Tuesday 17 September 2013

Hadeesi Hadse 102


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मुंह के बल चलना ?
एक शख्स ने मुहम्मद की कही हुई हदीस पर वजाहत चाही कि 
कयामत के दिन काफिरों को मुंह के बल चलाना क्या होता है ?
मुहम्मद का जवाब था 
जिसने इनको दुन्या में पाँव के बल चलाया , क्या इस बात की कुदरत नहीं रखता कि मुंह के बल चलाए .
(सही मुस्लिम शरह नववी)

 मुंह के बल चलना एक मुहाविरा है , पूछने वाले ने मुहम्मद को चुटकी ली थी कि देखे कितने ज़हीन हैं . जनाब मुहाविरे को अमली जामा पहना रहे हैं और वह भी अल्लाह की कुदरत के हवाले से . अगर अल्लाह काफिरों को मुंह के बल चला सकता है तो इसमें सजा और जज़ा का कोई मुआमला न रहा .
एक देहाती मुहाविरा है चूतडों से घोडा खोलना 
कहीं अल्लाह इस पर भी तो कादिर नहीं है ?
हाथों को कुछ राहत मिले।

 मदीने की खजूरें 
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स सुब्ह उठ कर मदीने की सात खजूरे खा लिया करेगा , उस पर ज़हर या जादू का असर नहीं होगा 
(बुख़ारी १६४३)

* मुहम्मद बार बार जादू के असर को तस्लीम कर रहे है . कुरआन की दो सूरतें ही जादू पर है जिसमे मुहम्मद जादू गरों से अल्लाह की पनाह मंगते हैं . ओलिमा जादू को झूट और कुफ्र करार देते हैं . इस्लाम का यह दोगला पन मुसलामानों को शर्मसार करता है .
इस्लाम ज़िदगी के लिए अधूरा निज़ाम ए हयात है . मुसलमान जब तक इस्लाम से लिपटे रहेंगे जिहालत उनको नहीं छोड़ेगी .
शराब रेशम और बाजा 
मुहम्मद ने कहा कुछ लोग उम्मत में ऐसे होंगे जो शराब रेशम और बाजा को हलाल करार दे देंगे . ऐसे लोग पहाड़ के दमन में रहेंगे . अल्लाह तअला इनमे से कुछ लोगों पर पहाड़ गिरा कर हलाक कर देगा . दूसरों को बन्दर और सुवरों को शक्ल में कर देगा . यह सब क़यामत के करीब होगा .
(बुख़ारी १८७०)  

रेशम क्यों हराम किया मुहम्मद ने , इसके पीछे कोई वजह , कोई फलसफा या कोई दलील नहीं दी है . इन्सान की सदियों पुरानी काविशों का नतीजा है यह नाज़ुक और खूब सूरत तनपोशी रेशम . जद्दो  जिहद में मशगूल दर पर्दा छिपी हुई मखलूक़ी मजदूर के कारनामों का फल है यह रेशम , इन्सान के लिए आँखों को खैरा कर देने वाला नायाब तोहफा है रेशम . किसानों , मजदूरों , दस्तकारों और दुकानदारों के लिए ज़रीया मुआश है रेशम। रेशम को हराम करार देकर तमाम मखलूक को भूख के मुंह में ढकेल रहे है आप .
बाजा इंसानी रूह की गिज़ा है 
शराब वह शय है कि जिसे जन्नत में तोह्फतन परोसा जायगा।  

पहला मुस्लिम हमला 
यहूदियों के खुश हाल क़बीले बनी नुजैर पर मुहम्मद की पहली जंग का एक नमूना था . हमले के लिए एक सोची समझी मंसूबे बंदी की थी .
यहूदियों ने मुहम्मद की दावत की . बस्ती की किसी माकूल इमारत में दावत का एहतेमाम किया . मुहम्मद पहली बार ऐसी खुश हाल बस्ती देख रहे थे और अपने दिमाग में नापाक इरादे की मंसूबा बंदी कर रहे थे कि इस पर हमला किया जा सकता है , समझ में नहीं आ रहा था कि हमले की वजेह क्या बतलाई जाए कि अचानक खाना छोड़ कर उठ खड़े हुए और मदीने की रह पकड़ी . इसे फरमान इलाही कहा . मदीने पहुँच कर एलान किया कि यहूदियों ने इमारत के ऊपर से पत्थर गिर कर मुझे मार देने का खेल रचा था कि मेरे पास अल्लाह की वह्यी आ गई कि भागो यहाँ से . लोगों को भड़का कर बनी नुजैर पर हमला बोलने के लिए तैयार कर लिया और दूसरे दिन बस्ती पर अज़ाब बनकर नाजिल थे .
हमला इतना शदीद था कि मुहम्मद अपना आप खो बैठे और ज़ालिम मूसा का तर्ज़ ए अमल अख्तियार किया यहूदियों को लूटने के बाद उन्हें कब्जे में करके खुद उनके हाथों से उनके घरों में आग लगवाई और उनकी खड़ी फसलें जलवा दीं . उनके बागात के दरख़्त जड़ से कटवा कर ज़मीं दोज़ कर दिए . कुछ साफ़ दिल कुरैश भी मुहम्मद के इस अमल पर तड़प उट्ठे थे कि क्या पेड़ पौदे भी काफ़िर और यहूदी हुवा करते हैं ? जवाब में मुहम्मद का इल्हामी खेल शुरू हो गया कि अल्लाह का हुक्म नाजिल हो गया था .
लूट पाट का ज़्यादः से ज़्यादः हिस्सा खुद मुहम्मद हड़प कर गए यह कहते हुए कि सब अल्लाह और उसके रसूल का हिस्सा है . एक सहाबी लिखता है कि नुजैर के माल ए गनीमत से सबसे पहले मुहम्मद ने अपने नौ बीवियों के घरों के खर्च खराबे का एक साल का इंतज़ाम किया उसके बाद बागात और खेत की आमदनी से अगले सालों का इंतज़ाम किया . जंग के शुर्का अंसारी और मुहाजिर अल्लाह के रसूल का मुंह तकते रह गए .
आज यहूदी अपने बुजुर्गो, बनी नुजैर का बदला अगर मुसलमानों से ले रहे हैं तो गलत क्या है ? दुन्या भर के नादान मुसलमान इस्लामी झंडा लेकर उनके हक में खड़े हो जाते हैं . यही हठ धरमी हर मुसलमान के पूरवजों के साथ हुई है जिसे लाशऊरी तौर पर वह ठीक समझते हैं।

मुकम्मल निज़ाम ए हयात 
एक सहाबी की बीवी मुहम्मद की खिदमत में हजिर हुई , कहा मेरे शौहर ने मुझे तलाक़ ए मुगल्लिज़ा दे दिया था , इसके बाद मैंने दूसरे शख्स से निकाह कर लिया , लेकिन वह किसी काबिल नहीं (यानी नामर्द) .
मुहम्मद ने कहा शायद तू चाहती है कि पहले शौहर से फिर तेरा अक़्द हो जाय ?
उसने कहा जी हाँ !
मुहम्मद ने कहा यह नहीं हो सकता जब तक कि मौजूदा शौहर से तेरी हम बिस्तरी न हो जाय .
(बुख़ारी १८१५) 

खातून की जिंदगी में टेढ़ा मोड़ आ गया है .उसके मौजूदा शौहर के हाथ में है कि कब तक इसको नचाता रहे . ऐसे मामले आज भी कसरत से पाए जाते हैं . शरीफ और बेबस औरत अपनी फितरी जज़्बात से उम्र भर महरूम रहती है और बाग़ी औरतें अन्दरूरी बग़ावत करके समाज को ठोकर मार कर अपना रास्ता खुद बना लेती हैं . शरई क़ानून खड़े खड़े मुंह तकते रह जाते हैं .
कितनी सितम ज़रीफी है कि मुहम्मद कहते है 
"जब तक कि मौजूदा शौहर से तेरी हम बिस्तरी न हो जाय ."
और दूसरा मर्द नामर्द है . 
कहाँ है मुकम्मल निजाम ए हयात ?
जीम. मोमिन 

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