Tuesday 24 September 2013

Hadeesi Hadsa 103


छू मंतर को भी नुक़ाम 
मुहम्मद की एक बीवी उम्म सलमा कहती हैं मुहम्मद ने ज़हर उतारने के लिए मंतर की इजाज़त दी . कहती हैं कि उनके घर में एक लड़की को देखा जिसका रंग ज़हर के असर से सियाह हो रहा था , बोले लड़की को नज़र लग गई है , इसके वास्ते मंतर किया जाए .
(बुख़ारी १९०९-१ ०-१ १) 
कुफ्र और शिर्क कहाँ इससे हट कर है , जब कि इस्लाम का पैगाम इससे हटकर है . इस्लाम की रू से मुहम्मद बुनयादी तौर पर खुद काफ़िर ओ मुशरिक थे.

अज़ीयत पसंद 
मुहम्मद कहते हैं मुसलामानों को जो रंज ओ अलम , ग़म और तकलीफ़ होती है , यहाँ तक कि कांटा भी लग जाता है तो इसके एवज़ में अल्लाह उसके गुनाह मुआफ़ कर देता है . अल्लाह मुसलमानों की बेहतरी चाहता है , तभी उसको मुसीबत में डालता है।
(१८८५-८६-८७)
मुहम्मद ने जो इस्लाम के बीज बोए है उनके पेड़ में मुसीबत के फल ही फलेंगे . मुहम्मद इंसानी नफ़्सियात का फ़ायदा हासिल कर रहे हैं कि मुसलमान अज़ीयत पसंद बने रहें , बिना चूं चरा किए हुए उनके जेहादी मुसीबतों को झेलते रहें . उनकी कबीलाई नस्लें हुक्मरान बन कर ऐश करती रहें और अवाम रूखी सूखी खाकर भी खुश रहे कि आक़्बत में वह नफे में जा रहा है . 
खिलाफ़त अबुबकर को 
एक दिन आयशा के सर में दर्द था , वह कराह रही थीं कि हाय हाय मेरा सर !हाय हाय मेरा सर !!
मुहम्मद ने कहा तुम घबरा क्यों रही हो ? मेरे सामने मर गईं तो मैं तुम्हारे लिए दुआए इस्तग्फ़ार करूँगा .
आयशा ने कहा मैं खूब समझती हूँ कि मैं मर जो गई तो किसी को दुल्हन बना कर बैठोगे .
मुहम्मद ने कहा तुम अपने आपको छोड़ो , मैंने सोचा है अबुबकर और उनके बेटे को बुला कर उनके नाम ख़िलाफ़त की वसीयत कर दूँ लेकिन फिर ये ख़याल करके कि अल्लाह खुद अबुबकर के अलावा किसी के लिए खिलाफत पसंद नहीं करेगा . वह इनको ख़लीफा बना देगा . लोग किसी दूसरे की ख़िलाफ़त पर राज़ी नहीं होंगे .
(बुख़ारी १८९२) 
बेशक अबुबकर के आलावा किसी को ख़िलाफ़त का हक पहुँचता भी नहीं . तन मन धन से चाहे मुहम्मद की मदद जिसने भी की हो मगर ज़मीर को बेचकर मुहम्मद की मदद सिर्फ अबुबकर ने ही की थी .अपनी छ साला बेटी को पचास साला बूढ़े के लिए कौन बाप दे सकता है ? तब जब कि मुहम्मद रनडुवे हो गए थे . आयशा सिर्फ १८ साल की उम्र में बेवा हो गई थी जबकि ऐन जवान थी . बद नसीबी यह थी कि मुहम्मद ने वसीयत कर दिया था की उनकी तमाम बीवियाँ , उनके बाद उम्मुल मोमनीन यानी उम्मत की माएं होगी .
यह खुलफ़ा ए राशदीन सारे के सारे बे पेंदी के लोटे हुवा करते थे , सब आपस में एक दूसरे के ससुर और दामाद थे .

खुद सिताई 
इब्न अब्बास से हदीस है कि मुहम्मद ने कहा मेरे सामने तमाम उम्मतें पेश की गईं . बाज़ उम्मतें मुख़्तसर तो बाज़ कुछ ज़ायद , मगर मूसा की उम्मत ज़मीन पर ता हद्दे नज़र . इसके बाद मुहम्मद की उम्मत ता हद्दे आसमान . मुहम्मद ने कहा मेरी उम्मत के सत्तर हज़ार ( मुहम्मद का पसंदीदा शुमार ) लोग तो बग़ैर हिसाब ओ किताब जन्नत में दाखिल हो जाएँगे , कहकर अपने हुजरे में चले गए . 
लोगों में आपस में चर्चा होने लगी कि यार हम लोग पहले ईमान लाने वालों में हैं तो इमकान हमारे ही होंगे . हम न सही कि दौर जिहालत में पैदा हुए हैं मगर हमारी औलादें यकीनन होंगी .
मुहम्मद हुजरे से बाहर आए और कहा जी नहीं , जो लोग मंतर नहीं करते,बद फ़ाली पर यकीन नहीं रखते , अपने जिस्मों को दागने से बचते हैं - - - "
(बुख़ारी १९०३) 
इसके बर अक्स हदीस १९०६ देखें और समझें कि मुहम्मद क्या थे 
अनस कहते हैं कि मुहम्मद ने अन्सारियों को ज़हरीले जानवर के काटने पर मंतर की इजाज़त दी थी . खुद अनस को अल्जनब की बीमारी हो गई थी . वह कहते हैं कि इसके इलाज के सिसिले में अबू ताहा ने मुहम्मद के सामने मेरे जिस्म पर दाग़ लगाए .
(बुख़ारी १९०६) 

हदीस १९०३ और हदीस १९०६ में मुहम्मद की पयंबरी में तज़ाद देखें। 

अबू हरीरा कहते हैं कि वह मुहम्मद के साथ थे कि एक धमाके की आवाज़ आई , कहा 
जानते हो क्या है यह ?
अबू हरीरा ने कहा अल्लाह या इसका रसूल ही बेहतर जानता है .
कहा एक पत्थर है जो जहन्नुम में फेंका गया था सत्तर बरस पहले , वह जा रहा था अब उसकी सतह पर पहुंचा है .
(किताबुल जन्नत वस्फितः)

मुहम्मद हर लम्हा झूट गढ़ने पर आमादा रहते , लोग खामोश रहते तो वह उनको छेड़ कर सवाल पूछते , लोग उनकी फितरत को समझ गए थे, कहते 
" अल्लाह या इसका रसूल ही बेहतर जानता है ."
उनके हौसले और बढ़ जाते . किसी की मजाल न थी कि दोनों जहान के मालिक से उनके जवाब पर सवाल करता . मुहम्मद का पसंदीदा हिन्दसा 70 था जो शुमार के ज़ुमरे में उनका तकिया कलाम बन गया था।

कोढियो से नफ़रत 
मुहम्मद ने कहा बीमारी का उड़ कर लगना , बद फाली खोपड़ी का उल्व सफ़र की बलाएँ ,सब बेहूदा बातें हैं , अलबत्ता जुज़ामी से इस तरह भागो जैसे शेर से भागा करते हो .
(बुख़ारी १९०४)

 यह है मुहसिन ए इंसानियत कहे जाने वाले क़ल्ब ए सियाह का इंसानियत के लिए नफ़रत का पैग़ाम . जो लोग हमदर्दी और मदद के लिए ज्यादा मुस्तहक़ होते हैं उनसे दूर भागने की सलाह .
तअज्जुब होता है कि ऐसे ख़याल रखने वाले शख्स की लोग तारीफ़ों के पुल बाँधते हैं . मुहम्मद से बेहतर तो आज की मेडिकल साइंस की नर्सें हैं जो कोढियों की खिदमत करती हैं 
यह हदीस मुहम्मद को आज की इंसानी क़द्रों के आईने में मुजरिम करार देती है .
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जीम. मोमिन 

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