Wednesday 3 July 2013

Hadeesi Hadse 91 --१५४७-


मुस्लिम - - - किताबुल फ़ज़ाइल 
सहाबी अनस कहता है - - -
मुहम्मद ने पानी माँगा तो एक कडा लाया गया , फैला हुवा, लोग इसमें से वजू करने लगे . मैंने अंदाज़ा लगाया तो 60से 80 लोग थे . मैं पानी को देख रहा था जो आपकी (मुहम्मद की) उँगलियों से फ़ूट रहा था
हदीसों की दुन्या में अनस झूठा तरीन इंसान था. कई हदीसें इससे मंसूब हैं . इसका ज़रीया मुआश गालिबन हदीस तराशी रहा होगा . मक्का से हिजरत में मुहम्मद भूक और प्यास के शिकार जब अपने लिए कुछ न कर पाए तो ऐसी हदीसें क्या मानी रखती हैं .  
 बुखारी १५४७ 
जंग बदर में मुहम्मद की क़ल्ब सियाही
हदीस है कि जंग ए बदर की फतह के बाद मुहम्मद ने कुरैश सरदारों की बीस लाशें एक पक्के कुवें में फिकवा दिया . मुहम्मद का क़ायदा था क़ि जब किसी कौम पर फतह पाते तो उस मुकाम पर तीन दिन कयाम करते थे, तीसरे दिन मुहम्मद घोड़े पर सवार होकर लोगों के साथ उस कुवें पर गए जिसे लाशों से पटवा चुके थे. वहां उन्होंने सभी मक्तूलीन का नाम मय उनकी वल्दियत के साथ पुकारा और कहा " ऐ फलां इब्न ए फलां क्या तुम्हें अब मालूम हुवा कि तुम्हारे लिए अल्लाह और उसके रसूल की इताअत अच्छी थी ? हमने तो अपने रब के वादे को पूरा पाया , क्या तुमने भी इसके वादे को पूरा देख लिया ?"
यह खिताब सुन कर खलीफा उमर आगे बढे और अर्ज़ किया "या रसूल अल्लाह आप ऐसे जिस्मों को ख़िताब कर रहे हैं जिनमें रूह नहीं "  
मुहम्मद ने कहा उस जात की क़सम जिसके कब्जे में मेरी जान है ,यह लोग जितना मेरी बातें सुनते हैं उतना तुम भी नहीं सुन सकते , सिर्फ इतनी सी बात है कि यह जवाब नहीं दे सकते ."
दूसरी हदीस 
 किताबुल जन्नत वसिफ़्ता
*अनस बिन मालिक से रवायत है की मुहम्मद ने जंग बदर में  मकतूलीन की लाशें तीन दिनों तक मैदान में पड़ी रहने दिया और सडती रहने दिया , फिर लाशों के पास जाकर नाम बनाम एक एक को अपने रिसालत की कामयाबी जतलाई . इसके बाद सभी को बदर के कुवें में फिंकवा दिया .

अभी हाल में ही कारगिल की जंग में बरामद होने वाली पाकिस्तानी फौजियों की मय्यतों को भारतीय फौजजियों ने बाद नमाज़ जनाज़ा दफन कर दिया ,यह था एक गैर इस्लामी मुल्क का किरदार . इंसानों के लिए अल्लाह के रसूल का दावा करने वाले मुहम्मद ने उन इंसानी लाशों के साथ जो सुलूक क्या उसे सुन कर सर शर्म से झुक जाता है . वह लाशें जो मुहम्मद के बुजुर्गों और अजीजों की थीं .
यह तो थी उनकी इन्फ्रादियत के साथ सियाह क़ल्बी , और इज्तेमैयत के साथ उनका जुर्म यह था कि अरब के कीमती कुएँ को लाशों से पटना , वह भी अरब जैसे वीरान मुल्क का कीमती कुवाँ जो कि पक्का हुवा करता था . मुहम्मद की तहरीक का कोई हिस्सा भी तामीरी नहीं है . न कुँए की तामीर न शाहराहों की तामीर न शजर कारी न सरायं न अवाम के लिए फलाह ओ बहबूद के कोई काम . हैरत का मुकाम है कि ऐसे मूजी शख्स को लोग सदियों से दरूद ओ सलाम भेज रहे हैं . 
ज़मीनी सच्चाई यह है कि किसी चोर डकैत और लुटेरे की लूटी हुई दौलत उसके औलादों के काम नहीं आती बल्कि नफी में उल्टा ले जाती है . इसी तरह ज़ुल्म ओ ज्यादती और झूट पर कायम मज़हब इसकी उम्मत के लिए मुज़िर ही साबित होगा . इस्लाम ने जितनी भी ज्यादतियां इन्सान और इंसानियत के साथ की हैं , सब इसके मानने वालों को भुगतना पद रहा है . इस्लाम को जल्द अज जल्द तर्क करने की ज़रुरत है .    
बुखारी १५५८ 
पेड़ भी काफिर 
इब्न ए उम्र से रवायत है कि मुहम्मद ने बनू नुज़ैर के मुकाम बवेरा में तमाम बाग़ात में आग लगा दी थी और तमाम दरख़्त काट कर फेंक दिए थे और कहा यह अल्लाह का कुरानी हुक्म था . 
शख्सियत के पुजारियों ! अगर पूजा ही तुम्हारी खुराक है तो किसी हस्ती ए सिदक की पूजा करो. मुहम्मद की दारोग तरीन ज़िदा बुत की पूजा क्यों ?  पेड़ को काट डालना और बागात को आग के हवाले करना अज़ाब ए जारिया है , जिस अल्लाह ने इस काम की राय दी होगी वह खुद में गुनाहगार और मरदूद है.  


जीम. मोमिन 

No comments:

Post a Comment