Tuesday 1 October 2013

Hadeesi Hadse 104


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मुगीरा इब्न शअबा 
इन हदीस निगारों में कैसे कैसे लोग थे ? सहाबा ए किराम में कैसी कैसी हस्तियाँ थीं ? जान कर तुमको हैरत होगी . इन्हीं में एक मुहम्मद के चहीते और जांबाज़ सहाबी हज़रात मुगीरा इब्न शअबा हुवा करते थे . इनकी दगाबाजी का मुआमला यह था कि यह हज़रात दौरान सफ़र एक गिरोह के हमराही बन गए थे . पहले अपने हुस्न इखलाक से गिरोह का एतमाद हासिल किया फिर रात को मौक़ा पाकर इनको क़त्ल कर दिया और इनका सारा माल ओ असबाब लेकर फरार हो गए . 
मुगीरा इब्न शअबा इस बड़े जुर्म के बाद मज़बूत पनाह चाहता था जो मुहम्मद के खेमे में इसे मिली . इसने मुहम्मद को तमाम रूदाद साफ साफ सुना दिया और इस शर्त पर इस्लाम कुबूल किया कि इसके लूटे हुए माल से मुहम्मद का कोई लेना देना नहीं होगा .. मुहम्मद को ऐसे बहादुर हत्यारे की तलाश हुवा करती थी . मुगीरा इब्न शअबा ने कालिमा पढ़ा और मुसलमान हो गया।
इसी मुगीरा इब्न शअबा को मुहम्मद के मरने के बाद दूसरे खलीफा उमर ने चालीस हज़ार फ़ौज का सर बराह बना कर कसरा (ईरान) पर हमला करने के लिए भेजा . ईरानी फौजी कमांडर से इस जाहिल की दिल चस्प गुफ्तुगू आप हदीस नं १२८९में देख सकते हैं।  

मुहम्मद के आकथू 
 ज़िक्र है मुहम्मद उमरे के सफ़र थे कि राह में कुछ कुरैश खेमा जन मिले . दोनों को एक दुसरे से खदशा महसूस हुवा। इसी सिलसिले में कुरैश के लोगों ने इरवा नाम के शख्स को मुहम्मद की टोली का जायजा लेने भेजा . इरवा और मुहम्मदी टोली के दरमियान गुफ्तुगू तकरार में बदल गई . इसी बीच इरवा ने देखा जब मुहम्मद थूकते हैं तो कोई न कोई उनका साथी थूक को हाथो हाथ लेकर थूक को अपने चेहरे और जिस्म पर मल लेता है . 
(बुखारी ११४४)

*इस घिनावनी अकीदत या मुआशी मजबूरी को क्या कहा जा सकता है . इन्हीं लोगों को आम मुसलमान सहाबी यानी मुहम्मद कालीन कहते हैं और बड़े एहतराम के साथ इनका नाम लेते हैं।  

लाल बुझक्कड़ 
मुहम्मद कहते हैं क़यामत के दिन सूरज ज़मीन से इतना करीब , यहाँ तक कि एक मील करीब आ जायगा , तो लोग अपने आमाल के मुवाफिक पसीने में डूबे होंगे . कोई तो टुख्नों तक डूबा होगा , कोई घुटनों तक , कोई इज़ार बंद बाँधने की जगह तक . किसी को पसीने की लगाम होगी यानी मुंह तक .
( मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत ओ सिफ़्ता )

*मुहम्मद के दीवानों और पागलो !
इस हदीस को पढ़कर अंदाज़ा लगा सकते हो कि तुम्हारे मुहम्मद पैगम्बर थे या लाल बुझक्कड़ या तुम भी मुहम्मद की तरह अक्ल के पैदल हो ? 
पसीना मानिंद ओस होता है , हवा के झोके में उड़ जाता है , न बहता है न ही नदी और तालाब बनता है . सूरज हमसे करोडो मील दूर है . इस हालत में हम उसकी गर्मी से झुलस जाते हैं . इसकी लपटें लाखों किलो मीटर दूर तक फैलती हैं और लाल बुझक्कड़ कहते हैं कि उसका फासला सरों से एक मील रह जायगा , नतीजतन पसीने की दरया बह जायगी , जो इंसानों के जिस्म से निकलेगा , जिस्म जो दोज़ख की आग में जलते रहने के लिए सही सलामत बचा रहेगा .
यह मुसलमान कहे जाने वाली मखलूक कब तक बाकी बचा रहेगा ?

लाफ़ानी मौत 
मुहम्मद कहते हैं जो शख्स जिस तरह से खुद कुशी करता है , बोज़ख में इस पर वैसा ही रद्द-अमल होता है . पहाड़ से कूद कर मरा होगा तो दोझख में उसी अंदाज़ से गिरता रहेगा . ज़हर पीकर खुद कुशी की है तो दोज़ख में ज़हर ही पीता रहेगा . जिस हथियार को भोंक कर ख़ुद कुशी की होगी , वही हथियार दोज़ख में खुद को भोंकता रहेगा .
(बुख़ारी १९१७)

*फ़िल्मी दुन्या के लिए बहतरीन मौक़ा है कि इस हदीस को फिल्माएं और ऐसे नज़ारे दर्शकों को दें कि दोज़खी मुसलमान क्या क्या नज़ारे पेश करते हैं। 
खून बेसबब
मुहम्मद ने कहा क़सम खुद कि जिसके कब्जे में मेरी जान है, एक ज़माना आएगा कि क़त्ल करने वाला न जानेगा कि इसने क़त्ल क्यों किया और मकतूल न जानेगा कि वह क़त्ल क्यों किया जा रहा है .
(मुस्लिम - - - किताबुल फितन अशरातुल साइता )

 वह ज़माना तो आप के दफन होते ही आ गया . आपकी चाहीती बीवी आयशा और निखट्टू दामाद अली के दरमियान जंग ए जमल हुई जिसमे ताज़े ताज़े आपकी उम्मत के एक लाख मुसलमान मारे गए . जिसमे मारने वालों को पता था वह सामने वाले को इस्लाम क़ुबूल करने की सजा दे रहा है और मरने वाला भी समझ रहा था की वह इस्लाम कुबूल करने के जुर्म में मारे जा रहा है .
आज चौदा सौ सालों से मुसलमानों में आपसी जंगें हो रही हैं और एक दूसरे को इस्लाम में रहने की सजा दे रहे हैं .

मुर्दे की गवाही 
मुहम्मद कहते हैं बन्दा जब कब्र में रखा जाता है तो अपने साथियों की जूतियों की आवाज़ सुनता है , तब इसके पास दो फ़रिश्ते आते हैं और उसे उठा कर बिठा देते हैं और पूछते हैं कि तू मुहम्मद के बारे में क्या जानता है ? मोमिन कहता है मैं गवाही देता हूँ कि वह अल्लाह के बन्दे और अल्लाह के रसूल थे `अल्लाह तअला अपनी रहमत भेजे उन पर और सलाम . तो अपना ठिकाना देख जहन्नम में अल्लाह तअला ने तुझको जन्नत दिया . इसकी कब्र सत्तर हाथ चौड़ी हो जाती है और सबजी से भर जाती है , क़यामत तक .
( मुस्लिम - - - किताबुल जन्नत ओ सिफ़्ता )

 यह हदीस सब से पहले मुहम्मद ने अपनी साली इस्मा पर आजमाई थी उसके बाद आम लोगों से बतलाना शुरू किया . काश कि इस पर यकीन न करके मुहम्मद पर सवालों के बौछार लगा कर उन्हें नंगा कर देती कि जो आपसे पहले मरे वह आपकी गवाही कैसे देते?
 या हमारी झूटी गवाही को फ़रिश्ते मान जाते कि वह बिलकुल गधे होते हैं ?
मैं ने कब देखा है कि अल्लाह तुमको अपना रसूल बना रहा है ?


जीम. मोमिन 

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