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एक मुहम्मद फ़रामूदा हदीस मुलाहिज़ा हो - - -
मुहम्मद कालीन अबू ज़र कहते हैं कि हुज़ूर गिरामी सल लाल्लाहो अलैह वसस्सल्लम (अर्थात मुहम्मद) ने मुझ से फ़रमाया,
''अबू ज़र तुम को मालूम है यह आफताब (डूबने के बाद) कहाँ जाता है? मैं ने अर्ज़ किया खुदा या खुदा का रसूल ही बेहतर जानता है, फ़रमाया यह अर्श पर इलाही के सामने जाकर सजदा करता है और दोबारा तुलू (प्रगट) होने कि इजाज़त तलब करता है. इसको इजाज़त दी जाती है, लेकिन क़रीब क़यामत में यह सजदा की बदस्तूर इजाज़त तलब करेगा, लेकिन इसका सजदा कुबूल होगा न इजाज़त मिलेगी, बल्कि हुक्म होगा कि जिस तरफ से आया है उसी तरफ को वापस हो जा. चुनांच वह मगरिब (पश्चिम) से तुलू होगा. ''
(बुखारी १३०३) +(सही मुस्लिम - - किताबुल ईमान)
तो मियाँ मुहमम्म्द इस किस्म के लाल बुझक्कड़ थे और अबू ज़र जैसे उल्लू के पट्ठे जो आँख तो आँख मुँह बंद करके सुनते थे, यह भी पूछने की हिम्मत न करते कि सूरज के हाथ पांव सर कहाँ है कि वह सजदा करता होगा? मुहम्मद से सदियों पहले यूनान और भारत में आकाश के रहस्य खुल चुके थे। अफ़सोस का मुकाम यह है कि आज भी मुसलमान अहले हदीस लाखों की तादाद में इस गलाज़त को ढो रहे हैं।
मैं एक गाँव में हुक्के के साथ पीने का मशगला अपने दोस्तों के साथ कर रहा था कि एक मुल्ला जी नमूदार हुए. हमने एख्लाकन उन्हें हुक्के कि तरफ इशारह करके कहा आइए नोश फरमाइए. हुक्के को धिक्कारते हुए बोले'' हुज़ूर ने फ़रमाया है हुक्का, बीडी, सिगरेट पीने वालों के मुंह से क़यामत के दिन शोले निकलेंगे'' लीजिए हो गई एक ताज़ा हदीस, जी हाँ! मुहम्मद के नाम से हर कठ मुल्ला रोज़ नई नई हदीसें गढ़ता है। मुहमाद के ज़माने में हुक्का, बीडी, सिरेट कहाँ थे?
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बुखारी १०९6
उमर के बेटे अब्दुल्ला लिखते हैं कि जब मुहम्मद ने बनी मुस्तलिक की गारत गरी का इरादा किया तो उस वक़्त ये लोग ग़फलत की हालत में थे और अपने मवेशियों को पानी पिला रहे थे. इनमें कुछ लोग क़त्ल हुए कुछ लोग क़ैद किए गए , बच्चों और औरतों को भी क़ैद कर लिया गया. इस गनीमत में आपको (मुहम्मद को) बांदी ज्योरिया मिली.
* खुद हदीसें गवाह है कि मुहम्मद किस कद्र ज़ालिम शख्स और शैतान तबअ थे कि गाफिल बस्तियों को लूट और कत्ल ए आम का शिकार बनाते थे. इस क़दर बे रहम इन्सान कि सिंफे-नाज़ुक पर भी ज़ुल्म करते थे, बच्चों को क़ैद करना इस्लामी तारीख बतलाती है या फिर मूसा की ज़ात इसमें शामिल है.
यही यहूदी औरत ज्योरिया मुहम्मद की जौजियत में शामिल हुई
बुख़ारी ११०१
ग़ुलामों और लौंडियों के खरीद , फ़रोख्त के सिलसिले में मुहम्मद कहते हैं ,
" तुम लोग यह क्या हरकत करते हो कि ऐसी शर्तें बयान करते हो कि जो किताब अल्लाह में मौजूद नहीं है. अगर कोई शख्स ऐसी शर्तें बयान करे जो किताब में न हो, अगर वह ऐसी सौ शर्तें बयान करेगा वह सब बातिल होंगी . वही शर्त क़बिल होंगी जो हक तअला ने फ़रमाई होंगी."
* मुसलमानों को मुन्जमिद रखने वाला इस्लाम अपने उम्मी रसूल के हुक्म पर आज भी लकीर का फकीर बना हुवा है. कोई भी कानून वक़्त के हिसाब से बनता और बिगड़ता है. उस वक़्त लौड़ी और ग़ुलामों की खरीद और फ़रोख्त की शर्त मुहम्मदी अल्लाह ने बनाए थे, आज लौंडी ग़ुलाम रखना ही जुर्म बन गया है.
बुख़ारी ११०३
आयशा अपने भाँजे से कहती हैं कि
"ए भाँजे! दो दो महीने गुज़र जाते थे कि घर में चूल्हा नहीं जलता था." भांजा पूछता है "
तो फिर आप लोग ज़िन्दगी कैसे बसर करते थे?
आयशा जवाब देती हैं कि
"खजूर और पानी मयस्सर थे या फिर पड़ोस में पले मवेशियों से कुछ दूध मिल जाता
* ऐसी तस्वीरें बार बार ओलिमा पेश करते हैं. जब कि मुहम्मद की सारी बीवियों के घरो में बनी नुज़ैर और बाद में खेबर से मॉल गुज़ारियाँ आती थीं
जो अशर्फियों के थैले तक हुवा करते थे. इसके आलावा जंगों से मिला मेल-गनीमत का २०% मॉल आता था.
मुसलमानों! यह अल्लाह की नाजायज़ औलादें, ओलिमा तुमको गुम राह किए हुए हैं. इनकी बातों पर कान मत धरो और इनसे इतना फ़ासला
रहे जितना खिन्जीर से रखते हो. मोमिन तुमको नई राह "ईमान" की दिखलाता हो.
जीम. मोमिन
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