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दो हदीसें मुलाहिजा हों.
मुहम्मद के कथन को हदीस कहा जाता है और
हदीसें मुस्लिम बच्चों
को ग्रेजुएशन कोर्स की तरह पढाई जाती है, कई लोग हदीसी
ज़िन्दगी जीने की हर लम्हा
कोशिश करते हैं. कई दीवाने
अरबी, फारसी लिपि में लिखी
इबारत 'मुहम्मद' की तरह ही बैठते हैं.
अपने नबी
की पैरवी
में सऊदी
अरब के
शेख चार
बीवियों की पाबन्दी
के तहत
पुरानी को तलाक़
देकर नई
कम उम्र
लाकर बीवियाँ रिन्यू
किया करते हैं.
हदीसो में एक से एक गलीज़ बातें
हैं. उम्मी यानी
निरक्षर गँवार विरोधाभास
को तो
समझते ही
नहीं थे.
हज़रात की
दो हदीसें मुलाहिजा
हों.
१- एक शख्स अपनी
तहबंद ज़मीन पर लाथेर कर चलता था .
अल्लाह तअला ने इसे ज़मीन में धंसा
दिया. क़यामत तक ज़मीन में वह यूं ही में
धंसता ही
रहेगा.
''बुखारी (१४०२)"
२-फ़रमाते हैं एक रोज़ मैं सो रहा था कि मेरे
सामने कुछ लोग पेश किए गए जिनमें
से कुछ
लोग तो
सीने तक
ही कुरता
पहने थे,
और बअज़
इस से
भी कम.
इन्हीं लोगों में मैं ने उमर इब्ने
अल्खेताब को देखा जो अपना
कुरता ज़मीन पर
घसीटते हुए चल रहे थे.
लोगों ने
इसकी तअबीर जब पूछी तो
बतलाया यह कुरताए दीन है.''
(बुखारी
२२)
कबीर कहते हैं- - -
साँच
बराबर तप
नहीं झूट
बराबर पाप,
जाके हृदय सांच है ताके
हृदय आप।
मुहम्मद के कथन में झूट का अंश
देखिए - - -
१- उनको कैसे मालूम हुआ कि अल्लाह तअला तहबन्द ज़मीन पर लथेड कर चलने
वाले को ज़मीन में मुसलसल धन्सता रहता है?
२-उम्मी सो रहे थे और इनके
सामने कुछ लोग पेश किए गए? भला
बक़लम खुद का रूतबा तो देखिए. माँ
बदौलत नींद के आलम में
शहेंशाह हुवा करते थे. जनाब
सपनों में पूरा
पूरा ड्रामा देखते
हैं.
कुछ लोग सीने तक कुरता पहने थे? गोया
फुल आस्तीन ब्लाउज?
कुछ इससे
भी कम?
यानी आस्तीन दार चोली? मगर ऐसे लिबासों
को कुरता
कहने की
क्या ज़रुरत थी आप को
?
झूट इस लिए कि आगे
कुरते की
सिफ़त जो
बयान करना था. ज़मीन पर कुरता गोगर
गलीज़ को
बुहारता चले तो दीन है. लंबी तुंगी हो तो वह ज़मीन
में धंसने का अनोखा अज़ाब
.
ऐसी हदीसों में
अक्सर मुसलमान लिपटे
हुए लंबे
लंबे कुरते और
घुटनों के ऊपर
पायजामा पहन कर
कार्टून बने देखे जा सकते
हैं.
''यह मत
देखो कि
किसने कहा
है, यह
देखो की
क्या कहा
है.''
लोहे को
जितना गरमा
गरमा कर
पीटा जाय
वह उतना
ही ठोस
हो जाता
है। इसी
तरह चीन
की दीवार
की बुन्यादों की ठोस
होने के
लिए उसकी
खूब पिटाई
की गई
है, लाखों
इंसानी शरीर
और रूहें
उसके शाशक
के धुर्मुट
तले दफ़न
हैं. ठीक
इसी तरह
मुसलमानों के
पूर्वजों की
पिटाई इस्लाम
ने इस
अंदाज़ से
की है
कि उनके
नस्लें अंधी,
बहरी और
गूंगी पैदा
हो रही
हैं.(सुम्मुम
बुक्मुम उम्युन,
फहुम ला
युर्जून) इन्हें
लाख समझाओ
यह समझेगे
नहीं.
मैं कुरआन
में अल्लाह
की कही
हुई बात
ही लिख
रह हूँ
जो कि
न उनके
हक में
है न
इंसानियत के
हक में
मगर वह
कुछ भी
सुनने को
तैयार नहीं,
वजेह वह
सदियों से
पीट पीट
कर मुसलमान
बनाए जा
रहे है,
आज भी
खौफ ज़दा
हैं कि
दिल दिमाग
और ज़बान
खोलेंगे तो
पिट जाएँगे,
कोई यार
मददगार न
होगा.
यारो! तुम
मेरा ब्लॉग
तो पढो,
कोई नहीं
जान पाएगा
कि तुमने
ब्लॉग पढ़ा,फिर अगर
मैं हक
बजानिब हूँ
तो पसंद
का बटन
दबा दो,
इसे भी
कोई न
जान पाएगा
और अगर
अच्छा न
लगे तो
तौबा कर
लो,तुम्हारा
अल्लाह तुमको
मुआफ करने
वाला है।
अली के
नाम से
एक कौल
शिया आलिमो
ने ईजाद
किया है
''यह मत
देखो कि
किसने कहा
है, यह
देखो की
क्या कहा
है.'' मैं
तुम्हारा असली
शुभ चितक
हूँ, मुझे
समझने की
कोशिश करो.
मैं
पहले उम्मी
मुहम्मद की
एक भविष्य
वाणी यानी
हदीस से
आप को
आगाह कराना
चाहूंगा - - -
'' दूसरे खलीफा
उमर के
बेटे अब्दुल्ला के हवाले
से ... रसूल
मकबूल सललललाहो
अलैहे वसललम
(मुहम्मद की
उपाधियाँ) ने
फ़रमाया एक
ऐसा वक़्त
आएगा कि
इस वक़्त
तुम लोगों
की यहूदियों
से जंग
होगी, अगर
कोई यहूदी
पत्थर के
पीछे छुपा
होगा तो
पत्थर भी
पुकार कर
कहेगा की
ऐ मोमिन
मेरी आड़
में यहूदी
छुपा बैठा
है, आ
इसको क़त्ल
कर दे.
(बुखारी १२१२)
आज इक्कीसवीं
सदी ऐसी बातों पर यकीन ही खुद कशी है .
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जीम. मोमिन
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