
पक्का मुसलमान कभी ज़मीर में घुस कर एक सच्चा इन्सान नहीं हो सकता. उसकी कमजोरी है इस्लाम. इस्लाम इसकी इजाज़त ही नहीं देता की अपने दिल की अपने ज़मीर का कहना मनो. बड़े बड़े साहिबे कलम देखे कि सच्चाई का तकाज़ा जहाँ होता है वह इस्लाम और मुसलामानों के तरफ़दार हो जाते हैं. आजकल आसाम और म्यामनार की चर्चा हिंदुस्तान की सियासत में कुछ ज़्यादः ही है. दुन्या भर के मुस्लिम सहाफ़ी मसलमानों का रोना रो रहे हैं, जब कि ग़लती न ही ग़ैर मुस्लिमों की है, न मुस्लिमों की, ग़लती इस्लाम मज़हब की है जो कि मुस्लिमों को अपनी डेढ़ ईंट की मस्जिद कायम रखने के लिए मजबूर है, जोकि इस्लाम की तश्हीर और तबलीग के लिए मजबूर कर रही है. अगर मुकामी बन्दे इस ज़हर से नावाकिफ़ है तो बैरूनी तबलीगी इस ज़हर से उनको सींचते रहते हैं. इस्लाम का तकाज़ा है कि दारुल हरम के वफ़ादार रहो और दारुल हरब की ग़द्दारी लाज़िम है. इन हालात में दारुल हरब उनको कैसे और क्यों बर्दाश्त करे
हमें अपनी ज़िन्दगी अपने तौर पर जीना है या आपके गैर फितरी मशविरे के मुताबिक? कि नमाज़ पढो, रोज़े रक्खो, खैरात करो अल्लाह को अनेक शक्लों में मत बांटो, सिर्फ़ एक मेरी बतलाई हुई शक्ल में तस्लीम करो, वर्ना मरने को बाद दोज़ख तुम्हारे लिए धरी हुई है. यह बातें दुन्या की दरोग़ तरीन बातों में शामिल हैं जो मुस्लिम क़लम के गले में अटकी हुई हैं.
मुसलामानों को इस्लाम से ख़ारिज होकर ईमान की बात करने की ज़रुरत है जिसे कि ये ईमान फरोश ओलिमा होने नहीं देंगे. इनका ज़रीआ मुआश है इस्लाम और उसकी दलाली.
अब देखिए की इस्लामी हदीसें क्या क्या बकती हैं - - -
बुखारी ९७७
मुहम्मद कहते हैं कि अगर किसी लौंडी के ज़िना कराने का इल्म उसके आक़ा को हो जाय, उसे सिर्फ समझाने बुझाने की किफ़ायत न करे बल्कि कोड़े से उसकी खबर ले, और अगर दोबारा वह ज़िना करे तो भी कोड़े बरसाए , तीसरी बार अगर ज़िना करे तो उसको किसी के हाथ एक बाल की रस्सी के एवज़ बेच दे.
*ऐमन से लेकर मारया के साथ दर्जनों लौंडियों से खुद ज़िना कारी के मुजरिम मुहम्मद किस मुंह से दूसरे को कोड़े की सजा तजवीज़ करते हैं.
बुखारी ९५९
आयशा ने अपने शौहर मुहम्मद के लिए एक तोशक खरीदी जिस पर बेल बूटे और परिंदों की तस्वीरें थीं, कि उनको तोहफा देंगे. मुहम्मद उसे देख कर कबीदा खातिरहुए, कहा कि क़यामत के रोज़ इन तस्वीरों में जान डालना पड़ेगा. आयशा की खुशियाँ काफूर हो गईं.
*पूरे मुस्लिम कौम की खुशियाँ इस हदीस से महरूम हैं.कि तस्वीर बनाना और घरों में सजाना गुनाह समझते हैं.
बुखारी ९६२
मुहम्मद ने अपनी बीवी आयशा से कहा एक रोज़ कोई लश्कर आएगा कि काबा पर चढ़ाई करने की नियत रख्खेगा, मुकाम बैदा में ज़मीन में धंस जाएगा. आयशा नेपूछा क्या वह लोग भी धंस जाएँगे जिनकी नियत जंग की न होगी, तिजारत की होगी?
*मुहम्मद का जवाब गोल मॉल था, कहा कि क़यामत के दिन सबको उनकी नियत ए नेक या नियत ए बद के हिसाब से उठाया जाएगा
बुखारी ९६3
बाज़ार में मुहम्मद को छेड़ते हुए एक शख्स ने उनके पीछे से आवाज़ दी "अबू कासिम !"
मुहम्मद ने गर्दन मोड़ कर पीछे देखा तो आवाज़ देने वाले ने कहा " मैं ने आप को नहीं बुलाया, कोई और है."
मुहम्मद ने कहा "मेरा नाम रखा जा सकता है, मेरी कुन्नियत नहीं."
* मुहम्मद की कद्रो-कीमत ऐसी थी कि लोग राह चलते उन्हें छेड़ते.
मुहम्मद की बीवी खदीजा ने अपने शौहर से पूछा कि लोग गोश्त हमें भेज देते है, पता नहीं हलाल होता भी है ? मुहम्मद ने कहा बिस्मिल्लाह करके खा लिया करो.
*मगर आजका मुसलमान ग़ैर हलाल गोश्त को किसी हाल में नहीं खायगा,भले शराब गले तक पी ले.
मुहम्मद कहते है कि अपने हाथ की कमाई हुई रोज़ी ही सब से बढ़ कर है. आगे कहते हैं कि दाऊद खुद मशक्क़त की रोज़ी कमाते थे.
*पहली बात तो ठीक है मगर दाऊद एक लुटेरा डाकू से बादशाह बन गया, आप जनाब इसकी हकीकत से नावाकिफ़ हैं.बस उड़ाते हैं.
सहाबी जाबिर कहता है कि एक जिहाद के बाद मैं मुहम्मद के साथ घर वापस हो रहा था, मुहम्मद ने पूछा कि शादी कर लिया है?
मैंने कहा हाँ,
कहा कुंवारी से या ब्याहता से?
मैं ने कहा ब्याहता से .
कहने लगे कुंवारी से किया होता, तुम उसके साथ खेलते, वह तुमहारे साथ खेलती.
*इसी वजेह से इन्हें रंगीला रसूल कहा जाता है. और ओलिमा इन्हें बेवाओं का मसीहा बतलाते हैं.
बड़े भाई इतबा ने छोटे भाई साद को वसीहत की थी कि ज़िमा की लौड़ी का बच्चा मेरे नुतफे से है,जब वह पैदा हो तो तुम उसे ले लेना.
फ़तेह मक्का में इतबा मारे गए और लौंडी ने बच्चा जना,
गोया साद उसको लेने पहुंचे.
ज़िमा के बेटे ने बच्चे को देने से इनकार कर दिया और दलील दी कि बच्चा मेरा भाई है क्योंकि मेरे बाप की मातहती में पैदा हुवा हैं इस लिए मेरा हुवा.
मुआमला मुहम्मद तक पहुँच तो उन्हों ने कहा
बच्चा इब्ने ज़िमा का है हलाकि बच्चे की मुशाबिहत इतबा से मिल रही थी.
कहा ज़ानी के लिए तो पत्थर है.
*मुहम्मद अपने मुआमले को भूल गए जब लौड़ी मार्या से बेटा इब्राहीम पैदा हुवा और एलान्या उसे अपनी औलाद कहा और उसका अकीक़ा भी किया.
कहते हैं हम अल्लाह के रसूल ठहरे, इस लिए मेरे सारे गुनाह मुआफ. ऐसे ढीठ थे तुमहारे पैगम्बर,
ऐ मुसलमानों!
मुहम्मद ने दौरान सफ़र देखा कि एक जगह लोगों का अजदहाम है, मुआमला जानना चाहा, लोगों ने बतलाया कि एक रोज़ेदार पर लोग साया किए हुए हैं. उन्हों ने कहा सफ़र में रोज़ा कोई नेक काम नहीं है, अपनी जन को हलाक़त में मत डालो.
एक शख्स आया और मुहम्मद से कहा
मैं तो मर गया, रोज़े के आलम में बीवी के साथ मुबाश्रत कर बैठा?
मुहम्मद ने उससे पूछा तुम दो गुलाम आज़ाद कर सकते हो?
कहा नहीं.
पूछा दो महीने रोज़े रख सकते हो?
बोला नहीं.
फिर पूछा ६० मोहताजों को खाना खिला सकते हो? बोला नहीं.
इसी दौरान एक थैला सदक़े का खजूर कोई ले आया, मुहम्मद ने थैला किसी को थमाते हुए कहा ये लो सदक़ा गरीबों में तकसीम करदो.
वह बोला या रसूल अल्लाह मुझ से बड़ा गरीब मदीने में कोई नहीं.
मुहम्मद मुस्कुरा पड़े और उसे दे दिया कि लो अपने बच्चों को खिलाओ.
*ऐसी भी हुवा करती थी मुहम्मदी उम्मत .
जीम. मोमिन
मुहम्मद की मौत आयशा के साथ सम्भोग करते समय हुई थी.............!
ReplyDeleteमरते समय उसने कलमा नहीं पढ़ा थाइस बात के प्रमाण हैं की मुहम्मद की मौत सेक्स की अधिकता से हुई थी हदीस-इब्ने हाशाम -पेज ६८२
इन से रवायत है की “मैंने आयशा से सुना की जिस दिन नबी की मौत हुई थी ,उस दिन उनके सस्थ सोने की मेरी बारी थी.सम्भोग करने के बाद उनकी मौत मेर घर में हुई थी .मरते वक्त उनका सर मेरे सीने पर था.
मैं उनकी मौत के लिए खुद को दोषी मानती हूँ.’
आयशा ने कहा की जिस समय अल्लाह ने रसूल को उठाया था,उनका सर मेरी गर्दन के पास था,और वह मुझे चूम रहे थे,उनका थूक मेर थूक से मिल रहा था. उनकी मौत के लिए मैं खुद को जिम्मेदार मानती हूँ,उस समय मेरी किशोरावस्था थी.मैं नादाँ थी मैं तो नबी को और उत्तेजित करना चाहती थी. और कामक्रीड़ा में उनका सहयोग करना चाहती थी.लेकिन अनुभव हीनता के कारण मुझे पता नहीं था किजब कोई बूढा और बीमार व्यक्ती किसी एक जवान औरत के साथ जंगली की तरह संसर्ग करता है ,तो क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं .वरना मैं उनको रोक लेती.
मैंने उस वासना के चरम आनंद के क्षण पर उनको रोकना उचित नहीं समझा.मैं देखती रही,वह मेरी छाती पर लुढ़क गए .
आयशा ने कह कि ,मरते समय नबी ने कलमा नही पढाथा क्योंकि उस समय उनकी जीभ मेरे मुंह के अन्दर थी. सही बुखारी -खंड ७/किताब६२/हदीस१४४
जब नबी मरे तो उनका शरीर अकड़ गया था,और फूल गया था.मुझे समाज में नहीं आ रहा था कि इस दशा में क्या करना चाहए था. दाउद-किताब२० नंबर ३१४७
अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास कहते हैं कि नबी कि लाश को तीन कपड़ों में लपेटा गया था जो नाजरान के बने थे.इन्हीं कपड़ों में उन्हें दफनाया गया था.
यह लेख आयेशा अहमद के अंगरेजी लेख पर आधारित है.आयशा अहमाद ईरानी
बी एन शर्मा
पूरे यहूदी कबीले के मर्दों को मार कर माल असबाब औरतों की लूट के बाद जब मोहम्मद को बताया गया कि “सफिया” नाम की तेज तर्रार जवान औरत कोई और अपने साथ ले जा रहा है जो “आपके” काबिल है तो किसी और को सफिया ले जाने का हुक्म बदल दिया गया और सफिया हरम में शामिल की गई। इस सफिया ने खाने में ज़हर मिला दिया जिससे “हुजूर” की ऐसी तबीयत बिगड़ी कि जिबरील से लेकर अल्लाह के तमाम फरिश्ते और तमाम जिन्नात, हकीम, झाड़फूंक करने वाले हार गए और सफिया भोली सी होकर कहती रही कि “अगर तुम सच्चे पैगंबर हो तो ज़हर से मरोगे नहीं और झूठे हो तो मेरे घरवालों की हत्या का बदला तुम्हारी मौत से ही चूकता है।” यहूदियों ने अनेक बार सवाल किए जिनके जवाब “सिर्फ अल्लाह जानता है” या ऐसे दिए कि उन्हें यकीन हो गया कि पैगंबर “फेक” या फेंकू है और यहूदी पत्नी तो साबित कर ही दिया कि पैगंबरी झूठी थी।
सत्य वचन
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