Tuesday 21 August 2012

Hadeesi Hadse-49


बुखारी ९००
रमजान का महीना था, मुहम्मद ऊँट पर सफ़र में थे अपने साथी को हुक्म दिया उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ, उसने कहा अभी रोज़ा अफ्तार का वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद फिर उससे अपनी बात दोहराई,
उसने फिर कहा अभी वक़्त नहीं हुवा है.
कुछ देर बाद मुहम्मद ने फिर कहा उतरो मेरे लिए सत्तू बनाओ.
वह उतरा और सत्तू बना कर दे दिया.
मुहम्मद खा पी कर फारिग़ हुए तो कहा जब रात  पच्छिम की तरफ़ से आ जाए तो समझ लो रोज़े का वक़्त आ गया.
जहाँ खुद मुहम्मद इतने लिबरल हैं वहीँ मुसलमान उनके मानने वाले इतने सख्त क्यों होते हैं? उनकी जान पर बन जाय मगर रोज़ा वक़्त से पहले न खोलेगे.
इसी तरह पहले हदीस आ चुकी है की मुहम्मद ने आयशा से कहा गोश्त को हराम हलाल मत देखो और बिस्मिल्ला करके खा लिया करो.

बुखारी ८८३ -८४-८५-८६-८७-88


मुहम्मदी अल्लाह कहता है जो शख्स रमज़ान के महीने में झूट बोलना और झूट पर अमल करना न छोड़ सके, वह खाना पीना भी न छोड़े.

*सिर्फ रमज़ान के महीने में क्यूँ झूट पर पाबन्दी हो? १२हो महीने क्यों न हो ? हदीस से लोगों को रमज़ान के आलावा बाकी महीना झूट की छूट है?

मुहम्मद कहते है रमज़ान के महीने में सब काम इन्सान का उसके लिए है. सिर्फ रोज़ा अल्लाह के लिए. माहे- रमज़ान में दो खुशियाँ ही रोज़्दार  को मुयस्सर हैं, पहली अफ़्तार है, दूसरी अल्लाह से मुलाक़ात होगी.
*ज़ालिम जाबिर अल्लाह से मिलने पर ख़ुशी होगी या खौफ?

अल्लाह के झूठे पयम्बर कहते हैं जो शख्स निकाह करने की ताक़त रखता हो, निकाह करले जो निकाह की ताक़त नहीं रखता वोह रोज़ा रख्खे. रोज़ा इसके वास्ते ऐसा है जैसे खस्सी (बधिया) होना.

* मुहम्मद के इस बात में भी उनकी जेहालत छिपी है. मुस्लमान या खस्सी हो जाय और रोज़े रखे या फिर निकाह करले ताकि रोज़ा से नजात हो.

खुद मुहम्मद तस्लीम करते हैं की हम उम्मी लोग क्या जाने कि महीना कभी उनतीस का होता है तो कभी तीस का.
*जिब्रील अलैहिस्सलाम वे इतनी तवील कुरान याद करा दी, बस बारह अदद महीने के दिन ही न याद करा सके.

मुहम्मद ने रमजान के महीने में बीवियों के पास न जाने की क़सम खाली मगर जिन्स के भूके पयम्बर २९वेन दिन ही किसी बीवी के पास पहुंचे. उसने पूछा कि अप ने तो एक महीने की क़सम खा रक्खी है? बोले महीना क्या उनतीस दिन का नहीं होता?
*जिन्स बेकाबू हो रहा था.



मुहम्मद खुद एतराफ़ करते हैं कि हम उम्मी लोग क्या जाने महीना कभी तीस दिन का होता है तो कभी उनतीस दिन का.

*जिब्रील ने हज़रत को पूरा कुरआन याद करा दिया और बारह महीने में आने वाले दिन न शिख्ला सके.

बुखारी ८७८-79


मुहम्मद कहते हैं कि रोज़े की हालत में लड़ाई झगडा और मूहा चाई मना है, अगर इसका सामना हो जाए तो कहो मेरा रोज़ा है, दोबारा कहो मेरा रोज़ा है.

*अगर सामने वाला मारने मरने पर उतर आए?

इसक कोई जवाब मुहम्मद के पास नहीं है.


रोज़े दारों के मुंह से अक्सर बदबू आती है. बदबू ऐसी कि उनके साथ बात करना भी मुहक्ल हो जाता है. 
मुहम्मदी अल्लाह को यह बदबू मुश्क की मानिंद लगती है.


मुहम्मद कहते हैं कि रोज़े दारों को मखसूस जन्नातियों के दरवाजे से दाखिला होगाशयातीन जकड दिए  जाते है.

*मुसलमानों! जागो तुम उन्नीसवीं सदी में हो. तुहारा मजाक उड़ाया जाता है.

बुखारी 868


मफरूज़ा अल्लाह के खुद साख्ता रसूल कहते है की ईमान मदीने में ऐसा समिट कर आएगा जैसे साँप अपने सूराख में सिमट कर जाता है.

*अनजाने में मुहम्मद ठीक ही कह गए हैं कि इस्लाम का ज़हर इंसानियत के लिए ज़हर ही है. ये ज़हर दुन्या में मदीने से फैला है, मदीन में नेश्त  नाबूद होकर बिल में दफ़्न हो जाएगा.

बुखारी ८६९-७०-७१-७२


मुहम्मद ने मक्के से भागकर पैगम्बरी की शुरुआत मदीना से किया. मदीने के बारे में बहुत सी आएं बाएँ शायं बका है. कभी कहते हैं मदीना एक दिन वहशी जानवरों का मरकज़ हो जाएगा तो कभी कहते हैं कि मदीने वालों को धोका देने वाले नमक की तरह पिघल जाएँगे.

कहते है फ़रिश्ते इसके मुहाफ़िज़ हैदज्जाल और ताऊन इसमें दाखिल नहीं हो सकते.
फ़िलहाल यहूदियों से मदीना बच जाए तो बहुत है.
बुखारी ६५४

फतह मक्का के बाद किसी ने मुहम्मद को खबर दी की इब्ने-खतल काबे के परदे से लिपटा हुवा है. मुहम्मद ने कहा इसे क़त्ल करदो.


* इतनी सस्ती थी इंसानी जिंदगी मुहम्मद के लिए? बहुत आसान था खतल को किसी तरह आसानी से समझाया जा सकता था.

बदमाश ओलिमा कहते हैं कि मुहम्मद ने कभी अपने हाथों से किसी का क़त्ल नहीं किया.

उनकी ज़बान ही उनका हाथ थी.


जीम. मोमिन 

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