
जीम. मोमिन
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बुखारी 1107
"मुहम्मद ने किसी दावत में गोह
(गोहटा ) का गोश्त खाया - इब्न अब्बास कहते हैं अगर यह
हराम होता तो मुहम्मद बयान करते "
*कबीलाई माहौल में हर बात की गुंजाईश
है- खाया होगा कोई
तअजजुब की बात नहीं। तअजजुब तो इन ज़मीर फ़रोश ओलिमा पर है जो ऐसी हदीसें भी माहौल को
देख कर गढ़ते हैं - - -
"मुहम्मद सल ने कभी मांस को चख्खा नहीं
. एक बार लोगों ने
इसरार किया कि आप गोश्त चखिए ताकि उम्मत को आसान हो कि उनके प्यारे नबी ने भी गोश्त
खाया। इस पर सल ने अपनी एक उंगली पर लम्बी परत की पट्टी बाँधी और उंगली को गोश्त के
शोरबे में डुबो कर तर किया, फिर पट्टी खोल कर उंगली को चूसा ,
इस तरह मुसलामानों के लिए गोश्त हलाल
किया।"
यह तक़रीर हिदू श्रोताओं के लिए गढ़ी गई जो मेरे कान में आई .
हैरत का मुक़ाम है कि गोह खाने की गवाही खुद मुहम्मद के चाचा
अब्बास देते हैं और मशहूर ज़माना है कि मुहम्मद को बकरे के सीने का गोस्त पसंद
था, आज उनको एक शाकाहारी साबित किया जा रहा ई।
बुखारी 1219
"अबू हरीरा कहते हैं कि मुहम्मद ने मुझे
किसी लश्कर में रवाना किया और कहा कि अगर कुरैश कबीले के दो फलां फलां लोग मिलें तो
इनको आग में जला कर मार डालना । मैं रवानगी के वक़्त मुहम्मद से रुखसत के लिए
पहुंचा तो उनहोंने अपना फैसला बदलते हुए कहा कि उनको आग से जल कर न मरना
, यह सजा तो अल्लाह
ही देता है, बस मार
देना।"
*मुहम्मद अव्वल दर्जे के मुन्तकिम थे
, इस बात की गवाह
खुद उनकी बेगम आयशा कहती हैं कि
"सल ने कभी अपने ज़ाती मुआमले का बदला नहीं
लिया मगर मुआमला अगर अल्लाह का हो तो अल्लाह के दुश्मन को कभी छोड़ा नहीं
"
(बुखारी
1449)
गौर तलब है कि मुहम्मद दर परदा खुद अल्लाह बने हुए हैं,
इस बात की गवाह कुरान और हदीसें हैं, अगर अकीदत की
ऐनक उतार कर इन का इन का अध्यन किया जाए .
उपरोक्त दोनों नाम मुहम्मद को उस वक़्त के याद हैं जब मक्का में लोग इनका और इनके
कुरान का मज़ाक़ उड़ाते थे और बाद में इनको ख़त्म कर देने का फैसला हुवा।
काश कि ये फितना उसी वक़्त मौत के हवाले हो जाता तो मुमकिन है मुसलमान कहे जाने
वाली मखलूक आज दुन्या में सुर्ख रु होती।
बुखारी 1220
"मुहम्मद कहते हैं, जब तक हाकिम ख़ुदा की नाफ़रमानी
और गुनाहगार होने का हुक्म न दे, इसकी इताअत और फ़रमा बरदारी लाज़िम है . लेकिन जब इनकी ख़िलाफ़ वरज़ी करे
तो नाफ़रमानी लाज़िम है ."
*किस ख़ुदा की नाफ़रमानी ?
इन्सानी दर्द ना आशना खुदा की जो कहता हो कि
"कुफ्फार की औरतें और बच्चे मिन जुमला
काफ़िर ही शुमार किए जाएँगे , इनको मौत पर कोई गुनाह नहीं।"
इस्लाम ने हर अच्छी बात का इस्लामी करन कर रख्खा है ,
उस पर अमल करना, परोसे हुए दस्तर ख्वान में नजासत शामिल कर देने की तरह
है।
दुन्या की 20%आबादी इंसानियत के ख़िलाफ़, इस्लामियत का
शिकार है .
बुखारी 1227 +मुस्लिम किताबुल जिहाद
"मुहम्मद कहते हैं मैदान जंग में जब कोई
मुक़बिला न हो और दुश्मन के आने की उम्मीद न हो तो जंग की तमन्ना मत करो, बल्कि अल्लाह से आफ़ियत की दुआ
करो . इस अम्र का
यक़ीन करो की जन्नत तलवार की साए में है ."
अलकायदा,
तालिबान और दीगर इस्लामी दहशत गर्द इन ज़हरीली हदीसों की
फसलें हैं जो फल फूल रही हैं और बेचारे मुसलमान अपने ही वजूद में सूखे जा रहे हैं।
किसी भी दहशत गर्द का नज़ला सीधे मुस्लिम अवाम पर पड़ता है . कट्टर पंथी
मौके की तलाश में रहते है, अंजाम कुछ भी हो।
मुसलमानों का ईमान ए नाहक़ इतना पुख्ता है कि इसके आगे वह अपनी जान, अपना
माल और अपनी औलादें तक कुर्बान कर सकते हैं, यहाँ तक कि अपनी गैरत
भी. दर असल यह जज़्बात के शिकार गुमराह लोग हैं। इनको इस्लामी आलिमों ने आसमान पर
चढ़ा रख्खा है कि असली ज़िन्दगी वहीँ है. दूसरे धर्म ओ मज़ाहिब भी जवाबन इनके सामने
खड़े हो जाते है,
नतीजतन मुल्क इन गैर तामीरी कामों में लगे लोगों से
शर्मिदा है।
क्या ऐसे हालात में माओ की बंदूक की ज़रुरत आ गई है।
मुस्लिम किताबुल मसाकात - - -
"मुहम्मद उम माअबद के बाग़ में गए और पूछा कि यह दरख्त
किसने लगाए हैं?
मुसलामानों ने या काफिरों ने, जवाब मिला
मुसलमानों ने.
कहा जिन मुसलमानों ने इन दरख़्त को लगाया , उनको
इसका सवाब क़यामत तक मिलता रहेगा - - -"
*मुहम्मद ने अमली तौर पर बनी
नुजैर की बस्ती के तमाम पेड़ जड़ से कटवा कर इन्हें गिरवा दिया था क्योंकि यह
यहूदियों के लगाए हुए थे. इस पर खुद इनके
क़बीले के लोगों ने एतराज़ किया था, जवाब था "इसके
लिए मेरे पास अल्लाह की वही आई थी."
गौर तलब है कि किस कद्र नाक़िस जेहन के मालिक थे अल्लाह के खुद साख्ता रसूल कि
पेड़ों को भी काफ़िर और मुस्लिम जानते थे। बद नसीब कौम ऐसे रसूल का शिकार है
.
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