Thursday 27 October 2011

Hadeesi hadse (11)

औरतें दोजखी और एहसान फरामोश हैं (बुखारी२७)
(मुस्लिम - - किताबुल ईमान)


औरतों की ज़िल्लत


"मुहम्मद कहते हैं एक बार मेरे सामने दोज़ख पेश की गई, मैं ने अहले दोज़ख में ज़्यादः हिस्सा औरतों को देखा, क्यूंकि यह नाशुक्री बहुत करती हैं, शौहर की नाशुक्री करती हैं और एहसान फ़रामोश होती हैं."
माबदौलत के सामने अल्लाह हमेशा हाथ जोड़े, सर झुकाए खड़ा रहता है और उसके हुक्म पर जन्नत और दोज़ख पेश किया करता है. मुहम्मद ने अल्लाह को भी अपना गुलाम बना रक्खा है.
मुहम्मद, कुरआन और हदीस में औरतों को हमेशा ज़लील करते हैं.
आज जब अख़बारों में मुस्लिम औरतों की पस्मान्दगी पर, मुस्लिम समाज पर सवाल उठता है तो ओलिमा नबी करीम की झूटी हदीसें गढ़ते हैं कि गलती इस्लाम की नहीं बल्कि मुसलमानों की गुमराही का है कि वह इस्लाम से बहुत दूर निकल गए हैं. लोग गुमराह हो गए हैं. वह जवाब में गैर मुस्लिमों को ज़ेर करते हैं. जब कभी भी मुस्लिम कांफ्रेंस होती है तो अव्वल तो उसमे औरतें होती ही नहीं, औरतों पर और भी पाबंदियां आयद हो जाती हैं.

खुद औरतों की तंज़ीमें जहाँ तहाँ हैं जो ओलिमा पर नाक भौं सिकोड़ती हैं, मगर अपने रसूल के खिलाफ ज़बान नहीं खोल पातीं जो इनको ज़लील करते हैं. मुस्लिम औरतों में ज़्यादः ही सुन्नत की पाबंदियां हैं, जब कि इनको बेदार होने की ज़रुरत है.

 
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(मुस्लिम - - - किताबुल इमारत)


मुहम्मद कहते हैं मन्दर्जा ज़ेल लोग मरने के बाद शहीद होते हैं - - -
१- जो अल्लाह के नाम पर शहीद हो जाए, मसलन हज के सफ़र में या जंग के सफ़र में या मैदाने-जंग में मरें.
२- ताऊन की बीमारी में मरने वाले .
३- जो लोग पानी में डूब कर मरते हैं.
जो दीवाने के मुंह से निकल जाए, वह अल्फज़े-अक्दास हुए, वह हदीस शरीफ़ और वह कुरआन शरीफ़ बन जाते हैं.
मैदाने-जंग में मरना =शहीद होना होता है, हुकूमतों का बनाया हुवा सरकारी नारा है, जो बिल आख़िर उनके काम ही आता है. ताजः मिसाल लीबिया की लेली जाय तो कर्नल गद्दाफ़ी के लिए मरने वाले जवान और उसके खिलाफ लड़ने वाले जवानों में दोनों ही शहीद कहे जाते हैं और दोनों ही ग़द्दार भी.
हज का सफ़र रूहानी अय्याशी के सिवा और क्या है?
दूसरी असल सूरत अरबियों की माली इमदाद करना है जो की मुहम्मद की नियत थी हज को कामयाब करने की .
ताऊन और पानी में डूब कर मने वाली मौत किस तरह शहादत हुई?
ऐसी ऐसी बीमारियाँ हैं कि जिसमे मुब्तिला होकर इंसान पल पल कर के बरसों मरता है. जब कि ताऊन में पडोसी को दफ़ना कर आए और खुद दफ़्न होने को तैयार पड़े हैं.
पानी में डूबना सिर्फ पाँच मिनट की अज़ीयत है.
ऐसी बेबुन्यद बातें मुस्लिम समाज की तकदीर बनी हुई हैं.


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