Tuesday 3 September 2013

Hadeesi Hadse 100


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मक्का के ज़लील लोग 

ज़ैद बिन अर्कम कहते हैं कि किसी जंग से हम लोग वापस आ रहे थे कि अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने कहा ,
खुदा की क़सम मदीने पहुँच कर हम बाइज्ज़त लोग ज़लील लोगों को मदीने से निकाल देंगे , इस से पहले इन पर कुछ खर्च मत करो .
यह बात बाद में मुहम्मद के कानों तक पहुँची तो उन्हों ने अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल को बुलवाया और तहक़ीक़  की . वह साफ़ मुकर गया कि ऐसी कोई बात मैंने नहीं की .
ज़ैद कहते हैं हम को बुलवाया गया . मैंने गवाही दी कि अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने यह बात ऐसे ऐसे की है .
अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने मुझे भी झूठा साबित कर दिया और मुहम्मद उसकी बात मान गए . मुझको इसका बहुत ही रंज रहा . बाद में मुझको बुलवाया और एक आयत पढ़ी कि अल्लाह ने तुमको सच्चा ठहराया .
(बुख़ारी १७ ३१)  

मक्कियों की मदीने में हालत जैसी थी यह हदीस गवाह है . मुहम्मद वाटर आफ इंडिया की तरह कुरानी आयतें  अल्लाह से उतरवा लेते . हर वक़्त अल्लाह वाटर आफ इंडिया लिए खड़ा रहता . मुहम्मद अगर सियासत दान होते तो कोई इलज़ाम न था, मगर पैगम्बरी झूट से दुन्या को गुमराह किया है जिसका खाम्याज़ा मुसलमान सदियों से उठाए हुए हैं .
अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल मुहम्मद से पहले मदीने की हुक्मरानी का एक पक्का उम्मीदवार था . इसने जगह जगह पर मुहम्मद से पंगा लिया . बाद मरने के मुहम्मद ने इसे कब्र से निकलवा कर इसके मुंह में थूका .

चश्म दीद गवाह 
मुहम्मद ने कहा अल्लाह तअला ने मिटटी को सनीचर के दिन पैदा किया ,
इतवार को इसमें पहाड़ों को ,
पीर के दिन दरख्तों को ,
मंगल के दिन इस पर काम काज के चीज़ों को , 
बुध को रौशनी को ,
 जुमेरात को इस पर जानवर फ़ैलाए 
जुमा को आदम को असर के बाद पैदा किया 
(किताब मुस्लिम - - -सिफ़ातल्मुन्फकीन)

*तौरेत के सुने सुनाए  किस्से को मुहम्मद सही सही तरतीब भी नहीं दे पाए . उम्मी थे , इन वक़ेआत की खबर इनको किसने दी ? इन चीज़ों के आलावा ज़मीन पर हजारों अश्या का वजूद है जिनकी खोज में हमारे साइंसदान लगे हुए है. 
मुहम्मद की उम्मियत को मुसलमान सच मान कर इस पर यकीन करते है .
आयशा कुँवारी 
एक रोज़ मुहम्मद की कमसिन बीवी आयशा ने मुहम्मद से पूछा कि अगर आप ऐसे जंगल में उतरे हो कि जहाँ पर दो पेड़ हों, एक वह की जिसे जानवरों ने चरा हो , दूसरे वह कि जिसे जानवरों ने मुंह भी न लगाया हो तो आप अपना ऊँट किस दरख्त में बांधेंगे ? 
मुहम्मद ने कहा जिसमे जानवरों ने मुंह न लगाया हो . 
मतलब यह था कि आयशा मुहम्मद की बीवियों में अकेली कुँवारी थीं .
(बुख़ारी १७७०)

* ला शऊरी तौर पर आयशा ने मुहम्मद को ऊँट कह ही दिया है जो उसको सात साल की उम्र में चर गया . वह पूरी दरख़्त भी नहीं बन पाई थी की १ ८ साल की उम्र में बेवा हो गई . एक ६३ साल के शौहर की बेवा .

हर मौक़े की दुआ 
मुहम्मद के चचा ज़ाद भाई इब्न अब्बास बतलाते हैं कि मुहम्मद ने एक दुआ बतलाई जिसको कि बीवी से क़ुर्बत से क़ब्ल अगर पढ़ ली जाए तो होने वाली औलाद शैतान के बुरे असरों से महफूज़ हो जाती है .
(बुख़ारी १७९३) 

वक़्त शैतानी भी शैतान से हिफाज़त ?
 अरबियों की खू  है की वह हर वक़्त दुआ किया करे ताकि उनका अल्लाह उनको हर अच्छे बुरे काम में मदद गार रहे .

बग़ैर इजाज़त 
मुहम्मद ने कहा बग़ैर इजाज़त किसी बेवा से अक़्द नहीं करना चाहिए . इसी तरह कुँवारी से भी इजाज़त लेनी चाहिए .
लोगों ने पूछा किस तरह ?
कहा इसकी ख़ामोशी ही इसकी इजाज़त है .
(मुस्लिम - - - किताबुल निकाह +बुख़ारी १७८६)

क्या निकाह बग़ैर इजाज़त बिल जब्र भी होता था ? आजके माहौल में यह बात मुनासिब नहीं . शादी तो फरीकैन की रज़ा मंदी से होती है . हाँ अगर कभी कसीदगी का महल हो तो कुवांरी की रज़ा मंदी ज़रूरी हो जाती है .

पाबन्दियाँ 
मुहम्मद ने कहा शौहर की इजाज़त के बग़ैर रोज़ा रखना , किसी को अन्दर आने की इजाज़त देना या कोई चीज़ इसके इजाज़त के बग़ैर सर्फ़ करना जायज़ नहीं, क्योंकि निस्फ़ उज्र मर्द को भी दिया जाता है .
(बुख़ारी १७९४)

औरतों को इस्लाम में कहीं पर कोई आज़ादी नहीं है , भले ही वह छोटे छोटे खानगी मुआमले ही क्यों न हों , यहाँ तक कि उसकी मज़हबी आज़ादी भी मरदों के हाथ में है . मर्द पर मर्दानगी ग़ालिब हुई तो उसको रोज़ा तोड़ देना भी लाजिम होगा . इसमें मुसलमान मर्दों का आज भी फायदा है . इसी लिए वह इसमें कोई बदलाव नहीं चाहते। 
डेनमार्क की एक मैगजीन में कार्टून आया, किसी लेटी हुई औरत की नंगी पीठ पर कुरानी आयत नक्श थी . पूरी दुन्या के मुसलमानों ने जमकर इसके खिलाफ मुज़ाहिरा किया , पुतले जलाए गए मगर किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि लिखी हुई आयत क्या थी , उसका मतलब क्या था . आयत थी - -- 
"औरतें तुम्हारी खेतियाँ हैं , इसमें चाहे जहाँ से जाओ "
शायद इसे जानकार भी मुसलामानों में अपनी माँ बहन और बेटियों के लिए गैरत न जगे .
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जीम. मोमिन 

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