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गवाही
राम चन्द्र परम हंस ने अदालत में हलफ़ उठा कर गवाही दी थी कि '' मैं ने अपनी आँखों से देखा कि गर्भ गृह से राम लला प्रगत हुए, वहाँ जहाँ बाबरी ढाँचा खड़ा था. अदालत ने उनकी गवाही झूटी मानी, राम चन्द्र परम हँस की जग हँसाई हुई,
मुस्लमान खुल कर हँसे
तो हिदू भी मुस्कुराए बिना रह न सके.
अब ऐसे हिदुओं की बात अलग है जो 'क़सम गीता की खाते फिरते हैं हाथों को तोड़ने के लिए'
जो नादन ही नहीं बे वकूफ भी होते हैं.
राम चन्द्र परम हँस को शर्म नहीं आई, हो सकता है उनकी गवाही सही रही हो गवाही की हद तक. उन्हों ने अपने चेलों से कह दिया हो कि राम लला की मूर्ती चने भरी हांड़ी के ऊपर रख उसमे पानी भर देना और मूर्ती हांड़ी समेत मिटटी में गाड़ देना, चना अंकुरित होकर राम लाला को प्रगट कर देगा. इस परिक्रिया भर की मैं शपत लेलूँगा जो बहर हल झूट तो न होगा.
मुसलमान बाबरी मस्जिद में साढ़े तीन सौ साल से मुश्तकिल तौर पर अलल एलान झूटी गवाही दिन में पांच बार देता चला आया है तो उस पर कोई इलज़ाम, कोई मुक़दमा नहीं? वह गवाही है इस्लामी अज़ान. अज़ान का एक जुमला मुलाहिजा हो - - -
''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह''
अर्थात '' मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के दूत हैं''
अल्लाह को किसने देखा है कि वह मुहम्मद को अपना रसूल बना रहा है और किसने सुना है? कौन है और कितने हैं चौदह सौ सालों के उम्र वाले आज जो जिंदा हैं इस वाकेए के गवाह जो चिल्ला चिल्ला कर गवाही दे रहे हैं
''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह''
दुन्या की हज़ारों मस्जिदों में लाखों मुहम्मद के झूठे गवाह, झूठे राम चन्द्र परम हँस से भी गए गुज़रे हैं.
मुसलामानों!
गौर करो क्या तुम को इस से बढ़ कर तुम्हारी नादानी का सुबूत चाहिए? तुम तो इन गलीज़ ओलिमा के जारीए ठगे जा रहे हो. अपनी आँखें खोलो .
देखिए मुहम्मदी अल्लाह इंसानी खून का कितना प्यासा दिखाई देता है, मुसलामानों को प्रशिक्षित कर रह है क़त्ल और गारत गरी के लिए - - -
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बुखारी 1127
मुहम्मद कहते
हैं कि
उनके ज़माने में लोग सब से अच्छे
होगे, उसके बाद वह जो मेरे ज़माने के बाद
होंगे। उसके बाद ऐसे लोग
होंगे जिनकी गवाही से पहले क़सम होगी और क़सम से पहले
गवाही।
*क्या बका है मुहम्मद ने?
उनके हिसाब से लोग गवाही दें कि
"अशदो अन्ना मुहम्मदुर रसूल अल्लाह"
अज़ान में
जो ऐरे
गैरे उनकी रिसालत
की झूटी
गवाही देते हैं, वह पहले
झूटी क़सम
भी खाएँ? फिर अज़ान दें या फिर
किसी बात
से पहले
अज़ान दिया करें?
सच पूछिए
तो मुहम्मद का ज़माना तारीख
इंसानी में सब से बदतर ज़माना
था जिसका
खामयाज़ा आज तक
इंसानी बिरादरी भुगत रही है।
बुख़ारी 1127
मुहम्मद ने
कहा लोगो! क्या
मैं तुमको गुनाह-सगीरा (छोटे गुनाह)
की इत्तला दूं ,
लोगों ने
कहा ज़रूर.
बतलाया कि
वह जो
अल्लाह के साथ दूसरों को
शरीक करते हैं और
वह जो
अपने मां
बाप की
खदमत नहीं करते।
कुछ देर
की ख़ामोशी के बाद उन्होंने
ऐसी बकवास की कि लोग दुआ करने लगे कि काश मुहम्मद
के मुंह
पर ताला
लगे
*मुहम्मद के मुंह में वबसीर थी, जिसके सबब हदीसं
वजूद में आईं और कुरान उतरा.
मुसलमान इस
हदीस को
गवाही समझें जो खुद उनके
सहाबी इकराम फरमाते
हैं।
गुनाहे-सगीरा
छोटा गुनाह होता है. मुहम्मद
की तो
पूरी ज़िन्गागी ही सगीरा और कबीरा
गुनाहों में गुज़री।
बुख़ारी 1132+
मुहम्मद को
किसी की
तारीफ़ गवारा न थी सिवाय
अपनी और
अपने अल्लाह के.
कहते हैं
अगर कोई
किसी की
तारीफ़ कर
रहा हो
तो उसके
मुँह में
खाक झोंक
दो।
उनकी उम्मत
ने लोगों
के साथ
ऐसा सलूक
किया भी
है।
किस कद्र
तंग नज़र
इन्सान था।
बुखारी 1138
इस्लामी तवारीख़ में
मशहूर वाक़िया है कि मुहम्मद
को उमरा
करने से
अहल-मक्का ने रोक दिया था. मुहम्मद
ने इस
बात को
मान लिया
कि अगले
साल तीन
दिनों तक
मक्का में रह कर उम्र
करेगे। सुलह नामा
तैयार किया गया
जिसमे मुहम्मद ने खुद को
अल्लाह का रसूल
लिखवाया,यानी "मुहम्मदुर
रसूल अल्लाह" ।
जब अहले-मक्का ने उसे देखा तो एतराज़ करते हुए
कहा
अगर हम
लोग आपको
अल्लाह का रसूल
मानते तो
यह फ़ितना
ही न
खड़ा होता। इसकी जगह मुहम्मद
इब्न-अब्दुल्ला लिखिए .
मुहम्मद ने
अली को
मुआहिदा नामा दिया कि इसे मिटा कर इनके मुताबिक
कर दो,
तो अली
ने रद्दो-बदल करने से इंकार कर दिया। मुहम्मद
ने उनके
हाथों से
लेकर दूसरे से इसे दुरुस्त
कराया।
बुखारी 1141
मुहम्मद कहते
हैं जिन
शर्तों को मैंने
नाफ़िज़ किया है उनमें सब से बड़ी यह है कि जिन से तुम ने अपनी
शर्म गाहों को हलाल किया।
* मुहम्मद की मुराद यही है कि निकाही औरत से ही
रुजू करो। मुहम्मद ये शर्त दूसरों के लिए ही लाज़िम क़रार देते हैं। खुद तो वह मादा
झुंडों के सांड थे। इनकी मौत भी आयशा से शर्त पूरा करनें गई। अय्याश नंबर वन थे।
जीम. मोमिन
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