Sunday 2 October 2011

हदीसी हादसे (७)

मुस्लिम . . .किताबुल ईमान


अली मौला की तक़रीर


अली मौला फरमाते हैं

"क़सम उसकी जिसने दाना चीरा और जान बनाई, रसूल अल्लाह ने मुझ से अहद किया था, नहीं रखते जो मुहब्बत मुझ से वह मोमिन नहीं. नहीं रक्खेगा जो दुश्मनी मुझ से वह मुनाफ़िक़ नहीं"
अली को मुसलमान बेहद ज़हीन और क़ाबिल मानते हैं, शियाओं ने तो उनके ज़र्रीन कोल गढ़ रक्खे हैं. अली के जुमले पर गौर हो कि उनके ससुर ने उनसे अहद कर रखा था, उन बातों की जो कि उनके बस में थी ही नहीं, मगर मुहम्मद और अली अपने ज़ेहनी मेयार के मुताबिक कुछ भी कह सकते हैं.
हदीस में अली की टुच्ची नियत अपने हैसियत की आइना दार है. खुद को मनवाने और पुजवाने के लिए ऐसे घटिया हरबे इस्तेमाल का रहे हैं.


एक और हदीस का टुकड़ा है कि अली बहुत खुश थे कि उनको दो ऊँट माले-गनीमत में मिले थे, सोचा था की इन ऊंटों पर घास खोद कर लाऊंगा और बाज़ार में फरोख्त करूंगा तो कुछ पैसे जुटेंगे फिर फातिमा का वलीमा करेगे मगर शराबी हम्जः ने उनके अरमानों का खून कर दिया, एक तवायफ के कहने पर कि वह चाहती थी कि अली को मिले दोनों ऊंटों के गोश्त का कबाब खाऊँ.
ऐसी ही अली मौला की हरकतें हदीसों और तारीखी सफ़हात पर मिलती हैं कि कभी वह किसी बस्ती को आग के हवाले करके जिंदा इंसानों को जला देते हैं तो कभी अबू जेहल की बेटी से शादी रचाने चले जाते हैं.
अली का बचपन से ही किताब और क़लम से दूर दूर तक का कोई वास्ता न था. ज़हानत तो इन में छू तक नहीं गई थी. हैरत होती है कि आज इनके फ़रमूदात के किताबों के अम्बार हैं, यह सब उनके खानदान शियों के कारनामें है. एक घस खुद्दे को इन आलिमों ने क्या से क्या बना दिया है.


(बुखारी १९)


हलीमा दाई की बकरियों को चराने वाले


मुहम्मद कहते हैं

"ऐसा ज़माना आने वाला है कि आदमियों का बेहतर माल बकरियां होंगी. अपना दीन बचाने की ग़रज़ से वह इनको सब्ज़ा जारों और पहाड़ों पर लिए फिरेगा ताकि फ़ितनों से महफूज़ रहे"
मुहम्मद गालिबन अपनी फ़ितना साज़ी के अंजाम की इबरत अख्ज़ कर रहे है. वैसे बकरियाँ मुहम्मद को बहुत पसंद थीं. वह अक्सर उनकी आराम गाहों (बाड़ों) में नमाज़ें अदा करते, नतीजतन उनके कपडे हमेशा मैले और बुक्राहिंद बदबू दार हुवा करते.

पकिस्तान में किसी ईसाई के मुँह से यह बात निकल गई थी, वहां के आयत उल्लाओं ने उसे फांसी की सज़ा दे दी थी.
योरोप और अमरीका के बदौलत तेल के खज़ाने अगर अरबों को न मिलते तो आज भी वह बकारियाँ चराते फिरते. अफ़गानिस्तान जैसे कई मुस्लिम देश ऐसे हैं जहाँ लोग जानवरों के रह्म ओ करम पर अपना पेट पालते हैं. तमाम इंसानी चरागाहें, इस्लामी चरागाहें बनी हुई हैं

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