Thursday 5 May 2016

Hadeesi Hadse 207



Hadeesi hadse 


बुखारी १७३
मुहम्मद का फरमान है कि "जो शख्स जिहाद करते हुए अल्लाह की राह में ज़ख़्मी होता है, क़यामत के दिन अपना ज़ख्म ताज़ा पाएगा जिसमे से मुश्क की खुशबू आ रही होगी."

मुहम्मद जंग, गारत गरी  और बरबरियत के लिए हर हर हरबे इस्तेमाल करने की नई नई चालें ईजाद करते, चाहे उसमें बेवकूफी ही क्यूँ न नज़र आए. ज़ख़्मी शख्स ज़ख्म से परीशान और रुसवा-ए-ज़माना क़यामत के रोज़ ज़ख्म को ढ़ोता रहे, अपने ज़ख्म से मुश्क की खुशबू उड़ाते हुए .

बुखारी १७५
मुन्ताकिम मुहम्मद के पैगाम्बराना मिज़ाज इस वाक़िए से लगाया जा सकता है कि मुहम्मद कितने अज़ीम या कितने कम ज़र्फ़ हस्ती थे, 
मफ्रूज़ा मोह्सिने-इंसानियत.
मुहम्मद खाना-काबा में मसरूफ इबादत थे कि अबू जेहल और उसके साथियों ने ऊँट की ओझडी उन पर लाद दी. मुहम्मद ने बाद नमाज़ उन नामाकूलों के लिए बद दुआ दी. ये वाकिया शुरूआती दौर इस्लाम का है.
जंगे-बदर में इन नमाकूलो को मुहम्मद ने चुन चुन कर मौत के घाट उतरा. इनकी लाशों को तीन दिनों तक सड़ने दिया, उनको एक एक का नाम लेकर बदर के कुवें में फ़िक्वाया २०-२२ लाशों से उस जिंदा कुवें को पाटा. उस वक़्त अरब का वह कुवाँ अवाम के लिए कीमती था ? और सभी मकतूल मुहम्मद के अज़ीज़ और अकारिब थे.

बुखारी १८५
किसी मन चले ने आयशा (मुहम्मद की बीवी) से मुहम्मद के गुस्ल का तरीका जानना चाहा तो आयशा ने परदे के आड़ से उसको मुहम्मद के गुस्ल करने का तरीका बतलाया . एक बर्तन में पानी मंगवा कर तीन मघ पानी सर पर डाल कर गुसल को ख़त्म किया.
इस हदीस से ज़ाहिर है कि पर्दा इतना झीना रहा होगा कि सवाली को आयशा का जिस्म ज़रूर दिखता रहे .
दूसरी बात कि क्या आयशा ज़ुबानी, हरकतों के सहारे गुस्ल का तरीक़ा नहीं बतला सकती थीं, ज़रूरी था परदे के आड़ में नंगा होना?



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