
जब अबू मूसा हाकिम बना
मुहम्मद ने अबू मूसा और मुआज़ इब्न जबल को यमन की तरफ़ हाकिम बनाकर भेजा और नसीहत की कि लोगों के साथ नरमी और शिफ़्क़त से पेश आएं.
एक रोज़ मुआज़ खैरियत लेने अबू मूसा की तरफ़ निकल पड़े, वहां पहुँच कर देखा कि अबू मूसा अपने खच्चर पर बैठे हुए हैं और उनके गिर्द हुजूम इकठ्ठा है और एक शख्स के दोनों हाथ उसके पुश्त पर बंधे हुए हैं और वह ज़मीन पर बैठा हुवा है . मालूम हुवा कि इसने इस्लाम क़ुबूल करने के बाद फिर कुफ्र पर रागिब हो गया है. मूसा की ज़िद थी कि जब तक इसे कोई क़त्ल नहीं करता, मैं खच्चर से नहीं उतरूँगा। जब इसे क़त्ल किया गया तब मूसा ज़मीन पर आए .
(बुख़ारी 1619)
ऐसे ऐसे घामड के हाथों में इस्लाम की बागडोर हुवा करती थी और इस तरह इस्लामी फरमान मनवाए जाते थे। आजके ओलिमा ऐसे हाकिमो की मिसालें अपनी तकरीरो में फखरिया बयां करते है .
जब कि क़ाबिले ज़िक्र बात ये है कि ऐसे लोग भी हुए हैं जिन्हों ने झूट और शर के आगे अपनी गर्दनें कटवा दीं.
जब अर्श पर पानी था
मुहम्मद कहते हैं अल्लाह तअला ने जब मख्लूक़ की तकदीर लिखी, ज़मीं और आसमान बनाने से पचास हज़ार साल पहले,. इस वक़्त अल्लाह तअला का अर्श पानी पर था .
(मुस्लिम - - - किताबुल क़दीर)
और पानी किस फर्श पर क़ायम रहा होगा ?
या रसूल अल्लाह यह ख़बरें कौन आपको फ़राहम कराता था ?
क्या आप परले दर्जे के झूठे नहीं थे ?
मुसलमान आपके मक्र के चक्र में सदियों से मुब्तिला है .
आपने अपनी उम्मत की सोच को कुत्ते की दम की तरह हमेशा के लिए टेढा कर गिया है .
क़ासिद जर्रीर का मुशरिक को मुसलमान बनाना
यमन में एक मरकज़ी मकान था जहाँ पर मुख्तलिफ़ अक़ायद के बुत रखे हुए थे. उनकी लोग पूजा किया करते थे. वहीँ पर एक शख्स बैठता था जो तीरों से फ़ाल निकाला करता था. एक दिन वहां मुहम्मद का क़ासिद जर्रीर पहुंचा और उससे कहा तीरों को तोड़ डाल नहीं तो मैं तेरी गर्दन उड़ा दूँगा और इस अम्र की गवाही दे कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है. यह सुनते ही उसने अपने तीर तोड़ डाले और मुसलमान हो गया.
(बुख़ारी 1624)
* गौर तलब है कि इस तरह लोगों के सरों पर तलवार लटका कर उन्हें मुसलमान बनाया गया, यही नहीं उनसे अल्लाह के एक होने की झूटी गवाही भी दिलवाई गई . नमाज़ों से पहले अजानों में मुअज़ज़िन से भी इसी किस्म की झूटी गवाही दिलवाई जाती है. यह अजानें दिन में पांच बार दुन्या की हजारो मस्जिद से रिले की जाती है. इन अजानों में एक झूट और जोड़ दिया जाता है "मुहम्मदुर रसूल अल्लाह" यानि मुहम्मद अल्लाह के दूत हैं .
झूट और ब आवाज़ बुलंद
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कहो समामा तुम्हारे क्या हाल हैं ?
अबू हरीरा कहते है कि मुहम्मद ने नज्द के जानिब कुछ सवार रवाना किया जो समामा को क़ैद करके लाए और मस्जिद ए नबवी में उसे बाँध दिया. मुहम्मद उधर से गुज़रे और उससे कहा
कहो समामा तुम्हारे क्या हाल हैं ?
समामा बोला या रसूल अल्लाह मैं खैरियत रखता हूँ, आप चाहें तो मुझे क़त्ल कर दें जिस गरज़ से मुझे लाया गया है और अगर मुआफ़ कर दें, ज़िन्दगी भर आपका एहसान रहेगा, और अगर माल की ज़रुरत हो तो, जिस क़द्र चाहिए फ़रमा दीजिए .
मुहम्मद ख़ामोशी के साथ आगे बढ़ गए .
दूसरे दिन आकर फिर खैरियत दरयाफ्त की
कहो समामा तुम्हारे क्या हाल हैं ?
फिर समामा की फ़रयाद को अनसुना करके आगे बढ़ गए .
तीसरे दिन मुहम्मद उधर से फिर गुज़रे और बदस्तूर अपना जुमला दोहराया .
कहो समामा तुम्हारे क्या हाल हैं ?
उसने फिर मुहम्मद से मिन्नत समाजत की .
महम्मद ने इसे रिहा कर देने का हुक्म दिया।
समामा ने गुसल किया और कलिमा ए मुहम्मदी की गवाही दिया .
(बुख़ारी १६२९)
समामा ने तब तक मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह को तस्लीम नहीं किया था, इस बात की खबर मुहम्मद को पहुंची तो उन्होंने यह तरीका ए कार अख्तियार किया .
अरब के खित्ते में बहुत से समामा जैसे आज़ाद तबअ लोग रहा करते थे. मुहम्मद ने एक एक कर के सब को सीधा किया क़िसी को साज़िश करके क़त्ल करा दिया, किसी को सजा देकर कलमा पढने पर मजबूर किया. इंसानियत के खिलाफ उनके किरदार खुले दागदार हैं जिसे ओलिमा उल्टा जामा ही पहनाते हैं.
जीम. मोमिन