Tuesday 15 January 2013

hadeesi Hadse -68


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बुखारी 1203
मुहम्मद खुद सताई करते हुए कहते हैं कि एक वक़्त ऐसा भी आएगा कि जब जिहादी गिरोह मे से लोग एक दूसरे से पूछेंगे कि तुम में से कोई सहाबी भी है ? ऐसा शख्स मिल जाने पर उसे रहनुमाई दी जायगी और फ़तह हासिल होगी।
फिर एक वक़्त ऐसा आएगा कि जंग में लोग पूछेंगे कि क्या कोई ऐसा है जो रसूल्लिल्लाह के सहाबियों का हम अस्र हो यानी तबई ?
मिलने पर उसके हाथों फ़तेह होगी।
इसी तरह घटते हुए वक़्त के मुताबिक उन बरकती हस्तियों के मार्फ़त मुसलमानों को फ़तूहात मिलती रहेंगी।

*नाकिसुल अक्ल रसूल की पेशीन गोइयाँ उनके सर पर चढ़ कर मूतती हुई नज़र आती हैं। औलाद नारीना तो कोई थी ही नहीं, चहीते हसन और हुसैन के जिंदगी का अंजाम मुहम्मद के नवासे होने के नाते ऐसा हुआ कि मुसलमान आज तक सीना कूबी कर रहे है, हसन ने यज़ीद की गुलामी कुबूल कर के अय्याशियों का नमूना बने, उनकी मौत सूजाक जैसे मोहलिक मरज़ से हुई . हुसैन अपने भतीजे भांजे और मासूम औलादों को मोहरे बनाते हुए क़त्ल किए गए, जिन के सर को लेकर बेटी ज़ैनब जुलूस निकलती रही . मुहम्मद का लगभद तमाम खानदान ही नेस्त नाबूद हो गया. सदियों से मुसलमान दुनिया के कोने कोने में कुत्ते बिल्ली की मौत मारे जा रहे हैं।
पेशीन गोई करते है ऐसा जैसे बड़े मुतबर्रक हस्ती उनकी रही हो।
 
बुखारी 1212
मुहम्मद फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की यहूदियों से जंग होगी, अगर कोई यहूदी पत्थर की आड़ में छिपा होगा तो पत्थर आवाज़ देगा कि
"ऐ मुसलमानों ! इधर आओ , मेरी आड़ लिए एक यहूदी इधर छुपा हुआ है , आओ इसे हलाक कर दो ."

*मुसलमानों को वक़्त जो सजा दे रहा है , शायद वह जायज़ है . ऐसी हदीसों पर ईमान रखने और "ख़त्म बुखारी शरीफ" करने वालों की सजा उनकी ज़िल्लत और रुसवाई होनी ही चाहिए .
अहमक रिसालत अगर सोचती है कि ईंट पत्थर उसके तरफ़दार होंगे तो उसका अल्लाह क्यों यहूदियों को बचाने में लगा हुवा होगा ? उसके तो एक इशारे से ही तमाम यहूदी जिंदा दरगोर हो जाने चाहिए। ऐसी ही मुहम्मद की बातों का असर है कि यहूदी मुहम्मद की उम्मत को नेश्त नाबूद करने पर तुले हुए है।
मुसलमान पत्थरों के इशारे का इंतज़ार कर रहे है और यहूदी पत्थर को पीस कर सीमेंट बनाने में, ताकि वह फिलिस्तींनियों की बस्तियों में यहूदी कालोनियां कायम कर सकें .
मुसलमानों ! कब तक इस्लाम के दुम छल्ले बने रहोगे ? हिम्मत करो जागने की

बुखारी 1213
मुहम्मद की दीवानगी देखिए कि जिनके मुंह में वबसीर हो चुकी थी कि बोले बगैर उन्हें चैन नहीं पड़ता था।
फरमाते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा कि मुसलमानों की लड़ाई एक ऐसी कौम से होगी कि जिसकी आँखें छोटी होंगी, नाक सुर्ख और बैठी हुई, गोया इनका चेहरा ऐसा होगा जैसे ढालें होती हैं.
कहते हैं उसी अय्याम में क़यामत बरपा होगी.

* गालिबन मुहम्मद ने किसी चीनी को देखा होगा और कयास आराई किया होगा . आप गौर करे कि क़यामत की पेशीन गोई हर पांचवें जुमले के बाद है चाहे वह कुरान हो या हदीसें। लोगों ने कुरान को नाम दिया है "क़यामत नामः"
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे।
बुखारी 1215
चन्द यहूदी मुहम्मद के पास आए और उनको सलाम किया जिसमें दोहरे मानी छुपे हुए थे। मुहम्मद ने भी उनको दोहरे मानी वाला जवाब दिया ,
आयशा यहूदियों की इस हरकत पर बिफर गईं ,
मुहम्मद ने तजाहुले-आरफ़ाना बरतते हुए कहा,,
क्या हुवा ? आयशा ने कहा सुना नहीं उनहोंने आप पर लअनत भेजते हुए सलाम किया था। मुहम्मद ने कहा तुमने नहीं सुना कि मैं ने भी उन्हें "वअलैक - - - कहा था। (यानि तुम पर भी )

* ये है मुहम्मद के पैगम्बरी आदाब, कोई महात्मा अपने मुंह से ऐसे शब्द नहीं दोहराता. अगर वह वाकई अल्लाह के रसूल होते तो कहते - - -
"मगर तुम पर अल्लाह की रहमत हो।"
जैसा कि ईसा किया करते थे कि एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल पेश कर दिया करते थे।


जीम. मोमिन 

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