Wednesday 9 March 2016

Hadeesi Hadse 199



दुश्मने-इंसानियत 
बुखारी नम्बर -१
मुहम्मद कहते है "आमाल का दारो-मदार नियत पर है जो शख्स जैसी नियत करेगा , वैसी जज़ा पाएगा . जिस शख्स की हिजरत दुन्या हासिल करने या किसी औरत से निकाह करने की नियत से होगी तो इसको यही चीज़ें हासिल होंगी (और बस)'
"जैसी नियत वैसी बरकत" कहावत की भद्द पीटते हुए  इसे मुहम्मद अपना रंग दे रहे हैं. जाहिर है तरके-वतन फर्द  दुन्या हासिल करने की नियत से ही करता है ताकि उसकी बदहाली दूर हो, यहाँ पर औरत हासिल  करने की नियत बे मौक़ा और बेमहल है. मुहम्मद की नियत हमेशा औरत पर रही है इस लिए उसको भी मंजिले-मक़सूद बना लिया है. मुहम्मद ने कभी औरत को इंसान का दर्जा दिया ही नहीं.
 क्या औरत हिजरत की नियत  नहीं कर सकती? तब इसके लिए मर्द हासिल करना मुहम्मद कहेंगे ?
बुखारी नम्बर -२ 
मुहम्मद से हारिश इब्न हुशशाम (जिनका नाम मुहम्मद ने अबू-जहल कर दिया था)  ने पूछा की उन पर वह्यी किस तरह नाज़िल हुवा करती है? 
बोले . . . कभी इस तरह आती है कि घंटी की तरह आवाज़ सुनाई देती है, लेकिन ऐसी वह्यी मुझ पर गराँ गुज़रती है. जब वह हालत दूर हो जाती है तो खुदाए- तअला  का फरमान होता है, मैं इसे महफूज़ कर लेता हूँ . कभी ऐसा होता है कि फ़रिश्ता मुझ पर बशक्ल इन्सान नाज़िल होता है और मैं उससे हमकलाम होकर अल्लाह तअला के फरमान याद कर लेता हूँ. 
मुहम्मद की पोती-नुमा बीवी आयशा कहती हैं कि उनके शौहर पर जब वह्यी नाज़िल होती तो बावजूद सर्दी के पेशानी पर पसीना की बूँदें ज़ाहिर हो जातीं.   
(मुहम्मद पर उनके अनुसार वह्यी यानी ईश-वाणी नाजिल (प्रगट) हुवा करती थी जोकि इनके ऊल-जुलूल और फुज़ूल बयान से ही रुसवाय-ज़माना क़ुरआन तय्यार हुवा है.) 
अरबी भाषा में कुदरत अथवा अल्लाह की बातचीत ग़ैर फ़ितरी  (अप्रकृतिक} है. इस तरह पूरा क़ुरआन ही मुहम्मद की बकवास है जिसमें मअनी व् मतलब भरने के लिए ओलिमा ने एडी-चोटी का ज़ोर लगा दिया है फिर भी नाकाम रहे.
बुखारी नम्बर -८ 
"इस्लाम के पांच एहकाम १-कलमाए-वदनियत २-नमाज़ ३-ज़कात ४- रोज़ा ५-हज "
यह तमान एहकाम ग़ैर तामीरी हैं.

बुखारी नम्बर -९-१३ 

इन सब हदीसों  में इस्लाम मुसलमानों को तअस्सुबी बनाता   है. मुसलमानों को पक्षपात की तालीम देता है जिसके सबब मुसलमान कभी इन्साफ की बात नहीं कर सकता. 

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