Tuesday 4 December 2012

Hadeesi Hadse 84


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"जो व्यक्ति केवल मेरी सहमति के लिए और मुझ पर विश्वास जताने हेतु तथा मेरे दूत (मुहम्मद) के प्रमाणी करण के कारण मेरे रस्ते में जिहाद की उपलब्धियों के लिए निकलता है तो मेरे लिए निर्धारित है कि मैं उसको बदले में माल गनीमत (लुटे गए माल) से माला माल कर के वापस करूँ या जन्नत में दाखिल करूँ. मोहम्मद कहते है अगर मुझे मेरी उम्मत (सम्प्रदाय) का खौफ होता (कि मेरे बाद उनका पथ प्रदर्शन कौन करेगा) तो मैं मुजाहिदीन के किसी लश्कर के पीछे रहता और यह पसंद करता कि मैं अल्लाह के रह में सम्लित होकर जीवित रहूँ, फिर शहीद हो जाऊं, फिर जीवित हो जाऊं, फिर शहीद हो जाऊं - - -
"(हदीस बुखारी ३४)

मदरसों में शिक्षा का श्री गणेश इन हदीसों (मुहम्मद कथानात्मकों) से होती है, इससे हिन्दू ही नहीं आम मुस्लमान अनजान है.
मुहम्मदी अल्लाह की सहमति मार्ग क्या है ? इसे हर मुसलमान को इस्लामदारी से नहीं, बल्कि ईमानदारी से सोचना चाहिए.
मुहम्मदी अल्लाह मुसलमानों को अपने हिदू भाइयों के साथ जेहाद कि रज़ा क्यूं रखता है? इसका उचित जवाब मिलने तक समस्त तर्क अनुचित हैं जो इस्लाम को शांति का द्योतक सिद्ध करते हैं.
मुसलमानों! सौ बार बार इस हदीस को पढो, अगर एक बार में ये तुम्हारे पैगम्बर तुम्हारी समझ में आएं कि ये किस मिट्टी के बने हुए इन्सान थे?
खुद को जंग से इस लिए बचा रहे हैं कि इन को अपनी उम्मत का ख़याल है, तो क्या उम्मत के लिए अल्लाह पर भरोसा नहीं या मौत का क्या एतबार ?
सब मक्र की बातें हैं. मुहम्मद प्रारंभिक इस्लामी सात जंगों में शामिल रहे जिसे गिज्वा कहते हैं. हमेशा लश्कर के पीछे रहते जिसको स्वयं स्वीकारते है. तरकश से तीर निकाल निकाल कर जवानो को देते और कहते कि मार तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान.
जंगे ओहद में मिली शर्मनाक हार के बाद अंतिम पंक्ति में मुंह छिपाए खड़े थे, .नियमानुसार जब अबू सुफ्यान ने तीन बार आवाज़ लगाईं थी कि अगर मुहम्मद जिंदा हों तो खुद को जंगी कैदी बनना मंज़ूर करें और सामने आएं . अल्लाह के झूठे रसूल, बन्दे के लिए भी झूठे मुजरिम बने. जान बचा कर अपनी उम्मत को अंधा बनाए हुए हैं .
मुहम्मद के कथन को हदीस कहा जाता है और हदीसें मुस्लिम बच्चों को ग्रेजुएशन कोर्स की तरह पढाई जाती है, कई लोग हदीसी ज़िन्दगी जीने की हर लम्हा कोशिश करते हैं. कई दीवाने अरबी, फारसी लिपि में लिखी इबारत 'मुहम्मद' की तरह ही बैठते हैं. अपने नबी की पैरवी में सऊदी अरब के शेख चार बीवियों की पाबन्दी के तहत पुरानी को तलाक़ देकर नई कम उम्र लाकर बीवियाँ रिन्यू किया करते हैं. हदीसो में एक से एक गलीज़ बातें हैं. उम्मी यानी निरक्षर गँवार विरोधाभास को तो समझते ही नहीं थे. हज़रात की दो हदीसें मुलाहिजा हों.

-हैं एक शख्स अपनी तहबंद ज़मीन पर लाथेर कर चलता था . अल्लाह तअला ने इसे ज़मीन में धंसा दिया. क़यामत तक ज़मीन में वह यूं ही में धंसता ही रहेगा.'

बुखारी (१४०२)"
-फ़रमाते हैं एक रोज़ मैं सो रहा था कि मेरे सामने कुछ लोग पेश किए गए जिनमें से कुछ लोग तो सीने तक ही कुरता पहने थे, और बअज़ इस से भी कम. इन्हीं लोगों में मैं ने उमर इब्ने अल्खेताब को देखा जो अपना कुरता ज़मीन पर घसीटते हुए चल रहे थे. लोगों ने इसकी तअबीर जब पूछी तो बतलाया यह कुरताए दीन है.''
(बुखारी २२)


कबीर कहते हैं- - -
साँच बराबर तप नहीं झूट बराबर पाप,

जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप।

मुहम्मद के कथन में झूट का अंश देखिए - - -
१- उनको कैसे मालूम हुआ कि अल्लाह तअला तहबन्द ज़मीन पर लथेड कर चलने वाले को ज़मीन में मुसलसल धन्सता रहता है?

-उम्मी सो रहे थे और इनके सामने कुछ लोग पेश किए गए? भला बक़लम खुद का रूतबा तो देखिए. माँ बदौलत नींद के आलम में शहेंशाह हुवा करते थे. जनाब सपनों में पूरा पूरा ड्रामा देखते हैं.- कुछ लोग सीने तक कुरता पहने थे? गोया फुल आस्तीन ब्लाउज? कुछ इससे भी कम? यानी आस्तीन दार चोली? मगर ऐसे लिबासों को कुरता कहने की क्या ज़रुरत थी आप? झूट इस लिए कि आगे कुरते की सिफ़त जो बयान करना था. ज़मीन पर कुरता गोगर गलीज़ को बुहारता चले तो दीन है. लंबी तुंगी हो तो वह ज़मीन में धंसने का अनोखा अज़ाब .ऐसी हदीसों में अक्सर मुसलमान लिपटे हुए लंबे लंबे कुरते और घुटनों के ऊपर पायजामा पहन कर कार्टून बने देखे जा सकते हैं.

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जीम. मोमिन 

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