Tuesday 18 November 2014

Hadeesi Hadse 21


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हदीसी हादसे 21 
 
बुखारी १०४६ 
मुन्तकिम अल्लाह के मुन्तकिम रसूल अपनी इन्तेकामी फ़ितरत से इस क़दर लबरेज़ हैं कि कहते हैं

"मैं हौज़ कौसर से कुछ लोगों को इस तरह भगा दूंगा जैसे अजनबी ऊँट को पानी पीने की जगह से भगा दिया जाता है."
हौज़ कौसर क्या हैं ?
मुहम्मद के नाजायज़ बेटे लौंडी जादे इब्राहीम कि मौत जब लोहार के घर धुंए से दम घुटने पर हो गई तो अहले मदीना की औरतों ने 
मुहम्मद को बड़े तअने दिए थे कि "बनते हैं अल्लाह के नबी, बुढ़ापे में एक लड़का हुवा तो उसे भी इनका अल्लाह न बचा सका"
खिस्याए मुहहम्मद ने सूरह ए कौसर अल्लाह से उतरवाई कि 
"ऐ मुहम्मद ! तू ग़म न कर तुझको मैंने अपनी जन्नत में फैले हौज़ ए कौसर का निगरान बनाया."
वह ऐसे निगरानी करेंगे कि जन्नत्यों को भी अजनबी ऊंटों की तरह बैरंग वापस कर देंगे.
दूसरी तरफ यही उम्मी कहते हैं कि जन्नत में कोई भूखा प्यासा नहीं रहेगा, दिल चाहेगा शराब पिने का, शराब हूर ओ गिलमा लिए हाज़िर होंगे. 
यहाँ कहते हैं लोग प्यासे ऊँट की तरह पानी के लिए जन्नत में भटकते होंगे.
मज़े की बात ये है कि मुसलमान ऐसी मुतज़ाद बातों पर यकीन भी करते हैं. 

बुखारी १०४७
मुहम्मद कहते हैं अल्लाह उस शख्स से राज़ी नहीं होगा जो पानी रखते हुए प्यासे को न पिलाए.

अभी पिछली हदीस में मुहम्मद प्यासों को अजनबी ऊँट की तरह भगाते हैं. गोया नादानी में खुद जहन्नम रसीदा हुए.

बुखारी १०५० 
अली कहते हैं कि जंग ए बदर में मुझे एक ऊँट ग़नीमत में मिला था और एक उनके ससुर मुहम्मद ने बतौर अतिया दिया था. मेरा मंसूबा यह बना कि इन ऊंटों पर मैं अजखर घास लाद कर लाया करूंगा, इसे बाज़ार में फरोख्त कर के पैसे इकठ्ठा करूंगा फिर उसके बाद फ़ातिमा का वलीमा करूंगा जो कि अभी तक बाकी चला आ रहा था. मैं मंसूबा बंदी कर ही रहा था कि बग़ल के मकान में हम्ज़ा बैठे शराब पी रहे थे और सामने एक रक्कासा गाने गा रही थी जिसके बोल कुछ यूँ थे कि वह पड़ोस में बंधे ऊंटों का कबाब खाना चाहती है. हम्ज़ा नशे के आलम में गए और ऊंटों को ज़बा कर दिया. यह ऊँट अली के थे जिनको लेकर वह क्या क्या मंसूबा बना रहे थे. अली यह देख कर दोड़ते हुए मुहम्मद के पास गए और मुआमला बयान किया. वहां ज़ैद बिन हरसा भी मौजूद था, तीनो एक साथ हमज़ा के पास गए . उनको देख कर हमज़ा ने कहा तुम सब मेरे बाप के गुलाम हो. यह सुन का मुहम्मद वहां से चले आए. यह वाकिया तब का है जब शराब हलाल हुवा करती थी.

इस हदीस को पढने के बाद दो अहम् बातें निकल कर सामने आती हैं जिन पर आज मुसलमानों को गौर करना पडेगा. पहली ये कि मुहम्मद के ज़ाती मुआमले के बाईस मुसलमानों को शराब जैसी नेमत से महरूम कर दिया. ज़रा सा मुआमला ये कि दो ऊंटों का मुहम्मद के दामाद अली का नुकसान. क्या इस ज़रा सी बात पर दुन्या की कामों का मकबूल तरीन मशरूब हराम कर देना चाहिए? 
(शराब नोशी को हलाह रखने की बात अलग है जिसके लिए पूरी किताब तहरीर हो सकती है.)
दूसरी बात अली कि इल्मी और शखसी हैसियत क्या थी कि घास खोद कर बेचना जैसा अमल उनका ज़रिया मुआश था. उनकी इल्मी लियाक़त कि आज उनके फ़रमूदात की लाइब्रेरियाँ भरी हुई हैं.
कितना पोल ख़त है इस्लामी अक्दास में ? 


जीम. मोमिन 

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