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हदीसी हादसे 64
बुख़ारी 1306
हमल में ही तक़दीर का लेखा जोखा
"मुहम्मद उम्मत से फ़रमाते हैं कि तुम में से हर एक का मादा ऍ पैदाइश अपनी मां के पेट में चालीस दिनों तक जम़ा रहता है। फिर चालीस दिनों तक लोथड़े की श़क्ल में रहता है, उसके बाद अल्लाह तअला एक फ़रिश्ता रवाना फरमाता है . इसे चार बातों के लिखने का हुक्म होता है।
1-अमल
2- रिज्क
3-उम्र
4-नसीब
(हालांकि 4 नसीब में ही सारी बातें आ सकती थीं, मगर मुहम्मदी अल्लाह की जितनी अक्ल है , उतनी ही बातें करता है।)
इसके बाद इस में रूह फूंक दी जाती है, लिहाज़ा आदमी जन्नतियों के अमल करता है , यहाँ तक कि जन्नत में और इस शख्स में एक हाथ का फासला रह जाता है कि इसकी तक़दीर ग़ालिब आकर इस से दोज़खयों के अमल पर इसको मजबूर कर देती है। एक शख्स दोज़खियों का अमल करता है और दोज़ख उस से सिर्फ एक हाथ के फासले पर रह जाती है कि इसकी तक़दीर ग़ालिब हो जाती है और उसे जन्नती बना देती है।"
* मेरी नानी एक कबित कहा करती थीं - - -
"किह्यो न न्याव (न्याय ) न किह्यो अनुयाई ,
बिना किहेन लिख दिह्यो बुराई ."
किस क़द्र हठ धर्मी की तजवीजें हैं अल्लाह की। जब तकदीर में पहले से ही जन्नत और दोज़ख लिख रखी हैं तो कांधों पर नेक और बद अमल लिखने के लिए फ़रिश्ते क्यों बिठा रखे हैं?
किस क़द्र विरोधाभास है इस्लाम की इन बुनियादी बहसों में।
कोई आलिम है जो इन दोहरे मेयारों का जवाब दे ?
मगर नहीं लाखों ओलिमा हैं जो इस्लाम की ऐसी बातों का जवाब देने के लिए बैठे हैं। इनका काम इस्लाम की दलाली है जो इनके पेट का सवाल रखते हैं, इनके ईमान का नहीं।
दूसरी बात जिहालत और मन-गढ़ंत की, मुहम्मद पर ही दुरुस्त बैठती है कि 40+40=80 दिन मनी माँ के पेट में बेरूह और बेजान पड़ी रहती है।
नया पैग़म्बर बहा उल्लाह कहता है - - -
सचाई और ईमान दारी की किरन अपने मुंह पर चमकने दो ताकि सब को पता चले कि तुम्हारी बातें , काम और खुशियों के वक़्त क़ाबिले यक़ीन हैं।
अपने को भूल जाओ और सब के लिए काम करो।
मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद
मुहम्मद ने एक शख्स का हाथ काटा
"अब्दुल्लह बिन उमर कहते हैं कि मुहम्मद ने खुद अपने हाथों से एक शख्स का हाथ काटा, सिपर की चोरी में,जिसकी क़ीमत तीन दरहम थी।"
मामूली सी चोरी पर इतनी बड़ी सज़ा कि खुद पैग़म्बर कहे जाने वाले शख्स ने जल्लाद की तरह मुजरिम का हाथ काट डाले. कैसे वह अपनी ज़िन्दगी काटेगा? कैसे काम करके अपनी और अपने बाल बच्चों की रोज़ी कमाएगा ? किन के हाथों से खाएगा और किन हाथों से अपनी ग़लाज़त साफ़ करेगा?
इस मोह्सिने इंसानियत कहे जाने वाले ज़ालिम इंसान को इतना भी एहसास नहीं था कि भूख से मर रहे शख्स के पास,जिंदा रहने का कोई रास्ता नहीं होता , वह भी जब रोटी और रोज़ी किस क़द्र दुश्वार थी।
वह शख्स जो जिहाद के नाम पर रातों को बस्तियां लूटा करता था , इंसानी जानों को क़त्ल किया करता था, वह अपने माहौल में इंसाफ के नाटक करके खुद को इंसाफ का पैकर मानता था।
जीम. मोमिन