Tuesday 22 October 2013

Hadeesi Hadse 106


मुहम्मद का हौज़ 
मुहम्मद कहते हैं कि उनका हौज़ इतना बड़ा होगा कि सनआ और यमन का जो फ़ासला है , और इसमें पानी पीने वाले कूज़े आसमान में चमकते हुए सितारे के बराबर होंगे ,
(बुख़ारी - - - २०३४)

 मुहम्मद का एक नाजायज़ बेटा लौंडी मारिया से हुवा था , ढाई बरस की उम्र में वह चल बसा, मोहल्ले की औरतें तअना ज़न हुईं कि बुढ़ापे में एक औलाद नरीना हुई , उसे भी न बचा पाए, बनते हैं अल्लाह के रसूल . खिसयाने मुहम्मद ने ज़बान जिलाई कि उन को अल्लाह ने इत्तेला दी कि उसके बदले में तुमहें जन्नत में कौसर नाम का हौज़ एलाट किया गया जिसके निगराँ तुम हुए . मुहम्मद हौज़ की लंबाई चौड़ाई तो एक शहर से दूसरे शहर तक की बतलाई है मगर उसमे पानी पीने के कूज़े तारों के बराबर बतलाया . मुहम्मद के अल्लाह को इस बात का पता नहीं कि तारे अक्सर ज़मीन से कई गुना बड़े होते हैं . इन कूज़ों से पाँच फिटा बन्दा कैसे पानी पिएगा ?
जन्नत में हौज़ की निगरानी करेगे और कुछ लोगों को ऐसा भगाएँगे जैसे पनघट से अनचाहे ऊंटों को भगाया जाता है (एक दूसरी हदीस) 
जन्नत में तो सब मुसलमान ही होंगे , उनसे भी बुगज़ और कीना ? यह मुहम्मद की फितरत थी .
इस्लाम की बुन्याद इन्हीं ऊट पटांग बातों पर राखी हुई है .

ताकि ताक झाँक हो सके 
मुहम्मद ने कहा जन्नत के लोग खिडकियों से एक दूसरे ऐसा तकेंगे जैसे तुम लोग खिडकियों से आसमान के तारों को देखते हो .
(मुलिम - - - किताबुल जन्नत ओ वाशिफ्ता)

जन्नत में कोई काम तो होगा नहीं , जन्नती कितना खाएँगे , कितनी शराब पियेंगे , कितनी अय्याशी करेगे ? इन तमाम चीज़ों से जी ऊब जाएगा तो एक दूसरे के घर ताक झांक करेगे।
मुहम्मद दूसरी हदीस में कहते है कि ताक झाँक करने वाले की आँख फोड़ दो . तुम पर कोई इलज़ाम नहीं। 
यही दुराहा भास् मुसलमानों की फितरत और ईमान बन गए है।  

आँखें फोड़ दो 
मुहम्मद ने कहा कोई तेरे घर झांकता हो तो कंकड़ी मार के उसकी आँखें फोड़ दे , तेरे जिम्मे कोई जुर्म नहीं।
(बुख़ारी - - - २०१७)  

मुहम्मद की शिद्दत पसंदी हर जगह नज़र आती है , चाहे ज़रा सी चोरी पर हाथ काट देना हो या ताक झाँक करने पर आँख फोड़ देना। क्या मुहम्मद इंसानी फितरत को भी समझते थे या सिर्फ पयंबरी।

ग़ैर को बाप बनाना 
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स ग़ैर को अपना बाप बनाएगा , ये जानते हुए कि ग़ैर उसका बाप नहीं है , अल्लाह तअला उस पर जन्नत हराम कर देगा।
(बुख़ारी २०५६)  
इस हदीस का तअल्लुक़ २१वें पारे के ३३वें सूरह अहज़ाब से है जोकि ज़ैद बिन हारसा के सर फोड़ी गई है जिसका मुआमला यह है कि मुहम्मद ने इसे आठ साल की उम्र में गोद लिया था और भरी मह्फ़िल में अपना बेटा बनाया था . इस मासूम ने जवानी तक मुहम्मद को अपना बाप माना . मुहम्मद ने इसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन जैनब से की और फिर उससे अपना जिंसी राबता क़ायम कर लिया था जिसे ज़ैद बिन हारसा ने मुहम्मद और ज़ैनब को रंगे हाथों पकड़ लिया था . मुहम्मद ने ज़ैद को लाख समझाया बुझाया कि वह इसी हालत में अपनी अजवाज कायम रखे , दोनों का काम चलता रहे मगर वह एक न माना . नतीजतन मुहम्मद ने उसके ख़िलाफ़ यह हदीस उगली।
गैर वह जोकि अभी मासूम बच्चा था, कैसे किसी को अपना बाप बना लेगा ? 
खुद मुहम्मद इसके बाप बने थे . जन्नत हराम तो इन जैसे पापियों पर होना चाहिए जो ज़ैद को गोद में उठा कर क़सम खाते हैं कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुवा और मैं इसका बाप . फिर जब वह जवान हुवा तो अपनी रखैल से उसकी शादी कराते हैं।
फिर उस गोद लिए बेटे पर जन्नत हराम करते हैं।  
मुहम्मद की रखैल उम्मे सलीम और उनकी नजायज औलाद अनस कहता है कि ज़ैद के तलाक के बाद जब जैनब की इद्दत पूरी हो गई तो मुहम्मद ने ज़ैद से कहा कि वह खुद अपनी मतलूका को मेरा पैग़ाम दे . ज़ैद राज़ी हो गए . 
जब जैनब के पास पहुँचे तो वह आटे में ख़मीर कर रही थी . उनको देख कर ज़ैद के दिल में उनकी अजमत इतनी बढ़ गई कि नज़र उठा कर इनको देख न सके और कहा आपको रसूलल्लाह ने याद किया है .
(ये कमाल ईमान की बात थी और निहायत सआदत मंदी की कि ज़ैद के दिल में इस ख़याल से कि रसूल अल्लाह ने पैग़ाम भेजा है , इस कद्र अजमत और हैबत इन के दिल में छा गई कि नज़र न उठा सके और अफ़सोस इस वक़्त है लोगों पर कि हदीस ए मुहम्मद की अजमत और बड़ाई पर कुछ भी न ख्याल आया और बेतकल्लुफ़ झूटी तावीलें और यह ख़याल नहीं करते कि यह खास ज़बान वह्यी की तरजुमानी से निकली है जिसकी एक शान है।)  
ज़ैद के मुंह से अनस कहता है ,
गरज़ मैं ने अपनी पीठ मोड़ी और अपनी एडियों के बल लौटा और अर्ज़ किया कि ऐ जैनब ! रसूल अल्लाह ने आपको पैग़ाम भेज है और आपको याद करते हैं और जैनब ने कहा ,
जैनब बोली , मैं कोई काम नहीं करती जब तक मशविरा नहीं ले लेती अपने परवर दिगार से (यानी इस्तिखारा नहीं लेती) और उसी वक़्त वह अपनी नमाज़ की जगह खड़ी हो गईं . 
कुरआन उतरा और रसूल अल्लाह बगैर किसी इज़्न के दाखिल हो गए . 
(आयत) ब्याह दिया हमने जैनब को तुझको ताकि मोमिनों को हर्ज न हो अपने लेपालकों की बीवियों से निकाह करने में , जब वह अपनी हाजत इनसे पूरी कर चुकें, 
और रावी ने देखा रसूल ने लोगों को रोटी गोश्त खूब खिलाया , यहाँ तक कि दिन चढ़ गया . खा पी कर लोग बाहर चले गए और कई लोग रह गए जो घर में बातें करते रहे , बीवियाँ पूछती हैं कि कैसी पाई नई बीवी को - - - 
(मुस्लिम किताबुन-निकाह) 

*मुअम्मद की ज़िन्दगी का सब से बड़ा नाक़ाबिले-फरामोश वक़ेआ है कि उनहोंने अपने गोद लिए हुए और मुंह बोले बेटे की बीवी को अपने हवस का शिकार बनाया जिसे एक दिन बेटे ने मुअम्मद को रंगे हाथों पकड़ा , तब बेटे को समझाया बुझाया कि वह राज़ी हो जाय , ताकि दोनों का काम चलता रहे . जब बेटा न माना तो एलान कर दिया कि जैनब मेरी बीवी है , इसका अक़्द मेरे साथ अर्श पर हुवा था . अल्लाह ने निकाह पढ़ाया था और जिब्रील ने शहादत दी थी।
 मुअम्मद की इस मजमूम हरकत के तहत क़ुरानी आयतें मौक़ूफ़ हुईं बदले में मुसलमानों को नई वाकिफ्यत दी . अल्लाह भी बन्दों की तरह अपनी ग़लती सुधार रहा है।
मुअम्मद के इस अम्ल ए हराम के चलते उसकी उम्मत हर हराम काम को हलाल किए हुए है और पूरी दुन्या में ज़िल्लत की ज़िन्दगी जी रही है। 


जीम. मोमिन 

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