Wednesday 6 January 2016

Hadeesi Hadse 190


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हदीसी हादसे 79
बुखारी 1138
इस्लामी तवारीख़ में मशहूर वाक़िया है कि मुहम्मद को उमरा करने से अहल-मक्का ने रोक दिया था. मुहम्मद ने इस बात को मान लिया कि अगले साल तीन दिनों तक मक्का में रह कर उमरा करेगे। सुलह नामा तैयार किया गया जिसमे मुहम्मद ने खुद को अल्लाह का रसूल लिखवाया,यानी "मुहम्मदुर रसूल अल्लाह ।
जब अहले-मक्का ने उसे देखा तो एतराज़ करते हुए कहा अगर हम लोग आपको अल्लाह का रसूल मानते तो यह फ़ितना ही न खड़ा होता। इसकी जगह मुहम्मद इब्न-अब्दुल्ला लिखिए . 
मुहम्मद ने अली को मुआहिदा नामा दिया कि इसे मिटा कर इनके मुताबिक कर दो, तो अली ने रद्दो-बदल करने से इंकार कर दिया। मुहम्मद ने उनके हाथों से लेकर दूसरे से इसे दुरुस्त कराया। 
बुखारी 1141
मुहम्मद कहते हैं जिन शर्तों को मैंने नाफ़िज़ किया है उनमें सब से बड़ी यह है कि जिन से तुम ने अपनी शर्म गाहों को हलाल किया।
* मुहम्मद की मुराद यही है कि निकाही औरत से ही रुजू करो। मुहम्मद ये शर्त दूसरों के लिए ही लाज़िम क़रार देते हैं। खुद तो वः झुंडों के सांड थे। 
बुखारी 1142
दो शख्स मुहम्मद के पास आते हैं और अर्ज़ करते है कि हम दोनों के मामले को आप अल्लाह के किताब के हिसाब से निपटा दीजिए . उनमें से पहला बयान करता है कि मेरे बेटे ने इसकी बीवी के साथ जिना कर डाला है, इसके लिए मैंने सौ बकरियां जुरमाना अदा किया और एक गुलाम आज़ाद किया . अब ओलिमा कह रहे है कि मेरे बेटे को सौ कोड़े तो लगेगे ही .
मुहम्मद ने मुक़दमा सुनने के बाद कहा कि तुम्हारे बेटे को सौ कोड़े तो लगेंगे है और एक साल की शहर बद्री भी होगी . तुम्हारी सौ बकरियां तुमको वापस मिल जाएंगी .
इसके बाद मुहम्मद उस औरत के पास गए जिसने जिना कराया था , उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया और उसको संग सार करके मौत के घाट उतर दिया गया .
*खुद मुहम्मद की अय्याशियाँ और जिना कारियां रवाँ दवां थी और मुहम्मद लोगों से कहते फिरते कि अल्लाह ने उनकी अगली और पिछली सारी गलतियाँ माफ़ किए हुए है।
बुखारी 1159
मुहम्मद कहते हैं जन्नत के सौ दर्जात अल्लाह ने मुरत्तब किए है जो जिहादियों के लिए मखसूस हैं , इनमें से एक दूसरे में फासला इतना है जितना ज़मीं ओ आसमान के बीच का होता है। जन्नाओं में अफज़ल जन्नत , जन्नतुल फिरदोस है जो सातवें आसमान पर अल्लाह के साथ है और जन्नतों की तमाम नहरें इसी से निकली हुई हैं .
* मुहम्मद बेकारी में बैठे बैठे कुछ न कुछ गढ़ंत गढ़ा करते।उनकी बातों को सोच कर हैरानी होती है की इंसानी जेहन उसे कुबूल कैसे करता? पहले यह बातें तलवार के साए में रहने वाले मजबूरी में मान लिया करते थे, उस के बाद उनकी नस्लों को तालीम-नाकिस ने मनवाया। आज के ज्यादह हिस्सा मुसलमान मुहम्मद को अल्लाह का राजदार मानता है कि अल्लाह ही मुहम्मद को इन बातों का इल्म देता रहा होगा।
यह लोग कैसे सोच सकते हैं की मुहम्मदी अल्लाह खुद मुहम्मद का रच हुवा है .अफ़सोस कि मुहम्मद ने मानव समाज की सदियों की सदियाँ ज़ाए कर दिया .


जीम. मोमिन 

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