
बुखारी 649
उमर के बेटे
अब्दुल्ला कहते हैं कि एक रोज़ मुहम्मद,
उमर इब्ने सय्याद
की तरफ
चले. बनू
मुगाला के पास इसको बच्चों
में खेलता हुवा
पाया जो
बालिग होने के क़रीब हो चुका था. इसको मुहम्मद
के आने
की खबर
न हुई,
जब मुहम्मद ने इसे हाथ से थपका तो इसको पता चला.
मुहम्मद ने कहा
"तू इस बात की गवाही देता है कि मैं अल्लाह
का रसूल
हूँ ?"
इसने मुहम्मद
की तरफ
देख कर
कहा कि
"हाँ! मैं इस बात की गवाही देता हूँ कि आप जाहिलों
के रसूल
हैं."
इसके बाद वह कहने लगा कि
"क्या आप इस बात की गवाही
देते हैं
कि अल्लाह का रसूल हूँ?"
मुहम्मद ने उसके सवाल पर कन्नी काटी और
कहा,
"मैं अल्लाह के सभी बर हक रसूलों
पर ईमान
रखता हूँ."
फिर मुहम्मद
ने उससे
दरयाफ्त किया
"तुझको क्या
मालूम होता है?"
उसने कहा "मुझको
झूटी और
सच्ची दोनों तरह की ख़बरें
मालूम होती हैं."
" मुहम्मद ने कहा तुझ पर मुआमला
मखलूत हो
गया है"
फिर कहा "मैं ने तुझ से पूछने के लिए एक बात
पोशीदा रक्खी है?"
उसने कहा "वह दुख़ है."
मुहम्मद ने कहा "दूर हो तू अपने
मर्तबे से हरगिज़
तजाउज़ नहीं कर सकेगा."
उमर ने कहा
"या रसूल
लिल्लाह अगर इजाज़त हो तो मैं इसे क़त्ल कर दूं?"
मुहम्मद ने कहा "अगर ये वही दज्जाल
है तो
तुम इसके
क़त्ल पर क़ादिर नहीं हो सकते, और अगर ये दज्जाल
नहीं तो
इसको मारने से क्या
हासिल?"
राहे-फ़रार के सिवा मुहम्मद
को कोई राह न मिली.
इब्ने सय्याद का नाम एसाफ़ था.
*शाबाश "
एसाफ़ " तू अपने वक़्त का हीरो
था, जिसे मुहम्मद को उनकी हक़ीक़त समझा दी.
तुझको मोमिन सलाम
करता है.
बुखारी६४९
मुहम्मद के चाचा अबू तालिब का जब वक़्त आखीर आया तो
मुहम्मद उनको देखने गए. वहां पर उनके
दूसरे चचा अबू जेहल और कुछ लोगों को मौजूद
पाया. मुहम्मद ने कहा,
" चाचा! कहो ला इलाहा
इल्लिल्लाह, इस कलिमे से मैं खुदा के सामने तुम्हारी
गवाही दूंगा."
इस पर अबू जेहल और ईद इब्न
उम्मीद ने कहा,
"
"अबू तालिब
क्या तुम
अपने बाप
अबू मुत्तलिब के दीन से
मुन्हरिफ़ हो रहे हो?"
अबू तालिब ने कहा,
"मैं अपने बाप अबू
मुततालिब के दीन पर क़ायम हूँ."
इस पर मुहम्मद
ने कहा
"खुदा की क़सम मैं तुम्हारे लिए
मग्फ़िरत की दुआ करता रहूँगा"
अबू तालिब ने मुहम्मद
को पाला पोसा और तमाम उम्र मुहम्मद
के सर परस्त राहे. उन्हें भी अपनी झूटी पैगम्बरी की दावत दी.
दूसरी तरफ मुहम्मद
ने अपनी
उम्मत को
मना किया
है कि
अपने काफ़िर रिश्ते
दारों के
लिए मग्फ़िरत की दुआ मत किया करो. हर जगह
मुहम्मद दोगले साबित हुए हैं.
बुखारी६५०
मुहम्मद किसी जनाज़े
में शरीक
थे कि ज़मीन पर बैठ गए, दूसरे लोग भी
इनके गिर्द बैठ गए. लोगों
ने देखा
कि वह
अपनी छड़ी
से ज़मीन
पर कुछ
नक्श कर
रहे थे,
कहा,
"लोगो! तुम में हर फ़र्द की हक में
दोज़ख और
जन्नत मुक़द्दर में लिखी हुई है."
किसी ने कहा
"अगर ऐसा ही है तो आमाल की ज़रुरत
कैसी? जब
पहले ही
मुक़द्दर लिख दिया गया है."
कहा "जो शख्स फ़रमा बरदार है
उसके किए
फ़रमा बरदारी और
नाफ़रमान के लिए
नाफ़रमानी के अमल आसान कर दिए गए हैं."
सवाल उठता है इस में
शिकायत का अज़ाला
कहाँ है?
बात वहीँ
पर कायम
है. बहुत
से लोगों
को मुहम्मद के जवाब पर सवाल करने की हिम्मत न थी.
अल्लाह उनके लिए अमल आसन
क्यों कर
देता है?
पैदा होते ही पेट से अगर फ़र्द पर दोज़ख और जन्नत लिख दी गई है तो यह इंसान के साथ
अल्लाह की बे ईमानी है और हेह धर्मी है.
फ़र्द तो बे कुसूर है.
बुखारी ६५१-५२-५३
इस्लामी फार्मूला है कि बन्दों
की किस्मत अल्लाह
हमल में
ही लिख
देता है,
फिर बन्दे
के आमाल
क्यों दर्ज किए जाते हैं?
इस मौज़ू पर ओलिमा तरह तरह की दलील गढ़ते
हैं.
अल्लाह कहता
है कि
जिस तदबीर से बन्दा खुद कशी करता है उसी
तरकीब से
अल्लाह जहन्नम में उसको अज़ीयत
पहुंचाएगा. मसलन किसी
बन्दे ने
फाँसी लगा कर खुद कशी की है तो जहन्नम
में उसे
फँसी की
अज़ीयत नाक मौत का सिलसिला
चलता रहेगा वह भी हमेशा,
मौत तो
दोज़ख में है ही नहीं.
जीम. मोमिन
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