Tuesday 29 October 2013

Hadeesi Hadse 107




जीम. मोमिन 
काफूरी मेदा 
मुहम्मद कहते हैं,
जन्नत में लोग खाएँगे पिएँगे , न पाखाना करेगे न पेशाब करेंगे , न थूकेंगे न नाक छिन्केंगे . लोगों ने पूछा ,
तब खाना कहाँ जाएगा ?
कहा एक डकार आएगी और पसीना होगा , इसमें मुश्क की खुशबू होगी , बस डकार और पसीने से खाना तहलील हो जाएगा और तस्बीह और तहमीद का इनको इल्हाम होगा .
(मुस्लिम - - - किताबुत-तौबा)

* पाखाने और पेशाब की तरह ही हैं मुहम्मद की यह बातें गलीज़ हैं क्योंकि झूट सबसे बड़ी गलाज़त है . अरब की अज़ीम फ़िक्र को मिटा कर इस्लाम उस पर झूट का मुलम्मा फेर दिया .

नेक बन्दा 
एक बार मुहम्मद  ने एक शराबी पर कोड़े लगवाए जो कि अक्सर उनको हंसाया करता था . कोड़े खाकर फिर वह मुहम्मद के सामने हाज़िर हो गया . उस पर लोगों ने लानत मलामत की , मुहम्मद ने लोगों को रोका ,
खबरदार , मैं इसको जनता हूँ , यह अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत करने वाला नेक बन्दा है।
(बुख़ारी - - - २ ० ५ ८)
शराबी तो अकसर अल्लाह के नेक बन्दे ही होते हैं . नमाजियों और रोज़ दारों से कुजा बेहतर . अली के दो ऊंटों को शराब के नशे में हमज़ा ने माशूक के कहने पर ज़िबह कर दिया था , बस उसी दिन मुहम्मद ने शराब को हराम क़रार दे दिया था , इस हसीन  तोहफ़े से मुसलमान महरूम हो गए।

बुशरात 
मुहम्मद ने कहा नबूवत ख़त्म हुई , सिर्फ़ बुशरात बाक़ी है .
लोगों ने पूछा , यह बुशरात क्या है ?
बोले , मुझको ख़्वाब में देखना गोया जागने में मुझे देखना क्योंकि शैतान मेरी शक्ल में नमूदार हो नहीं सकता।
(बुख़ारी २ ० ७ ७ )  
मुहम्मद के गिर्द अक्सर जाहिलों की जमघट होती , पढ़े लिखे उनसे दूर ही रहते, वह हर उस लफ्ज़ का मतलब पूछते जो मुहम्मद गढ़ते , लफ्ज़ में मनमानी करके मानी भरते जो उनकी पैगम्बरी को चमका सके .
 सानेहा यह है कि मुसलमानों में मुहम्मद के गढ़े हुए मानी ही रायज हैं . बुशरात के लुग्वी मानी हैं खुश खबरी . इस्लाम के मुताबिक़ इसके माने हो गए हैं "मुहम्मद को ख्वाब में देखना"
कठ मुल्लाई कहती है जिसने मुहम्मद को ख़्वाब में देखा उस पर दोज़ख हराम हुई . किस कद्र मुसलमानों की घेरा बंदी की गई है . 

नंगे नागाओं की भीड़ 
आयशा कहती हैं कि उनके शौहर ने कहा ,
क़यामत के रोज़ लोग हश्र के लिए नंगे पाँव जाएँगे ,
नंगे बदन होंगे , बिना खतना किए .
मैंने मुहम्मद से पूछा मर्द औरत एक साथ होंगे ?
तो क्या एक दूसरे को देखेंगे नहीं ?
कहा आयशा ! वहाँ की मुसीबत ऐसी सख्त होगी कि कोई किसी को देखेगा नहीं।
(मुस्लिम किताबुल जन्नत व् सिफता)

अल्लहड़ आयशा की शोखी को बुड्ढा शौहर टाल गया .
रोमांस की जगह मुहम्मद शोख आयशा से इसी किस्म की बातें करके उसे बहलाए और दहलाए रहते।

हुक्म बरदार रहो 
मुहम्मद कहते हैं ,
हाकिम अगर कोई तकलीफ़ पहुँचाए तो सब्र करना चाहिए ,
नाफरमान जाहिल्यत की मौत मरेगा।
(बुख़ारी २ ० ८ ४ )
मुहम्मद ठीक ही कहते हैं , उनके नाती हुसैन ने नाफ़रमानी की , कुत्ते की मौत मारे गए . सिर्फ सर बचा . हसन ने सब्र किया अय्याशी की दुन्या में वसीक़े के साथ आबाद रहे .
मुहम्मद की हर बात अल्लाह का कलाम या रसूल की हदीस बनी हुई मुसलामानों को जिहालत में मुब्तिला किए हुए है।
मुसलमानों को चाहिए कि वह अपने ईमान ए बोसीदः को बदलें . जिसे वह ईमान मान बैठे हैं वह दर अस्ल बे ईमानी और गुमराही है।
इस्लाम को वह तस्लीम किए हुए हैं जो ईमान तो है ही नहीं .
ईमान बोसीदा होता है न फरसूदा , वह तो हमेशा ताज़ा होता है .
मुसलमानो ! अपने दिमाग़ के बंद दरीचे को खोलें और ईमान ए ताज़ा तर दाख़िल होने दें। 

 फरेबी सदाएं 
मुअम्मद ने कहा 
पुकारेगा पुकारने वाला ,
जन्नत के लोगों को ,
मुक़ररर तुम्हारे लिए यह ठहर चुका है कि तुम तंदरुस्त हो गए ,
कभी बीमार न पड़ोगे और मुक़ररर तुम ज़िन्दा हो गए ,
कभी मरोगे नहीं , मुक़ररर तुम जवान हो गए ,
कभी तुम बूढ़े नहीं होगे और मुक़ररर तुम ऐश और चैन में रहोगे ,
कभी रंज नहीं होगा और यही मतलब है खुदा के इस कौल का ,
कि बहिश्त वाले यह आवाज़ दिए जाएँगे कि यह तुम्हारी बहिश्त है ,
जिसके तुम वारिस हो गए , इस लिए कि तुम नेक आमाल किया करते थे .
(मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत व सिफ्ता)  

मुहम्मद के यह छलावे मुसलमानों का यकीन और तकदीर बन गए हैं . इन्हीं फरेबों में मुब्तिला सदियों से दीगर कौमों की गुलामी में पड़े हुए हैं .

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