Tuesday 10 September 2013

Hadeesi Hadse 101


शहजादी दुखतर ए जॉन पर डोरे डाले 
अबू सईद से रिवायत है कि जब दुखतर ए जॉन को मुहम्मद की खिदमत में दाखिल किया गया तो उसकी दाया भी उसके साथ में थी . मुहम्मद ने उससे कहा ,
तू अपने नफस को मुझको हिबा कर दे 
उसने कहा कहीं शहज़ादियां भी अपनी रगबत से अपने नफस को हिबा किया करती है ?
मुहम्मद ने उसका गुस्सा दबाने के लिए उसकी तरफ हाथ बढाया .
उसने कहा मैं आपसे अल्लाह की पनाह मांगती हूँ .
मुहम्मद ने कहा तूने बहुत बड़ी ज़ात की पनाह माँगी है . 
फिर मुहम्मद मेरे पास आए और मुझ से कहा इसको सफ़ैद कतान के दो थान देकर इसके खानदान की तरफ रवाना कर दो 
(बुख़ारी १८१३-१४)  

शहजादी के हुस्न पर मुअहम्मद की नियत डांवां डोल हो गई थी . उसके साथ पेश कदमी भी की . उसके जाह ओ जलाल की ताब न लाकर पीछे हो गए . अगर वह अपने नफस को मुहम्मद के हवाले कर देती तो मुहम्मद उसके साथ जिना कारी करते , इस एलान के साथ कि अल्लाह ने इनके सारे अगले और पिछले गुनाह मुआफ़ किए हुए है .
अगर बिल जब्र ये हादसा हो गया होता तो ईसाई बादशाह से जंग भी खड़ी हो सकती थी . अपने ज़िल्लत आमोज अंजाम को देखते हुए मुहम्मद ने अपने नफस पर काबू रक्खा .
  
देवर तो मौत है 
मुहम्मद कहते हैं औरतों में जाने से निहायत परहेज़ किया करो . किसी ने पूछा ,
क्या देवर अपनी भाभी के पास जा सकता है ?
कहा देवर तो मौत ही है .
यानी इस से सब से बड़ा अंदेशा है .
{बुख़ारी १८०७)
*मुहम्मद माँ बाप भाई बहेन जैसे हर रिश्ते से महरूम थे , लिहाज़ा उनकी सोच इस दर्ज़ा घटिया थी . उनका कोई छोटा भाई होता तो हदीसें ऐसी न हुवा करतीं .
मुतअ (अस्थाई निकाह) 
एक सहाबी कहते हैं कि मुहम्मद ने हमें मुतअ करने की इजाज़त दी तो मैं और मेरे एक साथी औरत की तलाश में निकले . कबीला ए बनी आमिर की एक औरत को देखा जो जवान ऊँटनी पर सवार थी और उसकी गर्दन सुराही दार थी .
मैंने खुद को पेश किया , बोली क्या दोगे ?
मैं ने कहा मेरी चादर हाज़िर है . 
मेरे साथी ने कहा मैं और मेरी चादर हाज़िर है .
उसकी चादर मेरी चादर से बेहतर थी मगर मैं उससे बेह्तर और जवान था 
दोनों का मुआज़ना करने के बाद उसने मुझसे कहा , तू और तेरी चादर मुझे अच्छी लगी .
वह मेरे पास तीन दिन तक रही . 
उसके बाद मुहम्मद ने कहा जिनके पास ऐसी औरतें हैं वह उन्हें छोड़ दें . 
(मुस्लिम - - - किताबुल निकाह)
*मुतअ का तारीका उस वक़्त का कबीलाई कानून था जो आज तक मुस्लिम समाज में कहीं कहीं लुका छिपी करते हुए रायज है . औरत और मर्द में बिना किसी गवाह के कुछ लेन देन के बाद निश्चित समय के लिए यह शादी हो जाती है . इसी को ओशो आश्रम में बिना रोक टोक ऐड रहित के शर्त पर मान्यता मिली हुई है .

अल्लाह साबिर ?
मुहम्मद ने कहा अल्लाह तअला से ज्यादा कोई ईज़ा पर सब्र करने वाला नहीं .
(मुस्लिम - - - शरह नववी)
अल्लाह अपने ऊपर पहुँचाई ईज़ा पर सब्र करे जब कि क़ह्हार खुद है . वह बहुत बड़ा मुन्तक़िम भी है . यह दोहरा मेयार मुहम्मदी अल्लाह का ही हो सकता है .
मुहम्मद अपनी कामयाबी पर कई जगह अल्लाह नज़र आते हैं , कई जगह उनको बर्दाश्त भी करना पड़ा था . उन्हीं अवजान का मीजान करने के बाद अपनी रूदाद बयां कर रहे हैं .

 पहले अपने घर भरे 
एक सहाबी कहते हैं कि मुहम्मद बनी नुज़ैर के बागों को फरोख्त करके अपने अह्ल के वास्ते एक साल का सामान मुहय्या करते।
(बुख़ारी १८२५)

इस हदीस का सूरह हश्र से तअल्लुक़ है . मुहम्मद ने अन्सारियों को मुनज्ज़म करके सबसे पहले बनी नुजैर पर हमला किया था जिसमे बस्ती बनी नुजैर को लूट पाट करके तबाह ओ बर्बाद कर दिया था . बाग़ात पर क़ब्ज़ा कर लिया था . लूट के माल को लगभग सब का सब खुद पी गए थे। जंग के शुर्का ने काफी हंगामा आराई किया था तो बड़ी बेशर्मी से अपने मफ्रूज़ा अल्लाह की कुरानी आयतें उतरवा लीं थीं . इस बात को अबुल खत्ताब ने तस्दीक किया कि मुहम्मद ने सब से पहले अपनी नव अदद बीवियों के घरों के सालाना अख्राजात का इंतज़ाम किया .
मुहम्मद की असलियत को समझने के लिए उस वक़्त के मुआशी हालात को समझने की ज़रुरत है . उस वक़्त अरबों का ज़रीआ मुआश बेहद मुश्किल हुवा करता था . अना, ज़मीर और खुद्दारी नाम की कोई चीज़ बाक़ी नहीं रह गई थी .मुहम्मद लुटेरे गिरोह के मुअज्ज़िज़  ही नहीं , मुक़द्दस भी बन गए थे . इनको दिल से नहीं , बेदिली से ही सही , अल्लाह का रसूल मान लेना अवाम की मजबूरी थी .

जीम. मोमिन 

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