Monday, 3 September 2012

Hadeesi Hadse - 51


'' नाज़िल और नुज़ूल''
क़ुरआन ने मुसलामानों में एक वहम '' नाज़िल और नुज़ूल'' (अवतीर्ण एवं अवतरित) का डाल दिया है, मिन जानिब अल्लाह आसमान से किसी बात, किसी शय, किसी आफ़त का उतरना नाज़िल होना कहा जाता है. ये सारा का सारा क़ुरआन वहियों(ईश-वाणी) के नुजूल का पुथंना बतलाया जाता है. यानी क़ुरआन का ताअल्लुक़ ज़मीन से नहीं बल्कि यह आसमान से उतरी हुई किताब है. क़ुरआन अपनी ही तरह मूसा रचित तौरेत और दाऊद द्वारा रचे ज़ुबूर के गीतों को ही नहीं बल्कि ईसा के हवारियों (धोबियों) के बाइबिल के बयानों को भी आसमानी साबित करता है, जब कि इन के मानने वाले खुद इन्हें ज़मीनी कहते हैं.
आगे की खोज कहती है आसमान ऐसी कोई चीज़ नहीं कि जिसके फर्श और छत हों,ये फ़क़त हद्दे नज़र है. क़ुरआन के सात मंजिला आसमान पर मुख्तलिफ मंजिलों पर मुख्तलिफ दुनिया है, सातवें पर खुद अल्लाह विराजमान है.
हमारी जदीद तरीन तह्क़ीक़ कहती है की ऐसा आसमान एक कल्पना है, तो ऐसा अल्लाह भी मुहम्मद का तसव्वुर ही है. दोज़ख जन्नत सब उनकी साजिश है.
मुसलमानों! क्या तुम को मालूम है कि इस वक्त दुन्या में और खास कर बर्रे सगीर हिंद (भारत उप महा द्वीप) में आप का सब से बड़ा दुश्मन कौन है? कोई और नहीं आप को पीछे खडा आप का मज़हबी रहनुमा, आप का आलिमे दीन, मौलाना, मोलवी साहब और मुल्लाजी का गिरोह. जी हाँ! चौंकिए मत यही हज़रात आप के अस्ल मुजरिम हैं, बजाहिर आप के खैर ख्वाह. ये मजबूरी में पेशेवर हैं क्यूं कि इनको इसमें ढाला गया है, और कोई जीविका इनके लिए नहीं है. इनका ज़रीया मुआश दीन है. मगर इनके लिए दीन कोई हकीक़त नहीं, जैसा कि आप समझते हैं. यह दीन के करीब तर रह कर इसको उरियाँ हालत में देख चुके हैं. अब इन के लिए कुछ बचा नहीं जो देखना बाकी रह गया हो. अब तो इन्हें दीन की  परदापोशी ही  करनी है. इनको इनकी तालीमी वक्फे में यही सिखलाया गया है. यही ''पर्दापोस्शी". यह निन्नानवे फी सद आलिमे दीन गरीब, मुफ़लिस, मोहताज घरों के फाका कश बच्चे होते हैं. तालीम के नाम पर जो कुछ पाया है, इसी में फसल जोतना, बोना, सींचना और काटना है. यह पैदाइशी मुन्तक़िम (प्रति शोधक) होते हैं, इसकी वजह गुरबत के मारे, दूसरी वजह तालीमी विषय का इन पर गलत थोपन है.ये अव्वल दर्जे के अय्यार, परले दर्जे के ईमान फरोश होते हैं. ये अपने साथ की गई समाजी ना इंसाफी का बदला उस समाज से गिन गिन कर लेते है जिसने इनके साथ इंसाफी की है. आप अपने बच्चों को इनके से दूर रखिए क्यूंकि कुरआनी जन्नत में मिलने वाली हूरें और गुलामों की यौन सेवाएँ इन्हें जिंसी बे राह रवी का शिकार बना देती हैं. मस्जिद के हुजरे हों चाहे मदरसे की छत, ये हर जगह बाल शोषण करते हुए पकडे जाते हैं.
यह दीन धरम के खुद साख्ता पैगम्बर और स्वयम्भू बने भगवान आज तक अपने विरोधी इन्सान को, इंसानियत को जी भर के कोसते काटते, गलियां, देते और तरह तरह की उपाधियाँ प्रदान करते चले आए हैं. हम कुछ नहीं कर सकते थे, कानून इनका संरक्षक था और है. हुकूमतें इनकी पुश्त पनाही में थीं और हैं. जनता इनके साथ में थी और है मगर शिक्षित,और जागृति जनता, बेदार अवाम अब सिर्फ हमारे साथ हैं. हम सुरक्षा महसूस कर रहे हैं. सदियों से ये हमें धिक्कारते चले रहे हैं अब हमारी बारी है इनकी पोल पट्टी खोलने की, एक बुद्दी जीवी हजारो भेड़ बकरियों पर भारी पड़ेगा. हम शुक्र गुज़र हैं गूगल आदि वेब साइड्स के, हम शुक्र गुज़र है ब्लॉग के उस मुकाम के अविष्कार के जहाँ कबीर का सच बोला जा सकेगा.अब सदाक़त धडाधड छपेगी और कोई कुछ बिगड़ पाएगा.

हदीसी हादसे 
बुखारी १०००
मुहम्मद ने अपने खुतबे में कहा
"अल्लाह तअला ने मुरदार, खिंजीर (सुवर) और शराब को हराम क़रार दे दिया है."
 किसी ने पूछा कि
"मुरदार की ख़ाल और चर्बी जो चमड़े और उसके रंगने के काम आती है, उसके बारे में क्या फरमा रहे हैं,"
बोले "सब के सब हराम हुए."
फिर बोले "अल्लाह की लअनत यहूदियों और नसारा (ईसाई) पर जो इसे हलाल किए हुए है."
*मुसलमानों मुहम्मद जो कुछ बोलते थे वह खुदा की ज़बान और अल्लाह का कलाम हो जाया करता था. मुहम्मद किसी के सवाल का जवाब दे रहे हैं, न वहिय, न इल्हाम हुए बिना, ये इनकी ज़ाती बात थी मगर झूट के पुतले मुहम्मद में अल्लाह बन जाने की खाहिश थी. बेहतर था की वह खुद को अल्लाह होने का एलान कर देते जैसे हिदुओं में कई खुद साख्ता भगवान बने बैठे हैं. मगर न उनमे इतना हुनर था न इतनी अक्ल  . 
बुखारी ९९७
मुहम्मद कहते हैं
"ईसा का नुजूल होगा, वह साफ़ सुथरी हुकूमत क़ायम करेंगे, खिंजीर को मार कर ख़त्म कर देंगे, कोई खिंजीर खाने वाला होगा."
 आगे कहते हैं कि
"एक दिन आएगा कि लोगों के पास इतना मॉल हो जाएगा कि इसे लेने वाला कोई होगा."
*डेनमार्क जैसे देश में जहाँ मकूलियत ईसा बन गई है, हर आदमी ईसा बन जायगा, जो इस्लाम को हिकारत से देखते हैं.
*माल कितना भी हो जाए मगर इंसान  लालची फ़ितरत हा बंदा है, माल से कभी न ऊबेगा., हत्ता कि मुहम्मदी अल्लाह भी नहीं जो हर जंग   में मिले माले-गनीमत से अपना २०% का हिस्सा पहले धरा लेता था.
बुखारी ९९८
इब्ने-अब्बास कहते हैं कि उनके पास एक शख्स आया और कहने लगा कि मेरी गुज़र औकात, मेरी फनकारी पर ही मुनहसिर है, मैं तस्वीरें बना कर ही गुज़र करता हूँ, मेरे लिए क्या हुक्म है?
इब्न-अब्बास ने कहा सूरत निगारी को हुज़ूर ने मना किया है कि जो शख्स तस्वीरें बनाएगा उसको क़यामत तक उनमें रूह भरना पड़ेगा. उन्हों ने कहा तुम दरख्तों और फूल पत्तियों की तस्वीर बनाओ, जिनमें रूह नहीं होती.
*मुस्लमान फुनून लतीफा से महरूम कर दिया गया है. कोई फ़िदा हुसैन जब इस्लाम से ख़ारिज होने का अज्म करते हैं तो शोहरत किई दुनया में अमर हो जाते है. शुक्र है कि खाड़ी में ख़लील जिब्रान ईसाई था जो इस फन को उरूज तक ले जाता है.. अल्लाह इतना भी दूर अंदेश न था कि जनता कि आने वाले वक्तों में कोई हज भी नहीं कर पाएगा, अगर फोटो से परहेज़ करेगा. 
बुखारी ९९६
*तौरेती वाकिया है कि बाप की राय पर अब्राहम ने अपनी बीवी सारा और भतीजे लूत के साथ हिजरत किया, परेशनी के आलम में बादशाह मिस्र के यहाँ फ़रयाद की और सारा को अपनी बहन बतलाया. सारा हसीं थीं, बादशाह ने इसको अपने हरम में रख लिया. कुछ दिनों बाद बादशाह को सच्चाई का पता चला तो उसने डाट फटकार के बाद अब्राहम को अपनी हल्के से निकल दिया, मगर साथ में सारा को कुछ इमदाद भी किया.
मुहम्मद ने इस वाकिए को किस बे ढंगे पन से बयान किया है. कहते हैं कि
"बादशाह बहुत ज़ालिम था, अपनी सल्तनत की खूब रू औरतों को उठवा लिया करता था. दो बार उसने सारा की  इज्ज़त लूटनी चाही मगर सारा की बद  दुआओं से दोनों बार उसकी सासें बंद होने लगी. वह घबराया और उन्हें आज़ाद कर दिया. साथ में एक लौंडी हाजिरा को भी दिया."
* हर वाकिए को रद्द ओ बदल कर पेश करना मुहम्मद क़ी होश्यारी थी.
 
बुखारी ९९४
अबू सुफ्यान की बीवी ने मुहम्मद से पूछा कि अपने बखील शौहर की जेब से कुछ रक़म चुरा लिया करूं  तो कोई मुज़ाईक़ा तो नहीं?
जवाब था "हाँ! अपने बाल बच्चो की ज़रुरत भर चुरा लिया करो."
यही मुहम्मद एक ज़ईफा जो कि खुद इनके खानदान से तअल्लुक़ रखती थीं, की तीन पैसे की मामूली चोरी पर अपने हाथों से उनका हाथ कट दिया था.
*दोहरा मेयार मुहम्मद की खू रहा.
 


जीम. मोमिन 

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