Friday 30 September 2011

Hadeesi hadse (6)

(मुस्लिम . . . किताबुल ईमान)


ईमान का मज़ा चख्खा


अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब कहते हैं कि मुहम्मद ने कहा

" ईमान का मज़ा चक्खा उसने जो राज़ी हो गया खुदा की खुदाई पर, इस्लाम के दीन होने पर और मुहम्मद की पैगम्बरी पर"
वाकई!

कुछ सदियाँ ज़ुल्म ढाने में मज़ा आया,

उसके बाद झूट को जीने में

और अब झूट की फसल काटने मुसलामानों को मज़ा आ रहा है.

हर मुसलमान छटपटा रहा है कि वह क्या करे, और कहाँ जाए.

अल्लाह उनको बुला रहा है इधर आओ; अभी मेरी दोज़ख का पेट नहीं भरा है.

दुन्या उन्हें बुला रही है कि अभी तुम्हारे आमाल की सजा` तुमलो नहीं मिली है; हिसाब अभी बाकी है.

आलिम ए बातिल मुसलमानों को खींच रहे हैं कि हम मुहम्मदी शैतान हैं, तुम को गुमराह करता रहूँगा, आओ मेरी तरफ़ आओ; नमाज़ों के लिए अपने सर पेश करो,

तुम्हारे वजूद से ही हम शैतानो का वजूद है. जब तक तुम में एक सफ़ भी नमाज़ के लिए बची रहेगी, मैं बचा रहूँगा.
ईसा की बात याद आती है, कहा - - -
" कोई अच्छा पेड़ नहीं जो निकम्मा फल लाए, और न ही कोई निकम्मा पेड़ है जो अच्छा फल लाए" इस्लाम का निकम्मा पेड़ मुसलामानों को बे कीमत किए हुए है.


(बुखारी २०)


आप की क्या बात है


एक रोज़ मुहम्मद के हम असरों ने एह्तेजाजन मुहम्मद की चुटकी ली कि

" हम आप की तरह तो हैं नहीं कि थोड़ी इबादत करें या ज़्यादः , बख्श दिए जाएँगे. क्यूंकि आप के तो अगले पिछले सब गुनाह मुआफ़ हैं. यह सुनकर हज़रत गुस्से से तमतमा उट्ठे और कहा मैं तुम से ज़्यादः अल्लाह से डरने वाला हूँ."
* कुरान में कई बार जानिब दार अल्लाह मुहम्मद को यक़ीन दिलाता है कि
" आप के अगले और पिछले तमाम गुनाह मुआफ़ किए "
इस छूट को लेकर मुहम्मद ने मनमाने गुनाह किए. उनका ज़मीर जब उन्हें कचोक्ता था तो वह अपने आप को गुनाहगार होने का एतराफ़ करते थे मगर ज़मीर कि आवाज़ को उनकी बे ज़मीरी दबा देती है. उन के फितरत का निगहबान उनका तखलीक करदा अल्लाह बन जाता हैथा. मुसलमान मजबूरन और मसलहतन उनको बर्दाश्त करते थे, इस लिए कि माले-गनीमत से वह भी फ़ायदा उठाते थे. उस वक़्त अरब में रोज़ी एक बड़ा मसअला था. लोगों के तअनों पर मुहम्मद आएं बाएँ शाएँ बकने लगते थे.


(मुस्लिम किताबुल ईमान)


जिब्रील के बल ओ पर . . .


"जिब्रील अलैस्सलम के छ सौ बाजू हैं" मार्फ़त मारूफ अब्दुल्ला बिन मसूद .
दूसरी हदीस सुलेमान शैताबी से है कि मुहम्मद ने कहा
" जिब्रील के छ सौ पंख हैं."
* इस्लामी खेल में जिब्रील का किरदार मुहम्मद ने जोकर के पत्ते की तरह इस्तेमल किया है. फ़रिश्ते जैसे मुक़द्दस किरदार को रुसवा किया है. मुहम्मद की हर मुश्किल में जिब्रील खड़े रहते हैं.चाहे जैनब के साथ इनका आसमान पर निकाह हुवा हो चाहे वह्यों की आमद रफत, जिब्रील इनके मदद गार हुवा करते हैं.

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