Friday 23 September 2011

हदीसी हादसे (४)


(बुखारी ३ _ मुस्लिम . . . किताब उल ईमान)



गार ए हिरा से इब्तेदा


मुहम्म्द गार ए हिरा में दिन भर का खाना लेकर चले जाते और पैगम्बरी की मंसूबा बंदी किया करते. आखिर एक दिन अपनी पैगम्बरी के एलान का फैसला कर ही लिया. सब से पहले इसकी आज़माइश अपनी बीवी खदीजा से किया. कहानी यूं गढ़ी कि मैं गार था कि एक फ़रिश्ता नाजिल हुवा और उसने कहा- - -
पढो!
मैंने कहा मैं पढ़ा नहीं हूँ
फ़रिश्ते ने मुझे पकड़ा और दबोचा, इतना कि मैं थक गया और उसने मुझे छोड़ दिया..
इसी तरह तीन बार फ़रिश्ते ने मेरे साथ (न शाइस्ता) हरकत किया और तीनो बार मैंने खुद को अनपढ़ होने का वास्ता दिया, तब इस (गैर फितरी मखलूक) की समझ में आया (कि वह जो कुछ पढ़ा रहा है वह बगैर किताब, कापी या स्लेट या अल्फाज़ का है)
चौथी बार मुहम्म्द को या फ़रिश्ते को अपनी गलती का एहसास हुवा कि बोला पढ़ - - -
इकरा बिस्म रब्बेकल आल़ल लज़ी . . . यानी पढ़ अपने मालिक का नाम लेकर
जिसने पैदा किया आदमी को खून की फुटकी से और पढ़
कि तेरा मालिक बड़ी इज्ज़त वाला है
जिसने सिखलाया क़लम से,
सिखलाया आदमी को जो वह जनता नहीं था"



यह होशियार मुहम्म्द की पहली वहयी की पुडया है जिसको गार ए हिरा से बांध कर अपनी बीवी खदीजा के लिए वह लेकर आए थे. सीधी सादी खदीजा मुहम्म्द के फरेब में आ गई. आज की औरत होती तो दस सवाल दाग कर शौहर को रंगे हाथो पकड़ लेती. और कहती खबर दार अब गार में मत जाना, जहां तुम्हारा शैतान तुमको इतनी बे वज़न बातें सिखलाता है और तुमको दबोचता है.
कलम से तो आदमी आदनी को सिखलाता है, या वह इज्ज़त वाला अल्लाह ?
झूठे कहीं के,
मक्कारी की बातें करते हो
डर और खौफ का आलम बना कर घर में मुहम्म्द घुसे और बीवी से कहा खदीजा मुझे ढांप दो कपड़ों से
मुआमला मंसूबा बंद बयान किया और कहा मझे डर है अपनी जान का .
खदीजा घबराईं और मुहम्म्द को लेकर गईं 'वर्का बिन नोफिल' के पास, जो रिश्ते में इनके चचा होते थे. जो नसरानी थे

बोलीं ऐ चाचा! अपने भतीजे की सुनो.
मुहम्म्द की गढ़ंत सुनने के बाद विर्का ने कहा "यह तो वह नामूस है जो मूसा पर उतरी थी. काश मैं उस वक़्त तक ज़िन्दा रह पाता जब तुमको तुम्हारी कौम निकाल देगी, क्यूंकि जब कोई शरीअत या दीन लेकर आया है तो उसकी कौम ने उसके साथ ऐसा ही किया है

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