Wednesday 13 April 2016

Hadeesi Hadse 204




बुखारी १७०
"किसी क़बीले के चंद लोग मुहम्मद के पास आए जो पेट के मरज़ में मुब्तिला थे, चारा गरी की दरख्वास्त की. मुहम्मद उन्हें अपने ऊंटों वाले फार्म हॉउस के लिए भेज दिया कि यह लोग वहां ऊंटों के दूध और पेशाब पीते रहने से तंदरुस्त हो जाएँगे.  क़बीले के लोगों ने इस पर अमल किया और कुछ दिनों बाद ठीक भी हो गए. ठीक होने के बाद उन लोगों की नियत वहाँ के ऊंटों पर खराब हो गई और फॉर्म हॉउस के मुहाफ़िज़ को मार के सारे ऊंटों को लेकर फ़रार हो गए. इसकी खबर जब मुहम्मद को मिली तो उन्हों ने तेज़ रफ़्तार ऊँट सवारों को उनके पीछे दौड़ाया.
वह सभी पकड़ लिए गए और उनको मुहम्मद से सामने पेश किया गया. मुहम्मद ने इनके साथ जो बर्ताव किया, इबरत की हदों को पर कर गया. उन्हों ने उनके हाथों और पैरों को पहले कटवाया फिर गरम शीशा उनकी आँखों में डाल कर पहाड़ों के नीचे खाईं में  फिकवा दिया. इस दौरान मुजरिम पानी पानी चिल्लाते रहे, उनको पानी न दिया. "
ये था मुहम्मद का ज़ालिमाना बर्ताव जिन्हें मुसलमान सरवरे कायनात कहते हैं और मुह्सिने-इंसानियत.
सज़ाए मौत माना कि जायज़ थी मगर मौत से पहले मुजरिम की आखरी ख्वाहिस पूछना तो दर किनार, हाथ पैर काटना, आँखों में पिघला हुवा शीशा पिलाना और उनकी हलक़ को पानी से महरूम रख कर पहाड़ी की ऊँचाइयों से खाईं में फिकवाना , क्या यही पैगम्बरी शान थी? 
मुहम्मेद बहुत ही ज़ालिम इंसान थे जिनके डर से मुसलमान आज भी दहला हुवा है.

बुखारी १७३
मुहम्मद का फरमान है कि जो शख्स जिहाद करते हुए अल्लाह की राह में ज़ख़्मी होता है, क़यामत के दिन अपना ज़ख्म ताज़ा पाएगा जिसमे से मुश्क की खुशबू  आ रही होगी."
मुहम्मद जंग, गारत गारी और बरबरियत के लिए हर हर हरबे इस्तेमाल करने की नई नई चालें ईजाद करते, चाहे उसमें बेवकूफी ही क्यूँ न नज़र आए. ज़ख़्मी शख्स ज़ख्म से परीशान और रुसवा-ए-ज़माना क़यामत के रोज़ ज़ख्म को ढ़ोता रहे, अपने ज़ख्म से मुश्क की खुशबू उड़ाते हुए .

बुखारी १७५
मुन्ताकिम मुहम्मद के पैगाम्बराना मिज़ाज इस वाक़िए से लगाया जा सकता है कि मुहम्मद कितने अज़ीम या कितने कम ज़र्फ़ हस्ती थे, मफ्रूज़ा मोह्सिने-इंसानियत.
मुहम्मद खाना-काबा में मसरूफ इबादत थे कि अबू जेहल और उसके साथियों ने ऊँट की ओझडी उन पर लाद दी. मुहम्मद ने बाद नमाज़ उन नामाकूलों के लिए बद दुआ दी. ये वाकिया शुरूआती दौर इस्लाम का है.


जंगे-बदर में इन नमाकूलो को मुहम्मद ने चुन चुन कर मौत के घाट उतरा. इनकी लाशों को तीन दिनों तक सड़ने दिया, उनको एक एक का नाम लेकर बदर के कुवें में फ़िक्वाया २०-२२ लाशों से उस जिंदा कुवें को पाटा. उस वक़्त अरब का वह कुवाँ अवाम के लिए कीमती था ?और सभी मकतूल मुहम्मद के अज़ीज़ और अकारिब थे.


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