Tuesday 20 August 2013

Hadeesi Hadse 98


सूरह लानत 
एक सहाबी हिलाल मुहम्मद इब्न उमय्या अपनी बीवी पर , दूसरे सहाबी शरीक इब्न सहमा पर तोहमत लगते हुए मुहम्मद के पास मुक़दमा लाया कि मेरी बीवी के साथ इसने जिना किया . मुहम्मद ने उलटे उससे गवाह तलब कर लिया बसूरत दीगर कोड़ों की सज़ा के लिए उसे तय्यार रहने को कहा . वह फ़रियाद करता रहा - - - 
या रसूलल्लाह अगर कोई शौहर अपनी बीवी को किसी के साथ जिना कराते हुए देखे तो ऐसे मौक़े पर वह गवाह तलाश करने चला जाए ? मगर मुहम्मद बज़िद थे कि तुम्हें गवाह तो लाना ही होगा , वर्ना कोड़े बरसाए जाएँगे। 
हिलाल ने कहा क़सम है उस रब की जिसने आपको रसूल माबूस किया , मैं बिलकुल सच्चा हूँ , अल्लाह तअला ज़रूर कोई न कोई ऐसा हुक्म फरमाएगा जिस से मेरी पीठ सज़ा से बरी होगी ;
इतने में जिबरील आयत ए लअन लेकर आए जिसे मुहम्मद ने हिलाल को सुनाई .
  हिलल ने उतरी हुई आयत के मुताबिक गवाही शरई दी जिसके तहत मुद्दई को चार बार अल्लाह की क़सम खानी पड़ती है और पांचवीं बार अगर झूटी क़सम खाया है तो अल्लाह से अपने लिए अज़ाब की दरख्वास्त करे, हिलाल ने जब कसमें खा लीं तो उसके बाद उसकी मुल्ज़िमा बीवी ने भी उसी तरह की क़सम खा ली . 
(अल्लाह की आयत ए लअन के ज़रीए भेजा गया हल नाकाम रहा यानी मुहम्मद का झूट और उनकी तिकड़म फेल रहे। यह वक़ेआ उस वक़्त का है जब आयशा पर इलज़ाम लगा था और मुहम्मद ने गवाही का सहारा लेकर आयशा पर लगे दाग को धोया था )
मुहम्मद ने दूसरा लाल बुझक्कड़ी हल देकर मुक़दमे से जान छुड़ाई , कहा 
अगर इस औरत का बच्चा काली आँखों वाला ,मोटी सरीन वाला और दराज़ पिंडलियों वाला हुवा तो वह मुलज़िम  का होगा . मुहम्मद ने खिसयाकर कहा 
अगर अल्लाह की यह आयत नाजिल न हुई होती तो मैं होता और यह औरत होती . 
(बुख़ारी १७००)

ऐसे लअन के कानून पर लअनत है जिसमे मर्द और औरत दोनों क़सम खाकर बरी हो जाएँ , जिसमें कि कोई एक झूठा है। जिहालत की बात यह है कि जैसे मुबाशरत सिर्फ़ बच्चा पैदा करने के लिए की जाती है कि बस एक शाट में बच्चा ठहर जाएगा और बच्चे की शबाहत बाप पर ही जाएगी . 
खुद मुहम्मद खदीजा के बाद अपनी दस बीवियों के साथ जिना जैसी हरकत हर रोज़ करते रहे मगर चुहिया भी न हुई .
मुहम्मद खुद अपने अल्लाह की भेजी हुई आयत पर शक़ कर रहे हैं और कहते हैं 
अगर अल्लाह की यह आयत नाजिल न हुई होती तो मैं होता और यह औरत होती .
मुसलामानों !
ऐसे फर्जी और कमज़ोर रसूल पर और उसके झूठे अल्लाह पर कब तक ईमान रक्खोगे ?
ज़वाल पर तो हो ही, पामाल हो जाओगे , जागो .  

अल्लाह को अपनी तारीफ़ पसंद है 
मुहम्मद कहते हैं कि अल्लाह से बढ़ कर कोई और ग़ैरत दार नहीं . इसी लिए उसने हर एह को ज़ाहिरी या बातिनी बे हयाई से मना किया है . चूँकि अल्लाह को अपनी तारीफ़ पसंद है , इस लिए उसने अपनी तारीफ खुद बयान की है .
(बुख़ारी १६८६)

मुहम्मद ने यहाँ पर साफ़ किया है कि वह खुद अल्लाह हैं . 
मुहम्मद का अल्लाह इन्तेहाई दर्जा बेगैरत और बेशर्म है जो खुद नुमाई और खुद सताई पसंद करता है . मुहम्मद ने पूरे क़ुरआन में अल्लाह की तारीफ की है और इसे अल्लाह का कलाम बतलाया है . 
कोई औसत इंसान अपनी तारीफ कराना पसंद नहीं करेगा , अल्लाह को इसकी परवाह ही नहीं कि उसे पूजा जा रहा है या गालियाँ दी जा रही हैं . 
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनना पसंद करते हैं, ऐसे लोगों की समाज में क्या हैसियत होती है ?
बहर कैफ अल्लाह का मिज़ाज एक औसत दरजे के इसान से भी कम है , इस बात का लिहाज़ क़ुरआन पढ़ते वक़्त रहे कि कुरानी अल्लाह कोई और शै नहीं बजुज़ मुहम्मद . वही अल्लाह हैं , वही रसूल हैं . वाक़ई गज़ब की तरकीब तलाश की है मुहम्मद ने अल्लाह को अपने खू में ढ़ालकर . जब तक बेवकूफ इस ज़मीन पर मौजूद रहेंगे मुहम्मद का नाम और काम जिंदा रहेगा . 
हमारे खानदान में नया नया इस्लाम दाखिल हुवा था , कई पुश्तें कुफ्र को छोड़ने में लगीं फिर उसके बाद कई पुश्तें नमाज़ सीखने में लगीं। मैं चौदहवीं पुश्त में हूँ और हमसे तीन पुश्त पहले नमाज़ कुछ इस तरह भी अदा की जाती थी - - - 
 अल्ला मियाँ तुम हिन् , रसूल मियाँ तुम हिन् ,
हम उठ्ठा बैठी करी , कबूल करो तुम हिन् .
डेढ़ सौ साल पहले हमारे बुजुर्गों के लाशऊर में अल्लाह और मुहम्मद की जो हकीकत थी , वही सच साबित हो रही है ,

शर्मनाक खुद नुमाई 
मुहम्मद ने कहा क़यामत के रोज़ मैं अव्वलीन और आखिरीन का सरदार रहूँगा , जिसकी सूरत ये होगी कि अल्लाह अव्वलीन और आखिरिन को एक चटयल मैदान में जमा करेगा जहाँ मनादी की आवाज़ बखूबी सब को पहुँच सके और नज़र सब को देख सके . चूँकि आफ़ताब सरों से बहुत नज़दीक होगा , इस लिए लोग निहायत तकलीफ और मुसीबत में मुब्तिला होंगे . इस मुसीबत से नजात पाने के लिए लोग आपस में सलाह मशविरा करेगे कि किसके पास चलें कि जो अल्लाह से हमारी मदद की सिफारिश कर सके . 
सब से पहले लोग आदम के पास जाएँगे और सब के बाप होने का वास्ता देकर मदद करने को कहेंगे . आदम कहेंगे कि अल्लाह तअला आज बहुत गुस्से में है कि इतना पहले कभी भी नहीं था . मैं ममनूआ शजर खाकर अल्लाह का नाफरमान बन्दा हूँ और मुझे खुद अपने नफ़स की पड़ी हुई है तुम किसी दूसरे के पास जाओ .
आदम के बाद लोग नूह के पास जाएँगे . नूह भी कहेंगे आज अल्लाह तअला बहुत गुस्से में है कि ऐसा कभी नहीं देखा गया . मेरी एक दुआ मकबूल होने वाली थी , वह मैंने अपनी उम्मत के लिए अज़ाब मांग कर पूरी कर ली . मुझे  खुद अपने नफ़स की पड़ी हुई है तुम किसी दूसरे के पास जाओ .
इसके बाद लोग हज़रात इब्राहीम के पास जाएँगे , इनका रवय्या भी आदम और नूह जैसा ही होगा . वह भी अपने तीन जुर्म कुबूलते हुए कहेगे मुझे खुद अपने नफ़स की पड़ी हुई है, तुम किसी दूसरे के पास जाओ .
इसी तरह मूसा के पास जाने और मायूस होकर वापस आने का वक़ेआ होगा . मूसा को भी दुन्या में एक मिसरी के खून कर देने का वक़ेआ याद आएगा , वह भी कहेंगे मुझे खुद अपने नफ़स की पड़ी हुई है, तुम किसी दूसरे के पास जाओ .  
इसके बाद लोग हजरत ईसा के पास जाएँगे , उनका भी हाल कुछ ऐसा ही होगा और उनको भी अपनी जान की पड़ी होगी 
आखीर में लोग थक हार के मुहम्मद के पास आएँगे जिनका अगला पिछला सब गुनाह अल्लाह ने मुआफ़ कर रखा है , मुहम्मद चटयल मैदान की गर्मी से परेशान हाल लोगों का मसअला लेकर अल्लाह के पास जाएँगे और ऐसी हम्द ओ सना करेगे कि  गाऊदी अल्लाह का गुस्सा काफूर हो जाएगा और भरभराते हुए उनकी उम्मत जन्नत में घुस जाएगी .
(बुख़ारी १६९४) 

*गौर तलब है कि मुहम्मद ने जिनके कन्धों पर इस्लाम और क़ुरआन को ढुलवाया है ,उन सब को पछाड़ दिया , इतना ही नहीं सब को किसी न किसी जुर्म का मुजरिम करार दे दिया . अपने आबा इब्राहीम को भी नहीं बख्शा कि जिनके नाम को लेकर इस्लाम को दीन ए इब्राहीमी कहा . इस हदीस से अहसास होता है कि  मुहम्मद में किस दर्जा खुद सरी और खुद सताई थी . खुद गरजी तो कूट कूट कर भरी हुई थी .
 ऐसे रसूल की उम्मत होना मुसलमानों की बद नसीबी नहीं तो और क्या है . खुद को अल्लाह का रसूल बतलाना ही बड़ा झूट था . अपने बुजुर्गों को खुद से कमतर साबित करना कितना शर्मनाक है . सारी दुन्या मुहम्मद की नाख्वान्दा असलियत को जानती है सिवाय मुसलमानों के जो जानते हुए भी अनजान बने बैठे हैं , जाने किस होनी का इंतज़ार है इनको 
  

जीम. मोमिन 

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