Thursday 22 September 2011

हदीसी हादसे ३


हदीसें

बुखारी १
उमर बिन अल्खिताब कहते हैं "मुहम्मद का फ़रमान है नियत के इरादे से हिजरत का सिलह मिलता है, दुन्या हासिल करने की या औरत."
(बुखारी १)


औरत या दुन्या


बाबा इब्राहीम के वालिद आज़र (तौरेत में-तेराह) को उनके खुदा ने ख्वाब में कई बार कहा कि तू हिजरत कर, तुझको इस उजाड़ खंड के बदले दूध और शहद की नदियाँ दूंगा. बूढ़ा आज़र तो हिजरत कर न सका मगर अपने बेटे इब्राहीम को हिजरत के लिए आमादा कर लिया, साथ में उनके भतीजी सारा थी जिसे इब्राहीम से मंसूब किया था और दूसरे भाई का बेटा लूत भी साथ हुवा. यह तारीख इंसानी की पहली मुस्तनद हिजरत थी.
आज़र का ख्वाब हर यहूदी को विरासत में मिला. यहूदियों का हजारो साल से कोई मुल्क, कोई कयाम, कोई ठौर ठिकाना न हुवा. दूध और शहद का देश पा जाने के बाद भी नबियों के दिखाए हुए ख्वाब को पूरा नहीं समझते, क्यूं कि साथ में नबियों ने यह भी उनके कान में कह दिया था कि तुम दुन्या की बरतर कौम हो, बाकी सब तुम्हारे खादिम. दूध और शाहेद का देश तो मिल गया कोमों पर हुक्मरानी का ख्वाब शर्मिदा ए ताबीर न हुवा.
आज़र का ख्वाब ए हिजरत दर अस्ल मजबूरी में एक नाजायज़ क़दम था. हिजरत ने बड़े बड़े मज़ालिम ढाए हैं. अपने जुग्रफियाई हालत में बसी कौमों को हिजरत ने तबाह कर दिया है. अमरीका के रेड इन्डियन हों या भारत की कौम भर, आज ढूंढें नहीं मिलते. आज हिजरत के खिलाफ नए सिरे से दुन्या जाग रही है. हिजरत मुकामी लोगों का शोषण करने का नाम है.
मुहम्मद ने जान बचा कर अपने साथी अबुबकर के साथ मक्का से मदीना भाग जाने को हिजरत का नाम दिया है.
पैगम्बर का नजरिया मुलाहिज़ा हो कि मुहाजरीन की नियत कैसी होती है? दुनया हासिल करने की या औरत.
मुहम्मद ने हिजरत की मिटटी पिलीद कर दिया. इसमें आकबत और दीन दोनों गायब हैं. दीवाने मुसलमान हिजरत बमानी हिज्र, विसाल ए सनम , जो हो, या फिर दुन्या ?
क्या प़ा रहे है? या क्या चाहेंगे हिजरत करके.

बुखारी -२


वह्यी की आमद


आयशा मुहम्मद की बीवी कहती हैं कि उन्हों ने अपने शौहर से पूछा "
आप पर वह्यी कैसे आती है?
बोले
कभी अन्दर घंटी जैसी बजती है, इस सूरत में बड़ी गरानी होती है और कभी फ़रिश्ता बशक्ल इन्सान नाज़िल होकर हम कलाम होता है. मैं फ़रमान याद कर लेता हूँ. कहती हैं सर्दी के ज़माने में जब वह्यी आती है तो मुहम्मद के माथे पर पसीने की बूँदें निकल आती थीं."
(बुखारी -२)
आयशा सिन ए बलूगत में आते आते १८ साल की बेवा हो गईं. बहुत सी हदीसें इसके तवास्सुत से हैं. मासूम कमसिन क्या समझ सकती थी मुहम्म्द की वह्यों का गैर फितरी खेल?
जब मुहम्मद ने इस के ऊपर 'इब्न अब्दुल्ला इब्न सुलूल' की इलज़ाम तराशी के असर में आकर शक किया था और एक महीने आयशा से तर्क तअक्कुक रहे, तब भी शौहर मुहम्मद ने इसे मुआफ करने में इन्हीं वह्यों का सहारा लिया था और आयशा ने इनकी वह्यी को इनके मुंह पर मार दिया था. कहा था
मेरा खुदा बेहतर जनता है कि मैं क्या हूँ.
वह्यिओं का कारोबार मुहम्मद ने ऐसा ईजाद किया था कि मुसलमानों के दिलो दिमाग को वहियाँ, ज़ंग आलूदह कर गईं. मुहम्मद के पहले किसी पर वह्यी न आई मगर उनके बाद तो इसका सिलसिला बन गया.
हाँ! शैतान, भूत, परेत और जिन्न वगैरा मक्कार मर्द और मक्कार औरतों पर ज़रूर आते हैं जिनका इलाज पुरोहितों के झाड़ू से होता है.
मुसलमानों! जागो, कब तक इन वहियों पर यकीन करते हुए खुद को पामाल करोगे.


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