Tuesday 23 July 2013

Hadeesi Hadse 94


फ़तह मक्का 
मुसलमानों का काफला क़बीले वार जब मक्का के करीब पहुंचा तो अबू सुफियान ख़बर गीरी के लिए मक्का से बाहर निकला . मुकाम मजहरान में मशालों की रौशनी देख कर वह और उसके साथी रुके, काफले का अंदाज़ा कर ही रहे थे कि मुहम्मद के मुखबिरों ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और लेकर मुहम्मद के पास गए.
 अवामी हुजूम देख कर अबू सुफ़्यान उसी वक़्त मुसलमान हो गया. मुहम्मद ने अपने लोगों को हुक्म दिया कि इनको यहीं लेकर खड़े रहो. अबू सुफ़्यान वहीँ पर खड़ा खड़ा क़बीलों के क़तार दर क़तार देखता रहा. हर क़बीले के बारे में दरयाफ्त करता रहा 'यह कौन लोग हैं? 
अब्बास क़बीले का नाम बतलाते तो पूछता 
इनसे हम लोगों की क्या गरज़ है ?
आखीर में कबीला ए अंसार निकला जिसका परचम साद इब्न इबादा उठाए हुए थे. उन्होंने अबू सुफ़्यान को देख कर कहा  
अबू सुफ्यान ! आज बड़ा घमसान का दिन है . 
अबू सुफ्यान ने जवाब में कहा, हाँ इबादा, आज हलाक़त का बड़ा दिन है. उसी वक़्त उनके करीब मुहम्मद आए और कहा घबराओ मत, आज कोई घमसान नहीं होगा, आज सिर्फ काबे का ग़लाफ़ बदला जाएगा . 
(बुख़ारी १६०६)  

*मुहम्मद मक्के को खैबर की तरह बर्बाद करना नहीं चाहते थे, क्योंकि मक्के में इनका कबीला और इनकी कौम बस्ती थी , उनका कोई भी नुकसान उनको गवारा नहीं था . 
काबे का गिलाफ उतारा जरहा था तो एक मक्की बाशिंदा इब्न खतल गिलाफ को पकड़ कर ज़ार ओ कतार रो रहा था और गिलाफ को छोड़ नहीं रहा था, लोग मुहम्मद के पास आए और वाकिए की इत्तेला दी . 
मुहम्मद ने हुक्म दिया कि इसे क़त्ल कर दो 
हुजूम और मुहम्मद के ऐसे तेवर को देख कर किसकी हिम्मत थी खुद कशी करता ?
आलिमान इस्लाम गाते हैं की उस दिन कोई खून खराबा नहीं हुआ, गोया लोग ने हैबत में आकर इस्लाम को कुबूल कर लिया।
फ़तह मक्का इंसानियत के लिए बद तरीन दिन था कि इस दिन इस्लाम, इंसानियत पर ग़ालिब हो गया. चौदह सौ सालों से करोड़ों इंसानी जानें इस्लाम के नज़र हो गईं.   
तो जंग जीत ली जाएगी - - - 
मुहम्मद ने कहा एक ज़माना आएगा कि लोग जंग करेगे, झुण्ड के झुण्ड और आपस में एक दूसरे से दरयाफ्त करेगे कि क्या आप लोगों में किसी ने रसूल को देखा है ? 
अगर किसी ने कहा हाँ ! मैंने देखा है, 
तो वह जंग जीत ली जाएगी. 
इसके बाद ज़माना आएगा, जिहाद में लोग पूछेंगे क्या तुम में से किसी ने रसूल के सहाबियों को देखा है ? 
उनमे से अगर कोई कहेगा हाँ ! 
तो उस जंग में फ़तह होगी.  
एक वक़्त आएगा लोग जंग में पूछेंगे कि क्या तुम में से किसी ने ताबेईन को देखा है ? 
उनमे से अगर किसी ने कहा हाँ मैं ने देखा है, 
तो वह जंग जीत ली जाएगी। 
फिर वक़्त आएगा कि तबा ताबेईन को देखने वाले जंग जू जंग जीत लेंगे . (मुस्लिम - - - किताबुल फ़ज़ायल) 

 अजीब ओ गरीब था वह शख्स जो मरने के भी कुश्त खून के लिए निशान दही और अलामतें कायम कर गया . मुस्लिम दुन्या को सर जोड़ कर इस मुजरिम पर गौर करने की ज़रूरत है और इसका सही सही मुक़ाम तय करना चाहिए। मुस्लिम ओलिमा को दर किनार करके जिनका रोटी और रोज़ी इस्लाम है, को दूर रखना होगा। इनके ही छलावे में जो नव जवान हैं उनका रहनुमाई की ज़रुरत है. गैर मुस्लिम दुन्या को भी इस्लाम के बारे में एक न एक दिन सोचना और की कुछ करना होगा। हुकूक इंसानी (हयूमन राइट्स) का तअय्युन अज़ सरे-नव हो जिस में इस्लाम को भी मुजरिम मन जाना चाहिए.      
बुत शिकन 
हदीस है कि जिस दिन मुहम्मद मक्का में दाखिल हुए, ख़ाना ए काबा में 360 बुत थे, मुहम्मद के हाथ में छड़ी थी, इन पर लगाते जाते और एक कुरानी आयत पढ़ते जाते. 
(बुख़ारी १६०७)
मुहम्मद ने ३६० पत्थर के बुत हटा कर एक हवा का बुत काबे में नस्ब कर दिया,उसका नाम वहदानियत रखा. वह ३६० बुत नहीं थे बल्कि दुन्या के ३६० तबकों और तहजीबों की अलामतें थीं, जैसे आज अक़वाम मुत्तह्दा में उसके मेंबर देशों के परचम लहरा रहे हैं. मुहम्मद को इतना शऊर कहाँ था, इतनी वसअत कहाँ थी कि इस बारीकी को समझते. इनकी उम्मत इनकी बख्शी हुई उम्मियत को ही 1400 सालों से जी रही है . 


जीम. मोमिन 

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