Tuesday 15 October 2013

Hadeesi Hadse 105


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ज़बान और तानासुल पर काबू नहीं 
मुहम्मद ने कहा जो शख्स मेरे लिए दो चीजों का जामिन हो जाए , एक दोनों जबड़ों के बीच ज़बान है , दूसरे दोनों टांगों के बीच जो शर्म गाह है , मैं उसके वास्ते जन्नत का ज़ामिन दार हो जाऊँगा।
(बुखारी २००७)   

मुहम्मद ने इस हदीस में अपनी फितरत की तर्जुमानी , ला शऊरी तौर पर बड़ी ईमानदारी के साथ की है . इनकी ज़बान खामोश रहना तो जानती ही नहीं थी . कुरआन बेसिर पैर की बातों का लामत्नाही सिलसिला है , इनकी ही ज़बान है . कुरआन जितना महफूज़ है , इससे ज्यादह उस्मान गनी ने इसे मुरत्तब करते वक़्त रद्दी की टोकरी में डाल  दिया था .
 इसके बाद मुहम्मद ने बेलगाम और जिहालत से भरपूर हदीसें बकी हैं।
बेशक इनकी ज़बान में कोई लगाम लगा देता तो अज खुद बेहिश्ती होता , मुहम्मद की कोई ज़मानत की ज़रुरत न होती।
दूसरा मुहम्मद का जिन्सी मुआमला है . 
माँ की उम्र की बेवा से शादी की जो मालदार भी थी और बाअसर भी . इस शादी में निकम्मे और फक्कड़ इंसान की कोई अजमत नहीं थी बल्कि इसमें उसकी लालच और तन आसानी की नियत छिपी हुई थी . 
खदीजा की मौत के बाद आज़ाद हुए तो अपनी अय्याश तबअ में नमूदार हुए , बयक वक़्त दो दो शादियाँ कीं . एक जवान से और दूसरी नादान कमसिन सात साल की बच्ची आयशा से , जिससे बूढ़े ने जिंसी बेराह रवी कायम किया . इसे इंसानियत कभी मुआफ़ नहीं कर सकती . 
इसके बाद भी मुहम्मद ने नव शादियाँ मज़ीद कीं , इनके अलावा लौंडियाँ बांदियां और रखैल हुवा करती थीं . उनहोंने कई मुताह किए , जहाँ मौक़ा मिला मुंह मारा जिसकी ओलिमा पर्दा पोशी करते फिरते हैं .
मुहम्मद ने अल्लाह से लातादाद शादियों की छूट ले रखी थी , इस रिआयत के लिए अपने ऊपर कुरानी आयत भी उतरवा लिया था कि दुन्या की कोई भी मुसलमान औरत इनकी मर्ज़ी के बाद इनके अक़्द में आ सकती है . अपने लिए मुहम्मद ने अपनी भांजियां और भातीजियाँ भी जायज़ करा रख्खी थीं , शुक्र है कि इनका सगा भाई बहन कोई नहीं था।
मुहम्मद की जिन्स परस्ती इससे भी आगे जाती है जो नागुफ्तनी है।
सच मुच वह जन्नत का मुस्तहक होता जो मुहम्मद की शर्मगाह पर काबू पाता।   

हदीसी ड्रामा 
अल्लाह कहता है - - - "ऐ जन्नतियो !
जन्नती कहते हैं  - - -  "ऐ रब ! हम हाज़िर हैं तेरी खिदमत में और सब                                         भलाई तेरे हाथों में है , पाक परवर दिगार "
अल्लाह कहता है - - - "तुम राज़ी हुए ?"
जन्नती कहते हैं  - - - "हम कैसे राज़ी न होंगे . हमको तो तूने वह दिया है                                     कि इतना अपनी मखलूक में किसी को न दिया।"
 अल्लाह कहता है - - - "क्या मैं तुमको इससे भी अच्छी चीज़ दूं ?"
जन्नती कहते हैं  - - - " दे रब ! इससे अच्छी कौन सी चीज़ है ?"
अल्लाह कहता है - - - '' मैं ने तुम पर अपनी रजा मंदी उतार दी. अब इसके                                  बाद तुम पर कभी गुस्सा नहीं करूंगा।" 
(मुस्लिम - - - शिद्दत ओ तईमहा)

इस किस्म की बातें मुसलमानों की ईमान बन चुकी हैं , कौम को कैसे वक़्त के साथ जोड़ा जा सकता है कि अजखुद अफीम की आदी बनी बैठी है .कोई चीनी इन्कलाब ही इनको बेदार कर सकता है , हिंदुत्व के पाखण्ड के दोश बदोश इस्लाम मज़बूत ही होता जाएगा . दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। 

  बालाम के कलेजे से जन्नतियों की ज्याफ़त 
मुहम्मद कुछ लोगों के बीच बैठे हदीस बयान कर रहे थे कि क़यामत के दिन ज़मीन रोटी की तरह होगी . अल्लाह तअला इसे अपनी दस्त ए कुदरत में लेकर इस तरह उलट पलट करेगा जैसे तुम में से लोग रोटी को सेंकने के लिए करते हैं।
इसी बीच एक यहूदी मुहम्मद की हदीस में दख्ल अन्दाजी करते हुए कहने लगा ,
मैं बतलाऊँ कि अहले जन्नत की मेहमानी किस चीज़ से होगी ?
क़यामत के दिन ज़मीन रोटी की तरह होगी , अहले जन्नत का सालन भी बतलाए देता हूँ , मछली और बालाम होगा .
लोगों ने पूछा यह बालाम क्या बला है ?
उसने कहा यह बैल है जिसके जिगर का एक टुकड़ा ही सत्तर हज़ार लोगों के लिए काफी होगा।
यह सुन कर मुहम्मद को इतनी हंसी आई कि इनकी केचुलियाँ नमूदार हो गईं।
(बुख़ारी - - - २०२०) 

अल्लाह का कलाम हो या मुहम्मद की हदीस , इन्हें सुन कर ऐसा ही मजाक बनता था जो सामने पेश है।
सुनते हैं एक जमाअत अहले हदीस हुवा करती है जिसने हदीस को कुरान से पहले मुअत्बर करार दिया है , ख़त्म कुरआन की तरह इनमें ख़त्म बुख़ारी शरीफ का जश्न मनाया जाता है . इनके शिद्दत का यह आलम है तो इनकी अहलियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है . मैंने इन मुहम्मदी दीवानों के मुंह से सुना है ,
मुहम्मद की लगजिशों की जवाब दही अल्लाह की होगी क्योंकि अल्लाह के हुक्म के बगैर कुछ नहीं हो सकता।
इन दीवानों को अल्लाह अक्ल ए सलीम अता करे।
मैं अगर इनसे पूछूं कि क्या मेरी दहरियत अल्लाह के हुक्म के बगैर है ???
अल्लाह कुरआन में बार बार कहता है कि उसे तमस्खुर (मजाक ) पसंद नहीं मगर यहूदी की बर्जस्तगी ने मुहम्मद को भी गुदगुदा दिया , ऐसा हँसे कि उनकी केचुलियाँ नमूदार हो गईं . मुहम्मद को हंसी अपने उस पहाड़ जैसे झूट पर आई जो उनकी तहरीक थी .
 देखिए  उनकी उम्मत को उन पर और उनके अल्लाह पर कब हंसी आती है। 

जीम. मोमिन 

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