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बुख़ारी 1349
आदम का क़द
मुहम्मद कहते हैं कि जब अल्लाह तअला ने आदम को पैदा किया तो उनका क़द 60 हाथ था (करीब 50 मीटर ) इसके बाद कम होते होते इस हद तक आ गया है , लेकिन जन्नत में दाख़िल होने वाले लोग आदम की तरह ही होंगे।
*कुरान की बातें तो खैर मुहम्मद को जिब्रील बतलाया करता था मगर इन हदीसी शगूफों को किसने इनके कान में फूँका ?
शैतान ने ?
एक जगह कहते हैं कि मुझ से फ़ैसले मत कराया करो, मैं भी तुम्हारे जैसा एक इंसान हूँ , तुम्हारी लफ्फ़ाज़ी में आकर तुम्हें कुछ दे दिया तो समझ लो वह दोज़ख़ का एक टुकड़ा होगा।
उनकी यह बात माक़ूल है मगर इतनी बड़ी बड़ी 50 मीटर की लम्बी गप कहाँ से पाते थे ?
क्या यह बात सच नहीं कि ख़ाली दिमाग़ शैतान का होता है ?
* जब जन्नातियों के क़द 60-60 हाथ के हो जाएँगे तो उनके लिए नई नई मुसीबतें खड़ी हो जाएँगी . दिन भर की पंज वक्ता नमाज़ों की 24 रिकत की उठ्ठक बैठक ही उनकी जान ले लेगी .
पता नहीं हूरें भी 60 हाथ की होँगी जिनको ऊपर से नीचे तक देखने में ही ज़ाइका बदल जाएगा . या फिर 5 फिटी होंगी जिनको जन्नती मर्द की शक्ल देखने के लिए सीढ़ी लगानी पड़ेगी .
इस क़द्र झूटा और मक्कार पैग़म्बर क्या दुन्या की किसी दूसरी उम्मत के पास होगा , सिवाय मुसलमानों के ?
बुख़ारी १३५१
बदबू दार हदीसें
"मुहम्मद पुड़िया छोड़ते हैं कि अगर बनी इस्राईल न होते तो गोश्त में बदबू पैदा न हुवा करती और अगर हव्वा न होतीं तो कोई औरत अपने शौहर की ख़यानत न किया करती, यानि यह तरीकः उन लोगों का जारी किया हुवा है, अगर यह लोग ये फ़ेल न करते तो मुसीबत न आती ."
इस औघड़ को इसका अल्लाह थोड़ी सी अक़्ल सलीम भी देता तो ऐसी बात न करता ,
क्या बनी इस्राईल से पहले यानी याकूब तक गोश्त में बदबू नहीं हुवा करती थी कि उनकी नाक़िस नस्लों के बाद गोश्त में बदबू पैदा होना शुरू हो गई ?
कहता है इस फ़ेल के बाद ?
किसी का तवल्लुद या जन्म लेना उसका फ़ेल कहाँ होता है ?
मासूम अबोध बच्चे को क्या मालूम रहता है कि जन्म लेने की मुजरिमाना हरकत कर रह है?
पूरी क़ुरआन में "या बनी इस्रईला" की दास्तान गाते गाते, वह हदीस में इनकी ऐसी ज़िल्लत करता है कि इसके वजूद को ही बदबू दार साबित कर दिया.
दर अस्ल यह हर्ब था यहूदियों को रुसवा करने का .
सारी इंसानियत की मादर ए अव्वल मानी जाने वाली हव्वा को मुहम्मद यूँ मुजरिम क़रार देते है जैसे औरत ज़ात की तमाम खामियों की वजेह हव्वा थी, न वह पैदा होने की ग़लती करतीं, न ही औरत ज़ात में यह खामियाँ मौजूद होतीं .
सानेहा ये है कि ऐसी जाहिल रिसालत की इन बातों को मदरसों में Phd कराई जा रही है . तालिब इल्मों की तलाश (शोघ) यह होती है कि ये हदीस , हदीस ए मख़दूस, मशकूक, बातिल या कमज़ोर तो नहीं?
यही ग़लीज़ इल्म बच्चों के ज़हनों में भर दिया जाता है जिसे व तमाम उम्र ढोते रहते है.
मुस्लिम किताबुल अख्फ़िया
मुहम्मद बे ख़याली में कभी कभी कोई माक़ूल बात भी कह जाते हैं, यह भूलते हुए कि यह बात उनकी पैगंबरी के ख़िलाफ़ जाती है,
"कहते हैं कि हाकिम सोच कर हुक्म दे और सही करे तो उसे दो सवाब, अगर ग़लत हो जय तो एक तो है ही "
हाकिम का हुक्म कुरान और हदीस की रौशनी में होना चाहिए . हुक्म सही हो या ग़लत. यह किताबें कहाँ सही हैं? जो इन पर तकिया रख कर इन्साफ किया जा सके.
इस्लाम का क़ानून है तौहीन रिसालत पर मुजरिम का सर क़ लम कर दिया जाय. यह कोई इन्साफ़ हुवा कि झूट का साथ न देने पर मौत के घाट उतार दिया जाय.
जीम. मोमिन
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