुबान दानी को उजागर करना चाहूँगा और मुहम्मद की नियत को भी .
अबुबकर इरवा से कहते हैं
" भाग जा अपने माबूद की शर्म गाह (लिंग) जाकर चूस "
इरवा ने लोगों से दरयाफ्त किया, यह कौन है?
लोगों ने कहा अबुबकर , इरवा नाम सुनकर बोला तेरे कुछ एहसान हम पर हैं वर्ना मैं तुझको तेरे लब ओ लहजे में ही जवाब देता।
इरवा फिर मुहम्मद से मुखातिब हुवा , वह अपनी हर बात पर मुहम्मद की दाढ़ी में हाथ लगा देता, यह देख कर मुगीरा इब्न शोएबः ने कहा
हुज़ूर अक्दस की दाढ़ी से हाथ अलग रख। ये सुन कर उसने लोगों से पूछा कि
ये कौन है?
लोगों ने बतलाया ये मुगीरा इब्न शोएबः है।
इरवा ने कहा " ऐ दगा बाज़ ! क्या मैं तेरी गद्दारी की दफीयः में कोशिश न की थी (मुगीरा का वाकिया यूं हुवा था कि ये एक गिरोह का हमराही बन गया था , फिर इन लोगों को सोते में क़त्ल करके और उनका सारा मॉल लेकर फरार हो गया था .उसके बाद सीधा मुहम्मद के पास पहुंचा और इस शर्त पर इस्लाम क़ुबूल करने की बात की कि वह अपने लूटे हुए मॉल में से उन को कोई हिस्सा न देगा . मुहम्मद को ऐसे लोगों की सख्त ज़रूरत थी जो क़त्ल के हुनर को और मक्र ओ फ़रेब में यकता हो ,गरज़ मुगीरा को उन्हों ने गले लगाया।
इसी हदीस में एक नामी लुटेरे डाकू अबू बसीर का भी ज़िक्र है।
सुलह हदीबिया के तहत मुहम्मद और कुरैश के दरमियान एक मुआहिदा हुआ था कि मक्का और मदीने से जो लोग एक जगह से दूसरे के हद में दाखिल हों उन्हें दोनों फरीक अपने यहाँ से वापस उसके हद में भेज दे।
इसी दौरान अबू बसीर मक्के से मदीना आ गया था। इसे वापस करने के लिए कुरैशियों ने दो शख्स मदीना भेजा , मुहम्मद ने क़रार के मुताबिक अबू बसीर को उनके हवाले कर दिया।
रस्ते में दोनों हकवारों को घता बतला कर अबू बसीर उनकी तलवार ले लेता है और एक को क़त्ल कर के भाग जाता है . वह मदीने पहुँच कर मुहम्मद से मिलता है और कहता है
आपने अपने करार के मुताबिक मुझे मक्कियों के हवाले कर दिया, बस आपकी जिम्मे दारी ख़त्म हुई .
उसी वक़्त दूसरा हक्वारा आ जाता है।
अबू बसीर ने खुद को फिर उसके हवाले करने का मुहम्मद की मंशा देखा तो वहां से भाग खड़ा हुवा , वह साहिले-दरया पहुँचा .
उसकी खबर सुन कर मदीने का एक मुजरिम अबू जिंदाल भी उसके पास पहुँच गया। दोनों ने मिल कर कुरैश क़बीलों को लूटना शुरू किया, तो नौबत यहाँ तक आ पहुंची कि कुरैशियों ने मुहम्मद को इत्तेला किया कि अबू बसीर को बेहतर होगा कि आप अपने पास बुला लें।
इस तरह इस्लाम के सहाबिए किराम इंफ्रादी तौर पर बद किरदार लुटेरे और समाजी मुजरिम हुवा करते थे जिन पर हम दरूद ओ सलाम भेजा करते हैं .
हदीस तवील है जो ग़ैर ज़रूरी है।
बुखारी 1157
किसी ने मुहम्मद से पूछा कि कौन सा काम अफज़ल और बेहतर है? जवाब था जिहाद, अपनी जान और माल के साथ।
इसके बाद?
किसी पहाड़ी घाटी में मसरुफे-इबादत रहना .
*जिहाद जिसमे इंसानी जिंदगी का सफ़ाया , यहाँ तक ही मासूम बच्चों और अबला औरतों को भी मौत के घाट उतार देना , उसके बाद भी उनके माल मता को लूट लेना . उनकी खेती बड़ी में आग लगा के तबाह ओ बर्बाद कर देना .
अली मौला तो इस से भी आगे बढ़ गए थे कि उन्होंने समूची बस्ती को बमय इंसानी जानों के , के हवाले
कर दिया था। उनके चाचा अब्बास ने उनकी इस हरकत की मज़म्मत की कि अली ने बन्दों को वह सजा दी है जो सिर्फ अल्लाह को हक है।
पहाड़ी घटी में मसरूफ ए इबादत रहना कोई ऐसा काम नहीं जिस से मखलूक का कोई भला होता हो। यह महज़ खुद फरेबी है या फिर नाकार्गी . मुहम्मद भी गारे-हिरा में मुराक्बा में जाते थे, ज़हनों में साजिशी मंसूबे बनाते थे जो बिल-आखिर इस्लामी तबाही बन कर पूरी दुन्य के लिए एक अज़ाब साबित हुवा।
जीम. मोमिन