Tuesday 9 July 2013

Hadeesi Hadse 92



बुख़ारी 1560
कअब बिन अशरफ़ से बदला 

 हदीस है कि मुहम्मद ने अपने सहाबियों को मुखातिब होकर कहा तुम में से कौन ऐसा शख्स है जो कअब बिन अशरफ़ की तरफ से मेरे दिल को खुश करे ? क्योंकि इसने अल्लाह और अल्लाह के रसूल को तकलीफ दी है . 
यह सुनकर मुहम्मद इब्न मुस्लिमा ने पूछा या रसूलिल्लाह क्या आप चाहते है उसे क़त्ल कर दिया जाय ?
मुहम्मद ने कहा हाँ .
मुहम्मद बिन मुसल्लिमा ने एक साज़िश रची और कअब बिन अशरफ़ के पास गया और कहा मुहम्मद ने मुझे एक मुसीबत में डाल दिया है , वह हम से सदका तलब करता है , तुम मुझे एक या दो दशक खजूरें क़र्ज़ दो ताकि मेरी जान छूटे . 
कअब बिन अशरफ़ ने इसके बदले उसकी बीवी और बच्चों को रहन रखने की शर्त रखी जिसे वह टाल गया मगर अपने हथ्यार रहन रखने पर राज़ी हो गया और रात को आने का वादा करके चला गया . 
रात को जब वह कअब बिन अशरफ़ के घर पहुंचा तो उसके रिश्ते का भाई अबू नायला इसकी साजिश में शामिल हो गया । अबू नायला ने कअब बिन अशरफ़ को आवाज़ लगाई और मुस्लिम के आने की इत्तेला दी . 
कअब बिन अशरफ़ अपने रजाई भाई की आवाज़ सुन कर मुतमईन हो गया और दरवाज़ा खोल दिया। कुछ देर बाद ही दोनों ने मिल कर कअब बिन अशरफ़ का काम तमाम कर दिया .
  
**मुन्ताकिम अल्लाह के मुन्ताकिम रसूल की बातनी सूरत देखिए जिनको मुसलमान सरवरे कायनात कहते हैं कि अपनी ही उम्मत से कितना बोग्ज़ रखते थे , किस क़दर कीना परवर थे . सहाबए किराम का घटिया तरीन किरदार देखिए कि जिन्हें आप अपने ईमान का मीनार तसुव्वर करते हैं , किस कद्र गलीज़ हुवा करते थे . ज़्यादः तर मुहम्मद के साथी ऐसे ही थे जिनका हम गुणगान करते करते नहीं थकते . यह सब उन ओलिमा की बरकत है जिनको मैं "अपनी माँ के ख़सम" लिखता हूँ .
 मुहम्मद अपने रकीब को क़त्ल करके दिल की ठंडक महसूस करते हैं और दावा करते हैं पैगम्बरी का , आज के माहौल में इसे माफिया सरगना का कारनामा कहा जाता है . इनकी पैरवी करते हुए अरब हुक्मरानों ने अपने हरीफ के साथ हमेशा यही सुलूक किया है . तारीख इस्लाम देखें , पाएँगे कि बहुत कम हुक्मरानों ने लंबी उम्र और फितरी मौत पाई है . अफ़सोस और हैरत का मुक़ाम यह है कि मुहम्मद जिनके अन्दर दूर दूर तक आला इंसानी क़दरों की झलक तक नहीं थी , उनकी बड़ी उम्मत मौजूद है, ऐसे रहनुमा की उम्मत का जो हशर होना चाहिए वह मुसलमानो की शक्ल में मौजूद है . मुसलमानों की पस्ती की वजह इनका पैगम्बर है और उसकी रची हुई कुरआन सामने है , कहीं जाने की ज़रुरत नहीं है 
मुस्लिम - - - किताबुल मसाइल 

अब्दुल्ला बिन उमर कहते हैं कि हम ज़ैद बिन हारसा को ज़ैद बिन मुहम्मद कहा करते थे , इस लिए कि आपने_(मुहम्मद ने) इसे गोद लिया था , यहाँ तक कि कुरान में उतरा 
"पुकारो इन्हें इनके बापों की तरफ निस्बत करके , यह अच्छा है अल्लाह के नज़दीक . "
*यह अब्दुल्ला बिन उम्र की मुस्तनद गवाही है की ज़ैद एक ज़माने तक मुहम्मद का बेटा रहा जिसकी बीवी जैनब से मुहम्मद ने नाजायज रिश्ता बना लिया थ। बाद में इसे बिन ब्याही बीवी बना कर जिंदगी भर इस्लामी कानून के एतबार से हराम कारी करते रहे ऐसे सैकड़ों मुआमले हैं जिसके तहत मुहम्मद पर बार बार संग सारी की जा सकती है. 
 
बुख़ारी १५६१ 
मुन्तक़िम रसूल 

मुहम्मद का एक कट्टर मुखालिफ अबू राफ़े नाम का एक ताजिर हुवा करता था जो कि बड़ा मुखय्यर था और मदीने में किला बनवाकर रहता था . इक़्तेदार में आने के बाद मुहम्मद ने इसे सजा देने की ठान ली . उन्होंने उसे क़त्ल कर देने का मंसूबा बनाया . इसके लिए उन्हों ने अब्दुल्ला इब्न अतीक के साथ कुछ अंसारियों को रवाना किया . दिन ढल रहा था , उसने अपने साथियों को किले के बाहर छिपा दिया और खुद दरबान को एतमाद में लेकर किले के अन्दर दाखिल हो गया . इसने अन्दर जाकर देखा कि अबू राफे अपने अहबाब के साथ किस्सा गोई का लुत्फ़ ले रहा है .वह वहीँ दुबक कर बैठ गया और महफ़िल के ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगा . जब सब चले गए तो अबू राफे अपने बाल बच्चों से मह्व गुफ्तुगू था . अतीक चराग बुझने का इंतज़ार करने लगा , अँधेरा होते ही उसने अबू राफ़े को क़त्ल कर दिया और क़िला फांद कर बाहर आ गया, जिसमे इसका एक पैर भी टूट गया . इसने मुहम्मद के पास आकर पूरी रूदाद सुनाई और शाबाशी भी इनाम के साथ साथ लिया . 

  *क्या यह ओछी हरकत किसी पैगम्बराना शान के शायान ए शान है ?
मुहम्मद को इनके जाँ निसार मुहसिन ए इंसानियत कहते हैं जब कि मुहम्मद अपने मुखालिफों के बद  तरीन दुश्मन थे . उनकी ज़ालिमाना फितरत का आइना दार क़ुरआन है जो इन्तेकामी आग से भरा हुवा है . मुहम्मद को अपना अदना से अदना मुखालिफ भी गवारा न था . 

बुखारी १५६४ 
तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान 

सहाबी सईद इब्न वेक़ास कहते हैं कि मुहम्मद जंगे ओहद के दिन अपने तमाम तीर तरकश से निकाल निकाल कर हमें देते जाते थे और कहते जाते थे कि तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान , तीर मारे जा. 
**मुहम्मद की माँ इनके पैदा होने के कुछ साल बाद ही अल्लाह को प्यारी हो गई थीं और बाप इनकी विलादत से पहले ही बीमार होकर मर गए थे . यही इनकी बद नसीबी है. अगर मां बाप का साया इन के सर पर इनकी उम्र पयंबरी तक कायम रहता तो यह उनको एक एक तीर पर कुर्बान न करते, जिनके पैरों तले बच्चों की जन्नत दबी हुई होती है उनकी शान में ऐसा मुहाविरा रायज न करते . 
इसी तरह उनकी कोई बड़ी या छोटी बहन होती तो औरतों के हक में ऐसी नाज़ेबा हदीसें न बघारते . सच तो यह है क़ि मुहम्मद अपने भाई बहन जैसे खूनी रिश्तों से महरूम रहे हैं ,जिस से फर्द में हुब्ब और एहतराम का जज्बा पनपता है . वह इसी लिए हर मौके पर इंसानी खून के प्यासे नज़र आते हैं उनमे एक बद तरीन खू यह थी कि वह अपने बुजुर्गों और मोह्सिनो के हक़ में एहसान फरामोश थे . अबू लहब उनके ऐसे चचा थे जिन्होंने इनकी विलादत की ख़ुशी में अपनी बांदी को आज़ाद कर दिया था और उसे भतीजे के लिए दूध पिल़ाने की नौकरी दे दी थी , वजह ये कि मुहहम्मद उनके मरहूम भाई अब्दुल्ला की निशानी थे.  
उनहोंने मुहम्मद को इतना निभाया कि मुहम्मद की दो बेटियों को अपनी बहू बना लिया था . अबू लहब का कुसूर सिर्फ इतना था कि जब मुहम्मद ने अपने पयंबरी का जब एलान किया तो उन्हों ने इनको झिड़क दिया था . दर असल यह तो उसका कोई कुसूर ही न था. अबू लहब पर सूरह लहब उतार कर मुसलमानों की नज़र में हमेशा के लिए उनको रुसवा कर गए मगर उनकी एक पहचान बन गई कि वह अमर हो गए. 
अबू लहब इंसानियत के आईने में एक मजलूम तरीन इंसान है जिसको सुलूकों और एहसानों के बदले मुहम्मद ने उनको वह सजा दी है कि जिसकी मिसाल नहीं मिलती. कहते है कि मरने के बाद उनके घर पर संगसारी इस क़दर कराइ कि  उनका घर दफन हो गया. 


जीम. मोमिन 

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