Friday 16 September 2011

हदीसी हादसे (1)


हदीसी हादसे


 मैं एक मोमिन हूँ और मेरा दीन है 'ईमान दारी.' दीन एक मुक़द्दस दरख्त है, ईमान इसका फूल है और मोमिन इसका फल.. इसी फल के बीज से फिर दरख़्त का वजूद फूटता है. दरख़्त में फूल अपने महक के साथ फिर खिलते हैं और फिर वह फल का दर्जा पाते हैं दीन के, दरख़्त, फूल और फल का सिलसिला यूं ही चलता रहता है.
इस ज़मीन पर ईमान का नक्श मौजूद, पैकर ए इंसानी है और इंसानी क़दरों का निचोड़ है ईमान. 'ईमान फ़र्द के अज़मत का निशान है.' दीन जो इंसानियत के वजूद से ताज़ा होकर इंसानों के लिए मक्नातीशी होता रहता है. लोग कहते हैं कि फलां शख्स बड़ा ईमान दार है यानी वह इंसानी क़दरों के क़रीब तर है. इस लिए लोग इसकी तरफ खिंचते है. इसकी बातों का यकीन करते है. इसके बर अक्स कहा जाता है . . . वह बे दीन है कमबख्त, यानी इंसानी क़दरों से दूर , हैवान नुमा.
दीन इंसान की दियानत दारी होती है और मोमिन का सिफत है ईमान.
अमन, अमीन, इन्सान , मोसिन और इंसानियत सब एक ही शजर क़ुदरती अल्फाज़ हैं, इन पर गौर करने की ज़रुरत है.
अफ़सोस कि दीन की जगह मज़हबी नुमाइश और धर्म के पाखंड ने ले लिए है. इनका दीन से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं. नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात - - - वजू, रुकू, सजदा - - तहारत, नजासत, इबादत - - -तबलीग, तफ़सीर और जिहाद वगैरह मज़हबी कारसतानियाँ हैं, दीन नहीं. दीन दिल की गहराइयों से फूटा हुई एक पाकीज़ा वलवला है. धर्म कांटे पर तुला हुवा सच्चा वज़न है, मान लिया गया लचर अकीदा नहीं.
आदमी मफ़रूज़ः आदम से पहले ज़हीन तरीन जानवर का बच्चा हुवा करता था, फिर मफ़रूज़ः आदम की औलाद हुवा. जब वह मुहज्ज़ब होकर इंसानी क़दरों में ढला तो वह इन्सान कहलाया.
ग़ालिब का यह शेर मेरी बातों का अच्छा खुलासा करता है - - -


बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना.


इंसानी तहजीब भी हर शै की तरह इर्तेकाई मराहिल से गुज़र रही है. कई ज़मीनी खित्ते ऐसे हैं, जहाँ आज भी आदमी जानवर के बच्चे की तरह है. कहीं कहीं अभी भी इन्सान आदमी के इर्तेकई मराहिल में पड़ा हुवा है और बहुत से दुन्या के खुश नसीब ज़मीनी टुकड़े हैं जहाँ के लिए कहा जा सकता है कि आदमी इंसान के मुकाम तक पहुँच चुका है. इंसानों को वहां पर हर इंसानी हुक़ूक़ हासिल हो चुके हैं.
अब हम आते हैं इस्लाम पर कि इस्लाम वह शर्त है जो तस्लीम हो. इस्लाम जिसे सब से पहले आँख मूँद कर बे चूँ चरा तस्लीम कर लिया जाए. इस्लाम को तस्लीम करने के बाद फ़र्द राह ए इंसानियत से हट कर सिर्फ़ मुस्लिम रह जाता है, मोमिन होना तो दूर की बात है.
इंसानी और ईमानी शजरे की मअनवी खूबयों का इस्लाम कोई वास्ता नहीं. यह इंसानी अलामतें इस्लाम से हजारों साल पहले से वजूद में आ चुकी हैं. सच्चाई तो ये है कि इस्लाम ने हमारी आँखों में धूल झोंक कर उन क़दरों को इस्लामी पैकर में बदल दिया है. सदियों बाद हमें लगता है कि दीन और ईमान इस्लाम की दी हुई बरकतें हैं. इसमें इस्लामी ओलिमा के प्रोपेगंडा का बड़ा हाथ है.
ईमान इस्लाम से हजारों साल पहले वजूद में आ चुका है, जब कि इस्लाम ने ईमान की मिटटी पलीद कर रखी है.
ईमान की बात यह है कि बे ईमानी और हठ धर्मी का नाम है इस्लाम.
एक अज़ीम हस्ती का कौल देखिए - - -
"ईमान दारी दर अस्ल यकीनी तौर पर अम्न के कयाम का दरवाज़ा है और खुदाए मेहरबान के सामने अक़ीदत का निशान है.जो इसे पा लेता है वह धन दौलत के अंबर प़ा लेता है. ईमान दारी इंसान के तहफ्फुज़ और इसके लिए चैन का सब से बड़ा बाब है. हर काम की पुख्तगी ईमान दारी पर मुनहसर करती है.आलमी इज्ज़त, शोहरत और खुश हाली इसी की रौशनी से चमकते हैं."
(बहाउल्लाह , बहाई पैगाम)

No comments:

Post a Comment