Wednesday 16 March 2016

Hadeesi Hadse 200



मुहम्मद ने जब पैगम्बरी का एलान किया था तो मक्का वासियों ने इनमें दिमागी ख़लल समझा. इसी रिआयत से इनका मज़ाक़ बना, मगर जब यह हदें पार करने लगे और लोगों  के माबूद (पूज्य) का अपमान करने लगे तो इन्हें हदों में रहने की चेतावनी मिलने लगी. इनके चचा और दादा समाज के बा-असर लोग हुवा करते थे इस लिए ये बचते रहे वर्ना मुहम्मद का काम तमाम कर दिया जाता. 
एक वाकिया इसी दौर का है कि मुहम्मद एक गली से गुज़रते तो एक यहूदी औरत इनसे नफ़रत के सबब इन पर घर का कूड़ा फेक दिया करती. एक रोज़ कूड़ा उन पर नहीं आया तो उसका दरवाज़ा खटखटाया कि आज कूड़ा क्यूं  नहीं आया? मालूम हुवा की उसकी तबयत ख़राब हो गई है, गोया इसे लोगों ने मुहम्मद का पुरसा बना दिया और फ़तह मक्का के बाद इस वाकिए को तूल देते देते इतना बढ़ा दिया कि उन्हें "मोह्सिने-इंसानियत" बना दिया गया. मुहम्मद की इस इकलौती नेकी के बाद उनकी इंसानियत के हक़ में की गई बदियों का सिलसिला फ़तह मक्का के बाद जब शुरू हुवा तो मुहम्मद दुश्मने-इंसानियत का निशान बन गए. 
इसी सिलसिले को हम आगे मुसलमानों के लिए पेश कर रहे हैं ताकि मुसलमान हकीकत को जानें और मानें . . . .    
फतह मक्का के बाद मुहम्मद का गलबा इतना बढ़ गया था कि उनके मुंह की निकली हुई बात कुरान और हदीस बनने लगीं. नव मुस्लिम लश्कर चारों तरफ़ जुल्म, बरबरियत और गनीमत का खेल खेलती थीं और मुहम्मद अपने चारों खलीफाओं के साथ मदीने में इस्लामी केंद्र बना कर लोगों क़ी आज़ादी के साथ खिलवाड़ करते रहे.
दुश्मने-इंसानियत का सिलसिला पेश है . इससे मुसलमानों की आँखें शायद खोल सकें - - - -  

बुखारी नम्बर -३ 
मुहम्मद की पोती नुमा बीवी आयशा कहती हैं कि मुहम्मद पर वह्यी की शुरुआत इस तरह हुई कि मुहम्मद को ख़्वाब नज़र आते शब् को, जो कि सुब्ह रोज़ -रौशन की तरह  नमूदार हो जाते . . . .
पिछली वह्यी देखें कि मियाँ बीवी के बयान में इख्तेलाफ़ है जो आपस में दोनों को झूठा साबित करते हैं.
आगे कहती हैं इसके बाद मुहम्मद तन्हाई पसंद हो गए और गारे-हिरा में यकसूई और तन्हाई पसंद फ़रमाई और पूरी पूरी रात इबादत करने लगे. वह जितने दिनों के लिए ग़ार  में जाते उतने दिनों का खाना साथ ले जाते, जब खाना ख़त्म हो जाता ,फिर आकर ले जाते .
जो अल्लाह मुहम्मद के कान वह्यियों से भरता था, क्या उनका पेट खाने से नहीं भर सकता था? अल्लाह के लिए क्या मुश्किल था. कुन-फयाकूं भर की देर थी.
आगे कहती हैं कि इसी सूरत में वह्यिँ  आत्ती रहतीं कि एक दिन फ़रिश्ता मुहम्मद पर ग़ालिब होते हुए कहने लगा " पढ़!" मुहम्मद ने कहा इससे मैं पढ़ा लिखा नहीं हूँ, फिर उसने उनको दबोच कर कहा कि पढ़! मुहम्मद का उज्र वही था. तीसरी बार कहा किमैं नाख्वान्दः (निरक्षर) हूँ
 फिर फ़रिश्ता उनको चिम्टाते हुए कहा कि "पढ़, इक्रा बिस्म रब्बेकल लज़ी खलकः खलकः मिन अलकिंन्सान मिन अलक  . . . .
गौर तलब है कि घामड़  फ़रिश्ता मुहम्मद को बिना किसी किताब को सामने रख्खे हुए, ज़ोर डाल रहा था कि पढ़! बेचारे पूछ न पाए कि बिना सामने कोई तहरीर रख्खे हुए मुझ से क्या पढवाने को कह रहा है? बस कहते रहे कि मैं अनपढ़ हूँ. 
मुहम्मद ने इस वाकिए को गढ़ने में भी जिहालत की कि , फ़रिश्ते को कहना चाहिए , कह " इकरा बिस्म रब्बेकल लज़ी खलकः खलकः मिन अलकिंन्सान मिन अलक  . . . .  तब कहीं बात बनती.
आगे कहती हैं कि मुहम्मद हौले कांपते हुए घर आए और जोरू माता खदीजा से कहा मुझको जल्दी से चादर उढाओ, उनसे तमाम वक़ेआ बयान किया. खदीजा अपने अंधे ईसाई भाई विरका इब्न नोफिल के पास मुहम्मद को ले गई, जिसने इन्हें सुन कर मूसा जैसी अलामत बतलाई कि वह फ़रिश्ता जिब्रील है, हज़रत को देश निकला मिलेगा इसके बाद पैगम्बरी.
तहरीर बनावटी  है जिसमे साबित होता है कि मुहम्मद की चापलूसी में लिखी गई है 


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