
अज़ल औरत के साथ
सहाबी अबू सईद खिज़री कहते हैं कि जब हम लोग गिज़वः (जिन लूट मार में मुहम्मद शामिल हुए उन्हें गिज़वः कहते हैं ) के सफ़र में थे तो हमारे साथ गिज़वः के कुछ कैदी थे. उस वक़्त हम लोगों को औरतों की कुछ ज्यादह ही ज़रुरत महसूस हुई क्योंकि हमारे साथ हमारी बीवियाँ न थीं. हमने बाँदियों के साथ अज़ल करने का इरादा किया. इस फ़ेल के बाद मुहम्मद से दरयाफ्त किया. उनहोंने कहा तुम लोगों को अज़ल करने में कोई नुकसान नहीं, क्योंकि जो रूह पैदा होने वाली है, वह होकर रहेगी .
(बुख़ारी १५७८)
अबू सईद खिदरी कहते हैं कि हम लोगों को कुछ औरतें क़ैदी मिलीं और हम उनके साथ अज़ल करने लगे. मुहम्मद से पू छा, उन्हों ने कहा तुम ये करते ही रहोगे, जो रूह पैदा होने वाली है वह क़यामत के दिन तक ज़रूर पैदा होगी.
(मुस्लिम - - - किताबुल निकाह)
*अज़ल औरत के साथ ऐसे मुबाश्रत को कहते है कि ख़ुरूज से पहले तानासुल को बाहर कर लिया जाय जिससे हमल का अंदेशा नहीं रहता. देखिए कि मुहम्मद का ज़ेहनी मेयार क्या है। इस्लाम में औरत को मुकामी दर्जा है, इस पर सफ़हात रंगने वालों के मुंह पर अजली गलाज़त मल देनी चाहिए. जिना पर सौ कोड़े की सजा मुक़ररर करने वाले पैगम्बर बतलाएं कि क़ैदी और बांदी बन जाने वाली औरतें क्या माँ और बहने नहीं रह जातीं ? पैगम्बरी मर्तबा तो ये है कि मजलूम औरतों की इज्ज़त दोहरी हो जाए और वह इसलाम में आने के बाद महफूज़ हो जाय .
ज़ालिम पैग़म्बर
अनस कहता है कि खैबर में रात के वक़्त मुहम्मद ने मफ्तूहीन को क़त्ल करने के बाद इनके बीवी बच्चों को क़ैद कर लिया .
(बुख़ारी १५८९)
ये है इस्लामी पैगम्बर का इंसानी किरदार जिसकी मिसाल दुन्या में कहीं नहीं मिलेगी.फ़तह पाने के बाद उमूमन मुखालिफ को क़ैद कर लिया जाता था और बाल बच्चों का तो कोई कुसूर ही नहीं होता जिनको क़ैद करके मुसलमान खुले बाज़ार में नीलाम और फरोख्त किया करते थे. ऐसे ज़ालिम शख्स की पैरवी मुसलामानों को आज की दुन्या में कैसे सुर्ख रु कर सकती है .
अबू सुफ़्यान का ख़्वाब
अब्दुल्ला बिन अब्बास से हदीस है कि अबू सुफ़्यान मुहम्मद से कई बार लड़ा था और मुहम्मद का बद तरीन दुश्मन था . एक दिन मुहम्मद से बोला - - - ऐ अल्लाह के नबी मेरी तीन बातें मानिए।
मुहम्मद ने कहा, कहो.
उसने कहा पहली बात मेरी बेटी हबीबा से, जोकि दुनयाँ की खूब सूरत तरीन औरत है, निकाह कर लीजिए.
मुहम्मद ने कहा अच्छा !
फिर उसने कहा मेरे बेटे माविया को अपना मुंशी बना लीजिए.
मुहम्मद ने कहा अच्छा !
फिर कहा मुझे काफ़िरों के साथ जंग करने की इजाज़त दीजिए, जैसा कि क़ब्ल इस्लाम मैं मुसलमानों के साथ लड़ता था. मुहम्मद ने कहा अच्छा !
(मुस्लिम - - - किताबुल फ़ज़ाइल)
मुहम्मद के हर अच्छा पर उनके मन में लड्डू फूटते थे, सुफ़्यान तो उनके दिल की बातें ही शर्त बना कर रखता था. मुहम्मद ने उसकी सारी बातें मान लीं.
मुहम्मद की विरासत के लिए अबू सुफ़ियान, अली के मुक़ाबिले में बेहतर ही था, अली मुहम्मद के लेपालक थे और अबू सुफ़ियान मद्द ए मुक़ाबिल था. इस्लाम का बद तरीन दुश्मन होने के बाद भी मुहम्मद को अज़ीज़ था. मुहम्मद उसकी नस्लों के ख़ैर ख्वाह थे जिसने बारह पुश्तों तक हुकूमत की. उनको गुमान भी नहीं रहा होगा की अमीर माविया एक दिन क़बरस और यूनान तक अपना परचम लहराएगा .
मुसलमान होने का पछतावा
ओसामा बिन ज़ैद से हदीस है कि मुहम्मद ने लोगों को कबीला ए ख़ज़ाआ खिरका से जंग के लिए भेजा। जब कुफ़्फ़ार पर हम लोग ग़ालिब होने लगे तब मैं और एक अंसार ने मिल कर एक काफ़िर का पीछा करने लगे. उसने हमें ग़ालिब होता देख कर फ़ौरन कलिमा लाइलाह पढ़ लिया. ये सुन कर मेरे साथी ने पेश कदमी रोक ली लेकिन मैं ने अपना नेज़ा बढ़ा कर उसको क़त्ल कर दिया.
जंग से वापस आकर पूरा वाक़ेआ ओसामा ने मुहम्मद को सुनाया. सुनकर मुहम्मद ने कहा
ओसामा तुमने कालिमा पढ़ लेने के बाद भी उसको क़त्ल कर दिया ?
ओसामा ने कहा उसने अपनी जान बचाने के लिए कालिमा पढ़ा था लेकिन मुहम्मद ने कल़ाम को इस क़दर दोहराया कि मैंने दिल में कहा
'काश मैं इस दिन से पहले मुसलमान न हुवा होता.
(बुख़ारी १६०१)
* मुहम्मद की हठ धर्मी पर ओसामा के दिल में एक बग़ावत की आवाज़ पैदा हुई कि मुहम्मद किस दर्ज खुद पसंद थे कि उनके नाम का झूटा सहारा भी कोई ले रहा हो तो उसे क्यों मार जाए.
इस हदीस को ओलिमा अक्सर दोहराते हैं मगर अधूरी. कभी भी ओसामा के दिल में उठने वाला दर्द मंज़र ए आम पर नहीं लाते.
जीम. मोमिन
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