Saturday 8 October 2011

HADEESI HADSE (8)



मुस्लिम . . . किताबुल ईमान

अंसार और अली मौला


"अंसार और अली से मुहब्बत रखना ईमान में दाखिल है और इनसे बुग्ज़ रखना निफ़ाक़"
इस्लाम जेहनी गुलामी का इक़रार नामा है जिसको तस्लीम करके आप अपनी सोच ओ समझ का इस्तेमाल नहीं कर सकते. अली मौला मुहम्मद के दामाद थे इस लिए तमाम मुसलामानों के दामाद हुए. इनके अमले-बेजा को नज़र अंदाज़ करना चाहिए, चाहे वह पहाड़ जैसी गलती हो. कमज़ोर तबा अंसारी मुहम्मद को झेलते रहे. अली और अंसार को न खातिर में लाने से आप खरिजे-ईमान हो जाएँगे. और फिर ख़ारिज-इस्लाम.
अगर सच्चे ईमान दारी पर इन्सान आ जाए तो इस्लाम दारी की हकीकत वह खुद ही समझ जाएगा.


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(बुखारी 17)


अन्सरियों का एहसान

अनस कहते हैं मुहम्मद ने फ़रमाया
"अनसारियों से मुहब्बत ईमान है और उनसे बुग्ज़ निफ़ाक़ है."
मैं एक बार फिर दोहरा दूं कि इस्लाम में ईमान का मतलब ईमान दारी नहीं बल्कि मुहम्मद के फ़रमूदात पर यक़ीन और अक़ीदा है. चूँकि अनसारियों ने मुहम्मद पर, मदीने में पनाह देकर एहसान किया है, बदले में तमाम मुसलमानों का ईमान उनको हासिल हो गया.

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(मुस्लिम . . . किताबुल ईमान)


पहले मा बदौलत


 अनस से रवायत है कि मुहम्मद का फ़रमान है कि

''कोई शख्स मोमिन नहीं होता, जब तक कि इसको मेरी मुहब्बत माँ बाप औलाद और सब से ज्यादा न हो."

यह हदीसें उस ज़माने की हैं जब मुहम्मद को मुकम्मल तौर पर इक्तेदार मिल चुका था. गलिबयत का उनको गररा था कि इनकी बात न मानना अपनी मौत को दावत देना था. आगे हदीसों में देखेंगे कि अपनी बातों को न मानने वालों को वह क्या क्या सज़ा दिया करते थे.

हर मखलूक का मकसदे हयात होता है कि वह अपनी ज़ात को अपनी नस्ल (औलाद) कि शक्ल में इस ज़मीन को आबाद रहने दे. मुहम्मद का फ़रमान मान कर शायद मुसलमान इससे मुंह मोड़ सकते है.


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(मुस्लिम . . .किताबुल फितन व् अश्रात उल साएता)


क़सरा का खज़ाना
अबू हरीरा कहते हैं क़सरा (ईरान का बादशाह) मर गया, अब इसके बाद कोई कसरा न होगा. जब कैसर (रोम का बादशाह) को फतह कर लेंगे तो कोई कैसर न होगा. क़सम है उसकी जिसके हाथ में मेरी जान है, तुम इन दोनों खज़ानों को खुदा की राह में खर्च करोगे.
* ईरान पर बिल आखीर इस्लाम ने फ़तह पाई और वह हुसैन की ससुराल बना. शिअय्यत इस पर ग़ालिब हुई. जब से इस्लामी परचम के ज़ेर असर ईरान आया, बरसों पुरानी तहजीब व् तमद्दुन उससे रुखसत हुए. इस्लामी खून कुश्त के आगे ईरान दोबारा सुर्ख रू न हुवा. ज़र्थुर्थ जैसे हक़ीक़ी पैग़म्बर ईरान के माज़ी बन गए, जिसने कहा था कि उसके खुदा का फ़रमान है कि
"तू मेरी मखलूक पर वैसे ही मेहरबान हो जा, जैसे मैं तुझ पर हूँ."
ज़र्थुर्थ की आवाज़ ए खुदावन्दी की जगह पर ईरान में मौजूदा क़ुरआनी आयतें चौदह सौ सालों से ग़ालिब है.
क़ुरआनी आयतें जो रुस्वाए ज़माना हैं.
दुन्या कहाँ से कहाँ पहुँच गई है, ईरान में क़ुरआनी निजाम उसको भेदे जा रहा है. देखिए कि कितने आयत उल्लाह खुमैनी और पैदा हों, उसके बाद कब कोई कमाल पाशा पैदा होता है. या इससे पहले ही इस्लाम इसे दूसरे की खुराक बना दे.
इसलाम के सताए ईरानी पारसी कौम का वाहिद फ़र्द , टाटा ईरान की पूरी मुआशियत को तनहा टक्कर दे सकता है.
रोम का कैसर तो दो चार बरसों के लिए ईरानी चंगुल में आया और निकल गया और आज भी दुन्या में सुर्खरू है.  

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(बुखारी २२)


कुरता ज़मीन पर लुथ्ड़े मगर तहबन्द नहीं

मुहम्मद कहते हैं कि "एक रोज़ मैं सो रहा था कि मेरे सामने कुछ लोग पेश किए गए जिनमें से कुछ लोग तो सीने तक कुरता पहने हुए थे और बअज़े इससे भी कम. इन्हीं लोगों में मैंने उमर इब्न अल्खिताब को भी देखा जो अपना कुरता ज़मीन पर घसीटते हुए चल रहे थे. लोगों ने इसकी ताबीर मुहम्मद से पूछिए तो बतलाया यह कुरता ए दीन है "
यह है मुहम्मद की मजहबी बिदअत जो लोगों को पैरवी करने पर पाबंद किए हुए है, जिसकी कोई बुन्याद नहीं है. पैरवी में अलबत्ता लोग मज़हक़ा खेज़ लंबे लंबे कुरते पहेनना सुन्नत समझते है जिस पर घुटने तक उटंग पैजामा और भी नाज़ेबा लगता है.
कहते हैं कुछ कुरते सीने तक कुछ इससे भी कम ? क्या कुरते का कालर भर उनका लिबास था? या चोली भर? या बिकनी जैसा कुरता?
मुहम्मद की किसी बात की कोई माकूल दलील नहीं. आगे एक हदीस इसके ब़र अक्स आएगी कि तहबन्द लूथड़ी तो गए जहन्नुम में.

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