Wednesday 2 July 2014

Hadeesi hadse 114


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बुखारी नम्बर -८ 
इस्लाम के पांच एहकाम १-कलमाए-वदनियत २-नमाज़ ३-ज़कात ४- रोज़ा ५-हज 
यह तमान एहकाम ग़ैर तामीरी हैं.

बुखारी नम्बर -९-१३ 
इन सब में इस्लाम मुसलमानों को तअस्सुबी बनता है मुसलमानों को पक्षपात की तालीम देता है जिसके सबब मुसलमान कभी इन्साफ की बात नहीं कर सकता. 

बुखारी नम्बर -१४-१६ 
महम्मद कहते हैं कि कोई शख्स तब तक मुसलमान नहीं हो सकता जब तक मुझे अपने मान-बाप और औलाद से भी ज्यादा न चाहता हो.
मुहम्मद निर्मल बाबा से भी आगे हैं. आम मुसलमान मुहम्मद के नाम पर जान भी दे सकता है और जान ले भी सकता है. ये बात दुन्या औए खुद आलम-इस्लाम के लिए ज़हर है. मुहम्मद कितने खुद पसंद और महत्वा-कांक्ष साबित हुए. 

बुखारी नम्बर -१९ 
मुहम्मद कहते हैं कि वह वक़्त आएगा कि लोगों का बेहतरीन माल बकरियाँ होंगी. वह इनको लेकर जंगलों और पहाड़ों पर घूमता फिरेगा ताकि उसका इमान बचा रहे.
मुहम्मद को बकरियां बहुत पसंद थीं. वह इनके बाड़ों में अक्सर नमाज़ें पढ़ा करते. किस क़द्र बद ज़ौक थे? उनके कपड़ों से हमेशा बोक्राहिंद आती थी. 

बुखारी नम्बर -२४ 
मुहम्मद कहते हैं कि हमें लोगों से उस वक़्त तक जिहाद करनी चाहिए जब तक वह ला इलाहा इल्लिलाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह न कह दें और नमाज़ व् ज़कात अदा न करने लगें और जब वह इन उमूर को अदा करने लगें तो वह मेरी जानिब से महफूज़ हुए. उनका हिसाब अल्लाह तअला करेगा.
दुश्मने-इसानियत कहते है कि जब तक लोग उनको अल्लाह का दूत न मान लें, उनसे जंग करते रहो . यही मुहम्मदी इस्लाम आ असली चेहरा है. इस पर अमल कर रहे हैं तालिबान. 
मुहम्मद को अपना रसूल मानने वाले ही इस वक़्त उनके एहकाम के कायल हैं इनको जवाबन क्या आज इस समाज और इस मुल्क में रहने का हक मिलना चाहिए? मुसलमान देश के कानून का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं . जम्हूरियत मुसलमानों पर हराम कर देना चाहिए अगर वह नए सिरे से इस्लाम को न समझे.

बुखारी नम्बर -२५ 
मुहम्मद से दरयाफ्त किया गया कौन सा अमल अफज़ल हैं?
फ़रमाया अल्लाह और रसूल पर ईमान लाना.
इसके बाद ?दूसरा सवाल था.
अल्लाह की राह में जिहाद करना .
तीसरा अमल ? सवाल था.
फ़रमाया हज खालिस .
कुरआन और हदीसों में सैकड़ों बार दोहराया गया है कि जेहाद करो यानी लड़ो मारो और मरो, 
खूने-इंसानी बहाओ और लूट मार करके लोगों माले-गनीमत हासिल करो. जिहाद के नए मअनी आज के मक्कार ओलिमा ने लफज़ी तकरार से "जिहद करना" बतला रहे हैं. जिहद शब्द एक वचन है और इसका बहुवचन होता है. जिहद करना यानि जद्दो-जिहद और जिहाद इस्लामी इस्तेलाह में मज़हबी जंग अर्थात धर्म युद्ध. सिर्फ इस्लाम ऐसा धर्म है जो लूट मर को पुन्य कार्य समझता है. 

बुखारी नम्बर -२६ 
एक हदीस में रवायत है कि मुहम्मद कुछ लोगों को मॉल तकसीम कर रहे थे कि उनमे से एक को छोड़ दिया . इस पर इनके साथी विकास ने कहा , या रालूलल्लाह इसको क्यूं छोड़ दिया? जो कि मेरे नज़दीक सब से ज्यादह ईमान वाला मोमिन है. मुहम्मद ने कहा ये मत कहो कि अच्छा मोमिन है ये कहो कि सबसे अच्छा मुस्लिम है. कुछ देर खामोश रहने के बाद फिर विकास ने कहा या रालूलल्लाह वह मेरे नज़दीक इन सब में ज्यादह ईमान वाला मोमिन है. रसूल ने कहा ये न कहो कि तुम उसे मोमिन जानते हो , ये कहो कि मुस्लिम जानते हो नमाज़ रोज़े के साथ उसके ईमान को तो सिर्फ ल्लाह ही जनता है........ 
मोमिन और मुस्लिम का फर्क यहाँ मुहम्मद साफ़ साफ़ बयान कर रहे हैं. 
इसी बात को मैं बार बार दोहराता हूँ कि कुछ बनना है तो इमान दर मोमिन बनो, मुस्लिम बनना बहुत आसान है.मोमिन बन जाने के बाद मुस्लिम बनना गुनेह गारी है. 

बुखारी नम्बर -२७ 
मुहम्मद कहते हैं कि एक बार उनके सामने दोजख पेश की गई जिसमे उन्हों ने देखा की औरतें कसरत से थीं क्यूंकि ये नाशुक्री बहुत करती हैं. एहसान फरामोश होती हैं, अगर तुम इनमें किसी के साथ एहसान करते रहो तो वह ज़रा सी बद उन्वानी पर कह दिया करती हैं कि हमने तुझ में कोई नेकी नहीं देखी. 
मुल्ला जी झूटी तक़रीर किया करते हैं कि उनके हुज़ूर ने औरतों का हक सबसे ज़्यादः अदा किया है. उल्टा औरतें मुहम्मद के पैरों के नीचे आँखें बिछाए रहती हैं.

बुखारी नम्बर -३० 
ज़ुल्म अज़ीमुश्शान 
मुहम्मद और उनका अल्लाह शिर्क को ज़ुल्म अज़ीमुश्शान कहता है, यानी शानदार ज़ुल्म. 
शानदार बुराई. 
अल्लाह और मुहम्मद को अल्फाज़ का इस्तेमाल भी नहीं आता , वह बदतरीन ज़ुल्म कि जगह पर ज़ुल्म अज़ीमुश्शान कहते हैं. .

जीम. मोमिन 

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