Tuesday 6 August 2013

Hadeesi Hadse 96


हाकिम और औरत ?
अबूबकर कहते हैं कि  मुहम्मद को खबर हुई कि शाह ईरान के मौत के बाद इनकी क़ौम ने इनकी बेटी को हुक्मरां बना दिया , 
कहा जो क़ौम किसी औरत को हाकिम बनाएगी , वह कभी फलाह याफ़्ता नहीं होगी .
(बुख़ारी१६४२)

कुरान के मुताबिक़ औरतें मरदों की खेतियाँ होती हैं यहूदी ईसाई मुसलमान और हिन्दू लगभग तमाम धर्मों ने औरतों को खेतियाँ ही समझी हैं, इस बात को सुनते सुनते खुद औरत अपने आपको मर्दों की कनीज़ और दासी समझने लगी है . मर्दों ने खुद को मज़ाजी खुदा और पति देव बना लिया है . जब तक औरत खुद अपने आप को नहीं पहचानेगी , उसको कोई मक़ाम नहीं मिल सकता . 

ज़न मुरीद 
मुहम्मद की नाजायज़ औलाद ओसामा बिन ज़ैद से हदीस है कि मुहम्मद ने कहा मर्दों को नुकसान पहुचाने वाला औरतों से ज़्यादा मैंने किसी को नहीं देखा . यह अक्सर खिलाफ़ शरअ काम कऱाती हैं जो मर्द ज़न मुरीद होते  हैं , इनको मजबूर कर देती हैं .    
(मुस्लिम - - - किताबुल ज़िक्र दुआ ओ तौबातुल अस्तग्फ़ार )

ओलिमा की दलीलें हैं कि इस्लाम औरतों को ज़मीन से उठा कर सर पे बिठाता है . किताबों और अखबारों में जब ऐसी खबर पढ़ता हूँ तो खून खौल जाता है . ज़ेर ए लब इनके लिए गालियाँ फूट जाती हैं . क़ुरआन और हदीसों में कहीं एक जुमला भी नहीं मिलेगा जो औरतों को कोई रुतबा अता करता हो बजुज़ इसके की अपने माँ बाप की ख़िदमत करो .
इस्लाम जिन्स ए लतीफ़ की क़ीमत अदा करता है और बस .

अली मौला ऐंड कंपनी 
 हदीस है कि एक रोज़ अली बीमार मुहम्मद की मिज़ाज पुरसी करके बाहर निकले तो लोगों ने उनसे मुहम्मद की हालत दरयाफ्त किया . उनका जवाब था अल्लाह के फज़ल से इफ़ाकः है .
 इसके बाद अब्बास इब्न अब्दुल मतलब (अली के चचा ) ने अली के हाथ पकड़ कर कहा , अल्लाह की क़सम तीन दिन बाद तुम लोग लाठी के गुलाम बन कर रह जाओगे , क्यों कि जो सूरत ए हाल वफात की होती है , मैं इसे खूब पहचानता हूँ , लिहाज़ा हमें चल कर खुद मुहम्मद से मालूम कर लेना चाहिए कि उनके बाद खिदमत ए रिसालत किस कौम के हाथ में रहेगी . अगर हम लोगों में रही तो हमको इसका इल्म हो जाएगा और मुहम्मद हमारे साथ इन लोगों के अच्छे बरताव की वसीयत कर देहगे . 
अली ने कहा अल्लाह की क़सम मैं तो उनसे इससे मुताल्लिक़ कोई बात नहीं करूँगा . अगर उनहोंने इससे हमें मना कर दिया तो हमें लोग खिलाफत देना क़ुबूल न करेंगे .
(बुख़ारी १६४९)
* ये है खुलफ़ा ए राशदीन और उनके रिश्ते दारों के पोल खाते जिनके नाम के साथ जाने क्या क्या लक़ब फ़सिक़ ओलिमा आपको जोड़ने पर मजबूर करते हैं , ख़ास कर अली ऐंड कंपनी उस ज़माने से लेकर आज तक मुहम्मद की पैगंबरी को भुना रहे हैं . यही घटिया चचा अब्बास की बारह पुश्तें हुक्मरान रहीं .   

 मख्लूतुल लुआब 
आयशा की मुहम्मद के आखिरी दिन के बारे में हदीस है . 
वह कहती हैं अल्लाह की नेमतों में सब से बड़ी नेमत ये है कि मुहम्मद ने मेरे घर में , मेरी बारी में ,मेरे सीने और मेरी गर्दन के दरमियान वफात पाई . उस दिन मेरा और मुहम्मद का लुआब भी मख्लूत हुवा .
उनके पास प्याले में पानी रखा हुवा था , उसमे हाथ डाल कर अपने मुंह पर फेरते जाते थे और कहते जाते लाइलाहा इल्लिल्लाह , वाक़ई नबूवत में बड़े सख्त सुकरात हुवा करते हैं . इसी हालत में उन्होंने हाथों को उठा कर कहा अल्लहुम बिल रफीकुल अला , आप की वफात हो गई और उठे हाथ पस्त हो गए .
(बुख़ारी १६५०)

*बात मरने वाले की है कि उसकी फ़ेलों की पर्दा पोशी की जाए , उसके बेहद ज़ाती मुआमलात का ज़िक्र मुनासिब नहीं , मगर जब खुद उम्मुल मोमनीन बेगैरती पर उतर आईं तो कैसे ख़ामोश रहा जा सकता है .
आजके मुहज्ज़ब समाज में जब कुछ दोस्त इकठ्ठा होते हैं तो गुफ्तुगू में जिंसी मौज़ू को मायूब मानते हैं . 
मुहम्मदी हदीसों में जिन्स लतीफ़ की इस क़दर भरमार है कि लगता है उस वक़्त अरबों में खैरियत पूछने और खैरियत बतलाने की जगह की जगह जिन्स की बातें करना मुरव्विज रहा होगा .
भला औरत ज़ात आयशा को क्या ज़रुरत आन पड़ी ये बतलाने की कि वफ़ात के दिन इनका मुहम्मद के साथ जिंसी इख्तेलात भी हुआ . इस तरह उनहोंने खुद अपनी और मुहम्मद की कीमत घटाई है .


जीम. मोमिन 

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