Wednesday 3 February 2016

Hadeesi Hadse 194



बुखारी १०४७
मुहम्मद कहते हैं अल्लाह उस शख्स से राज़ी नहीं होगा जो पानी रखते हुए प्यासे को न पिलाए.
अभी पिछली हदीस में मुहम्मद प्यासों को अजनबी ऊँट की तरह भगाते हैं. गोया नादानी में खुद जहन्नम रसीदा हुए.
बुखारी १०५० 
अली कहते हैं कि जंग ए बदर में मुझे एक ऊँट ग़नीमत में मिला था और एक उनके ससुर मुहम्मद ने बतौर अतिया दिया था. मेरा मंसूबा यह बना कि इन ऊंटों पर मैं अजखर घास लाद कर लाया करूंगा, इसे बाज़ार में फरोख्त कर के पैसे इकठ्ठा करूंगा फिर उसके बाद फ़ातिमा का वलीमा करूंगा जो कि अभी तक बाकी चला आ रहा था. मैं मंसूबा बंदी कर ही रहा था कि बग़ल के मकान में हम्ज़ा बैठे शराब पी रहे थे और सामने एक रक्कासा गाने गा रही थी जिसके बोल कुछ यूँ थे कि वह पड़ोस में बंधे ऊंटों का कबाब खाना चाहती है. हम्ज़ा नशे के आलम में गए और ऊंटों को ज़बा कर दिया. यह ऊँट अली के थे जिनको लेकर वह क्या क्या मंसूबा बना रहे थे. अली यह देख कर दोड़ते हुए मुहम्मद के पास गए और मुआमला बयान किया. वहां ज़ैद बिन हरसा भी मौजूद था, तीनो एक साथ हमज़ा के पास गए . उनको देख कर हमज़ा ने कहा तुम सब मेरे बाप के गुलाम हो. यह सुन का मुहम्मद वहां से चले आए. यह वाकिया तब का है जब शराब हलाल हुवा करती थी.
इस हदीस को पढने के बाद दो अहम् बातें निकल कर सामने आती हैं जिन पर आज मुसलमानों को गौर करना पडेगा. पहली ये कि मुहम्मद के ज़ाती मुआमले के बाईस मुसलमानों को शराब जैसी नेमत से महरूम कर दिया. ज़रा सा मुआमला ये कि दो ऊंटों का मुहम्मद के दामाद अली का नुकसान. क्या इस ज़रा सी बात पर दुन्या की कामों का मकबूल तरीन मशरूब हरम कर देना चाहिए? 
(शराब नोशी को हलाह रखने की बात अलग है जिसके लिए पूरी किताब तहरीर हो सकती है.)
दूसरी बात अली कि इल्मी और शखसी हैसियत क्या थी कि घास खोद कर बेचना जैसा अमल उनका ज़रिया मुआश था. उनकी इल्मी लियाक़त कि आज उनके फ़रमूदात की लाइब्रेरियाँ भरी हुई हैं.
कितना पोल ख़त है इस्लामी अक्दास में ? 
बुखारी १०६४ 
मुहम्मद कहते हैं क़यामत के दिन ईमान दारों को दोज़ख और जन्नत के दरमियाँ एक पुल पर खड़ा किया जायगा. वह जब दुन्या के मज़ालिम को आपस में अदला बदली करके पाक साफ़ हो जाएँगे तो उस वक़्त उनको जन्नत में दाखिल किया जाएगा. इस मौके पर मुहम्मद ग़ैर ज़रूरी क़सम भी खाते हैं 
"उस ज़ात की क़सम कि जिसके क़ब्ज़ा ए कुदरत में मुहम्मद की जान है, कि इन्सान अपने अपने मकानों को दुन्या के मकानों से ज्यादा पहचानता होगा" 
* गोया स्टोक एक्सचंज का नकशा पेश करते हुए मज़ालिम की अदला बदली करने के बाद पाक साफ़ हो जाएँगे? कैसे भला ?कोई उम्मी के दिमागी कैफियत समझ सके तो मुझे भी समझाए. मुहम्मद इतनी बड़ी क़सम, ज़रा सी बात के लिए. बड़े झूट के लिए है बड़ी कसमों की ज़रुरत. 
बुखारी १०६५ 
ऐसी ही एक हदीस है कि क़यामत के दिन अल्लाह मुस्लमान को अपने करीब बुलाएगा और उसके साथ खुसुर फुसुर करेगा कि तूने यह यह गुनाह किए थे जो ज़ाहिर न हो सके और मुस्लमान हरेक गुनाह का एतराफ कर लेगा. अल्लाह सब गुनाहों को मुआफ करता हुवा उसकी की गई नेकियों की किताब उसके हाथ में रक्खेगा जो काफिरों और मुनाफेकीन पर गवाही होगी कि ये लोग हैं जिन्हों ने अल्लाह के हक में झूट बोला था. 
याद रख्खो ज़ुल्म करने वालों पर अल्लाह की लअनत है. 
* मुसलमानों! 
कोई क़यामत ऐसी नहीं होगी जिसमे दुन्या की रोज़े अव्वल से ल्रकर आज तक की आबादी इकठ्ठा होगी और अल्लाह फर्दन फर्दन मुसलमानों से काना फूसी करेगा. 
मुहम्मद और उनका अल्लाह उनकी बेहूदा कुरानी बातों को न मानने वालों को ज़ालिम कहते हैं और जिहाद जैसे ज़ुल्म को नेकी कहते हैं. इनके जाल से बहार निकलें.












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