Tuesday, 27 November 2012

Hadeesi Hadse 83


जीम. मोमिन 
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मुहम्मद ?


 1-मुहम्मद एक औसत दर्जे के अरब कबीले के फ़र्द ए अदना थे. पैगम्बरी के शगूफ़े के बाद इनके क़बीले की छान बीन की गई अगर उसको मुस्तनद माना जाए तो इनके नामचीन मूरिसे आला अब्द मुनाफ़ के बेटे उमरू हुए जो रोटियों के टुकड़ों की तेजारत से मालदार होकर अपना मुक़ाम बना सके. यह मक्का से मुल्क शाम तक का ऊँटों से सफ़र करते और पेशेवर गदागरों से रोटियों के टुकड़े खरीदते, उन्हें इकठ्ठा करके मक्का लाते और टुकड़ों को चूरा करके ऊँटों के सालन में मलीदा बना कर बेचते. खास कर यह धंधा हज के ज़माने में खूब चलता. उमरू का नाम इसी व्यापार की वजेह से हाशिम पड़ गया, क्यूँ कि हश्म  का मतलब है चूर करने वाला. इसी रिआयत से मुहम्मद बनी हाशिम कहे जाते हैं.(बनी हाशिम ५०० ई)
मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब कुरैश क़बीला के दबंग परधान थे. उन्होंने प्रचलित अपने देवताओं से मनौती माँगी थी की अगर वह दस जवान बेटों के बाप हो गए तो  उनमें से एक की बलि उनको चढ़ा देंगे. वह दस के बजाय बारह जवान बेटों के बाप बन गए. बलि के लिए जब लाटरी डाली तो मुहम्मद के बाप अब्दुल्लह का नाम निकला. दूसरे बेटों ने इसकी मुखालफत की, अब्दुल मुत्तलिब के लिए धरम संकट पैदा हुवा, एक ओझिन के पास गए, उसने समाधान बतलाया कि दस ऊंटों के साथ अब्दुल्ला का नाम लाटरी में रक्खो, अगर ऊंटों में किसी का नाम आए तो सब ऊंटों की बलि चढ़ा कर गोश्त को ग़रीबों में बाँट दो और फिर भी अब्दुल्ला का नाम आए तो उसकी बलि देदो. इस अमल के बाद भी अब्दुल्ला का नाम आया. बहर हल अब्दुल मुत्तलिब जद्दो जहद करते रहे और देवताओं को धोका देने में खुद धोका खा गए, क्यूँ कि मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला की मौत उनकी शादी के बाद और मुहम्मद की पैदाइश से पहले ही होगई. 
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2- मुहम्मद कि वालिदा आमिना जब बेवा हुईं तो शौहर अब्दुल्ला का छोड़ा हुआ तरका फ़क़त पाँच ऊँट, बकरियों का एक रेवड़, एक हब्सी लौंडी जिसका नाम बरकत और कुन्नियत उम्मे ऐमन. (सहीमुस्लिम) इसने मुहम्मद को गोद में खिलने से लेकर बड़े होने पर और भी खिदमात दी थीं.आगे ज़िक्र आएगा. यही उम्मे ऐमन मुहम्मद के गोद लिए औलाद ज़ैद बिन हारसा की बीवी भी बनीं और यही उम्मे ऐमन मशहूर सहाबी ओसामा की माँ भी यानी नाबालिग ज़ैद बिन हारसा  के बेटे.
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3- मुहम्मद को हलीमा दाई के हवाले किया गया कि उस ज़माने में अरबों का दस्तूर था कि बच्चों को शहर से दूर गाँव की खुली फिज़ा में परवरिश हो और वह ज़मीनी हक़ीक़त से वाकिफ़ हों. गोया मुहम्मद के दादा ने दाइयों की खिदमात का एलान किया, दाइयाँ आतीं, बेवा की हैसियत और दादा के कसीरुर औलादी को देख कर चली जातीं, फिर गरीब हलीमा ने यतीम मुहम्मद को ले जाना मंज़ूर कर लिया (ज़ादा अल्मेआद १९/१) मुहम्मद दो साल बाद अपनी माँ के पास ले आए गए.  आमना ने उस बच्चे की परवरिश से मुतमईन  होकर उसे वापस हलीमा के सुपुर्द दोबारा कर दिया (इब्ने हश्शाम १६२-१६४)

Tuesday, 20 November 2012

Hadeesi Hadse 82


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गवाही 


राम चन्द्र परम हंस ने अदालत में हलफ़ उठा कर गवाही दी थी कि '' मैं ने अपनी आँखों से देखा कि गर्भ गृह से राम लला प्रगत हुए, वहाँ जहाँ बाबरी ढाँचा खड़ा था. अदालत ने उनकी गवाही झूटी मानी, राम चन्द्र परम हँस की जग हँसाई हुई,
मुस्लमान खुल कर हँसे
तो हिदू भी मुस्कुराए बिना रह न सके.
अब ऐसे हिदुओं की बात अलग है जो 'क़सम गीता की खाते फिरते हैं हाथों को तोड़ने के लिए'
जो नादन ही नहीं बे वकूफ भी होते हैं.
राम चन्द्र परम हँस को शर्म नहीं आई, हो सकता है उनकी गवाही सही रही हो गवाही की हद तक. उन्हों ने अपने चेलों से कह दिया हो कि राम लला की मूर्ती चने भरी हांड़ी के ऊपर रख उसमे पानी भर देना और मूर्ती हांड़ी समेत मिटटी में गाड़ देना, चना अंकुरित होकर राम लाला को प्रगट कर देगा. इस परिक्रिया भर की मैं शपत लेलूँगा जो बहर हल झूट तो न होगा.
मुसलमान बाबरी मस्जिद में साढ़े तीन सौ साल से मुश्तकिल तौर पर अलल एलान झूटी गवाही दिन में पांच बार देता चला आया है तो उस पर कोई इलज़ाम, कोई मुक़दमा नहीं? वह गवाही है इस्लामी अज़ान. अज़ान का एक जुमला मुलाहिजा हो - - -
''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह''
अर्थात '' मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के दूत हैं''
अल्लाह को किसने देखा है कि वह मुहम्मद को अपना रसूल बना रहा है और किसने सुना है? कौन है और कितने हैं चौदह सौ सालों के उम्र वाले आज जो जिंदा हैं इस वाकेए के गवाह जो चिल्ला चिल्ला कर गवाही दे रहे हैं
''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह''
दुन्या की हज़ारों मस्जिदों में लाखों मुहम्मद के झूठे गवाह, झूठे राम चन्द्र परम हँस से भी गए गुज़रे हैं.
मुसलामानों!
गौर करो क्या तुम को इस से बढ़ कर तुम्हारी नादानी का सुबूत चाहिए? तुम तो इन गलीज़ ओलिमा के जारीए ठगे जा रहे हो. अपनी आँखें खोलो .
देखिए मुहम्मदी अल्लाह इंसानी खून का कितना प्यासा दिखाई देता है, मुसलामानों को प्रशिक्षित कर रह है क़त्ल और गारत गरी के लिए - - - 
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बुखारी 1127
मुहम्मद कहते हैं कि उनके ज़माने में लोग सब से अच्छे होगे, उसके बाद वह जो मेरे ज़माने के बाद होंगे। उसके बाद ऐसे लोग होंगे जिनकी गवाही से पहले क़सम होगी और क़सम से पहले गवाही
*क्या बका है मुहम्मद ने?
उनके हिसाब से लोग गवाही दें कि
"अशदो अन्ना मुहम्मदुर रसूल अल्लाह"
अज़ान में जो ऐरे गैरे उनकी रिसालत की झूटी गवाही देते हैं, वह पहले झूटी क़सम भी खाएँ? फिर अज़ान दें या फिर
किसी बात से पहले अज़ान दिया करें?
सच पूछिए तो मुहम्मद का ज़माना तारीख इंसानी में सब से बदतर ज़माना था जिसका खामयाज़ा आज तक इंसानी बिरादरी भुगत रही है।

बुख़ारी 1127
मुहम्मद ने कहा लोगो! क्या मैं तुमको गुनाह-सगीरा (छोटे गुनाह) की इत्तला दूं ,
लोगों ने कहा ज़रूर.
बतलाया कि वह जो अल्लाह के साथ दूसरों को शरीक करते हैं और
वह जो अपने मां बाप की खदमत नहीं करते
कुछ देर की ख़ामोशी के बाद उन्होंने ऐसी बकवास की कि लोग दुआ करने लगे कि काश मुहम्मद के मुंह पर ताला लगे
*मुहम्मद के मुंह में वबसीर थी, जिसके सबब हदीसं वजूद में आईं और कुरान उतरा.
मुसलमान इस हदीस को गवाही समझें जो खुद उनके सहाबी इकराम फरमाते हैं।
गुनाहे-सगीरा छोटा गुनाह होता है. मुहम्मद की तो पूरी ज़िन्गागी ही सगीरा और कबीरा गुनाहों में गुज़री।

बुख़ारी 1132+
मुहम्मद को किसी की तारीफ़ गवारा थी सिवाय अपनी और अपने अल्लाह के.
कहते हैं अगर कोई किसी की तारीफ़ कर रहा हो तो उसके मुँह में खाक झोंक दो।
उनकी उम्मत ने लोगों के साथ ऐसा सलूक किया भी है।
किस कद्र तंग नज़र इन्सान था।

बुखारी 1138
इस्लामी तवारीख़ में मशहूर वाक़िया है कि मुहम्मद को उमरा करने से अहल-मक्का ने रोक दिया था. मुहम्मद ने इस बात को मान लिया कि अगले साल तीन दिनों तक मक्का में रह कर उम्र करेगे। सुलह नामा तैयार किया गया जिसमे मुहम्मद ने खुद को अल्लाह का रसूल लिखवाया,यानी "मुहम्मदुर रसूल अल्लाह"
जब अहले-मक्का ने उसे देखा तो एतराज़ करते हुए कहा
अगर हम लोग आपको अल्लाह का रसूल मानते तो यह फ़ितना ही खड़ा होता। इसकी जगह मुहम्मद इब्न-अब्दुल्ला लिखिए .
मुहम्मद ने अली को मुआहिदा नामा दिया कि इसे मिटा कर इनके मुताबिक कर दो, तो अली ने रद्दो-बदल करने से इंकार कर दिया। मुहम्मद ने उनके हाथों से लेकर दूसरे से इसे दुरुस्त कराया।

बुखारी 1141
मुहम्मद कहते हैं जिन शर्तों को मैंने नाफ़िज़ किया है उनमें सब से बड़ी यह है कि जिन से तुम ने अपनी शर्म गाहों को हलाल किया।
* मुहम्मद की मुराद यही है कि निकाही औरत से ही रुजू करो। मुहम्मद ये शर्त दूसरों के लिए ही लाज़िम क़रार देते हैं। खुद तो वह मादा झुंडों के सांड थे। इनकी मौत भी आयशा से शर्त पूरा करनें गई। अय्याश नंबर वन थे।  


जीम. मोमिन 

Tuesday, 13 November 2012

Hadeesi Hadse 81


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लाल बुझक्कड़ 

एक मुहम्मद फ़रामूदा हदीस मुलाहिज़ा हो - - -

मुहम्मद कालीन अबू ज़र कहते हैं कि हुज़ूर गिरामी सल लाल्लाहो अलैह वसस्सल्लम (अर्थात मुहम्मद) ने मुझ से फ़रमाया, 
''अबू ज़र तुम को मालूम है यह आफताब (डूबने के बाद) कहाँ जाता है? मैं ने अर्ज़ किया खुदा या खुदा का रसूल ही बेहतर जानता है, फ़रमाया यह अर्श पर इलाही के सामने जाकर सजदा करता है और दोबारा तुलू (प्रगट) होने कि इजाज़त तलब करता है. इसको इजाज़त दी जाती है, लेकिन क़रीब क़यामत में यह सजदा की बदस्तूर इजाज़त तलब करेगा, लेकिन इसका सजदा कुबूल होगा न इजाज़त मिलेगी, बल्कि हुक्म होगा कि जिस तरफ से आया है उसी तरफ को वापस हो जा. चुनांच वह मगरिब (पश्चिम) से तुलू होगा. '' 
(बुखारी १३०३) +(सही मुस्लिम - - किताबुल ईमान)

तो मियाँ मुहमम्म्द इस किस्म के लाल बुझक्कड़ थे और अबू ज़र जैसे उल्लू के पट्ठे जो आँख तो आँख मुँह बंद करके सुनते थे, यह भी पूछने की हिम्मत न करते कि सूरज के हाथ पांव सर कहाँ है कि वह सजदा करता होगा? मुहम्मद से सदियों पहले यूनान और भारत में आकाश के रहस्य खुल चुके थे। अफ़सोस का मुकाम यह है कि आज भी मुसलमान अहले हदीस लाखों की तादाद में इस गलाज़त को ढो रहे हैं। 
मैं एक गाँव में हुक्के के साथ पीने का मशगला अपने दोस्तों के साथ कर रहा था कि एक मुल्ला जी नमूदार हुए. हमने एख्लाकन उन्हें हुक्के कि तरफ इशारह करके कहा आइए नोश फरमाइए. हुक्के को धिक्कारते हुए बोले'' हुज़ूर ने फ़रमाया है हुक्का, बीडी, सिगरेट पीने वालों के मुंह से क़यामत के दिन शोले निकलेंगे'' लीजिए हो गई एक ताज़ा हदीस, जी हाँ! मुहम्मद के नाम से हर कठ मुल्ला रोज़ नई नई हदीसें गढ़ता है। मुहमाद के ज़माने में हुक्का, बीडी, सिरेट कहाँ थे? 
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बुखारी १०९6 
उमर के बेटे अब्दुल्ला लिखते हैं कि जब मुहम्मद ने बनी मुस्तलिक की गारत गरी का इरादा किया तो उस वक़्त ये लोग ग़फलत की हालत में थे और अपने मवेशियों को पानी पिला रहे थे. इनमें कुछ लोग क़त्ल हुए कुछ लोग क़ैद किए गए , बच्चों और औरतों को भी क़ैद कर लिया गया. इस गनीमत में आपको (मुहम्मद को) बांदी ज्योरिया मिली.

* खुद हदीसें गवाह है कि मुहम्मद किस कद्र ज़ालिम शख्स और शैतान तबअ थे कि गाफिल बस्तियों को लूट और कत्ल ए आम का शिकार बनाते थे. इस क़दर बे रहम इन्सान कि सिंफे-नाज़ुक पर भी ज़ुल्म करते थे, बच्चों को क़ैद करना इस्लामी तारीख बतलाती है या फिर मूसा की ज़ात इसमें शामिल है. 
यही यहूदी औरत ज्योरिया मुहम्मद की जौजियत में शामिल हुई 

बुख़ारी ११०१ 
ग़ुलामों और लौंडियों के खरीद , फ़रोख्त के सिलसिले में मुहम्मद कहते हैं ,
" तुम लोग यह क्या हरकत करते हो कि ऐसी शर्तें बयान करते हो कि जो किताब अल्लाह में मौजूद नहीं है. अगर कोई शख्स ऐसी शर्तें बयान करे जो किताब में न हो, अगर वह ऐसी सौ शर्तें बयान करेगा वह सब बातिल होंगी . वही शर्त क़बिल होंगी जो हक तअला ने फ़रमाई होंगी." 

* मुसलमानों को मुन्जमिद रखने वाला इस्लाम अपने उम्मी रसूल के हुक्म पर आज भी लकीर का फकीर बना हुवा है. कोई भी कानून वक़्त के हिसाब से बनता और बिगड़ता है. उस वक़्त लौड़ी और ग़ुलामों की खरीद और फ़रोख्त की शर्त मुहम्मदी अल्लाह ने बनाए थे, आज लौंडी ग़ुलाम रखना ही जुर्म बन गया है.
 
बुख़ारी ११०३ 
आयशा अपने भाँजे से कहती हैं कि 
"ए भाँजे! दो दो महीने गुज़र जाते थे कि घर में चूल्हा नहीं जलता था." भांजा पूछता है "
तो फिर आप लोग ज़िन्दगी कैसे बसर करते थे? 
आयशा जवाब देती हैं कि 
"खजूर और पानी मयस्सर थे या फिर पड़ोस में पले मवेशियों से कुछ दूध मिल जाता 
* ऐसी तस्वीरें बार बार ओलिमा पेश करते हैं. जब कि मुहम्मद की सारी बीवियों के घरो में बनी नुज़ैर और बाद में खेबर से मॉल गुज़ारियाँ आती थीं 
जो अशर्फियों के थैले तक हुवा करते थे. इसके आलावा जंगों से मिला मेल-गनीमत का २०% मॉल आता था. 
मुसलमानों! यह अल्लाह की नाजायज़ औलादें, ओलिमा तुमको गुम राह किए हुए हैं. इनकी बातों पर कान मत धरो और इनसे इतना फ़ासला 
रहे जितना खिन्जीर से रखते हो. मोमिन तुमको नई राह "ईमान" की दिखलाता हो. 



जीम. मोमिन 

Tuesday, 6 November 2012

Hadeesi Hadse 80


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बुखारी ११३१


मुहम्मद की पोती नुमा बीवी कहती हैं कि मुहम्मद जब भी जंग के लिए जाते तो साथ में अपनी किसी न किसी बीवी को साथ ज़रूर ले जाते. इसके लिए वह बीवियों की क़ुरअ अंदाजी करते.
वह किसी जंग में जा रहे थे कि क़ुरअ अंदाजी में मेरा नाम निकल आया. चूंकि परदे का हुक्म जारी हो चुका था इसलिए मेरी ख़ातिर परदे दार कुजावे (ऊंटों पर रखा जाने वाला हौद) का इन्तेज़ाम किया गया. कुजावा मय सवारी के ऊंटों पर चढ़ा दिया जाता और इसी तरह मय सवारी उतारा जाता. 
मुहम्मद जंग से फ़ारिग़ होकर मदीना वापस हो रहे थे कि मदीने के पहले पहुँच कर आखरी मंजिल में शब् गुज़ारी के लिए ऐलान हुवा. 
मैं सुबह को क़जाए हाजत के लिए कुजावे से बाहर निकली और दूर चली गई, वापसी में मेरा हाथ अपने गले पर गया तो एहसास हुवा कि मेरा शुगरे-ज़ुफार का हार गले से गायब था, मैं वापस उस मुकाम तक गई और हार ढूंढती रही. हार खुदा खुदा करके मिल गता तो मैं वापस काफिले के पास गई, तो वहां कुछ न था, मालूम हुवा काफ़िला कूच कर गया, मेरा सर चकराया और मैं वहीँ बैठ गई. 
आयशा कहती हैं मैं उस ज़माने मैं एक हलकी फुल्की लड़की थी जैसे कि कुँवारी लड़कियां होती हैं, मजदूरों को ख़याल हुवा कि मैं कुजावे बैठी हूँ, ग़रज़ खाली कुजावा ऊँट पर कस दिया गया. मै सोचने लगी कि जब लोग कुजावे में मुझे न पाएँगे तो ज़रूर वापस होंगे. 
इसी मुक़ाम पर बैठे बैठे मुझे नींद आ गई. हज़रात सिफ़वान इब्ने मुअत्तल जो कि  क़फ़िले के पीछे सफ़र किया करते थे (इस लिए कि क़फ़िले की कोई चीज़ छूट गई हो तो उसे उठा लें) जब सुबह को मेरे क़रीब पहुंचे तो मुझे पहचान लिया. उन्हों ने ऊँट पर मुझे बिठाया और खुद मोहार पकड़ कर चलने लगे यहाँ तक कि मेरा क़ाफ़िला मैदान में धूप सेंकता हुवा मुझे मिल गया. 
इस अरसे में जिसको फितना आराई करनी थी, कर चुके थे( यह अब्दुल्ला इब्न अबी, इब्ने सलूल था जिसने आयशा पर बोहतान तराशी की थी.) 
हम लोग मदीना पहुंचे, मैं वहां बीमार पड़ गई, बोहतान की खबर मदीने में रोज़ बरोज़ तरक्क़ी करती गई. और मेरे शौहर मुहम्मद भी उनमें शामिल हो गए जो इलज़ाम तराशी में थे. इस बीमारी में मैं बहुत ज़ईफ़ हो गई. एक दिन मेरी एक दोस्त ने बोहतान की पूरी दास्तान मुझको सुनाई. मैं इसे सुन कर और भी नहीफ़ हो गई. मै अपने मायके चली गई जहाँ मेरी माँ ने मुझे तसल्ली दी. इस दौरान मुहम्मद ने अली औ ओसामा इब्ने ज़ैद को बुलाया और मश्विरह तलब किया ( इस दौरान शायद अल्लाह भी शक ओ शुब्हः में पड़ा था कि वहिय न भेजता था) दोनों ने अपने अपने तबीयत के मुताबिक राय दिया, ओसामा ने आयशा के हक में मश्विरह दिया मगर अली ने कज अदाई की. बात को बरीरा तक बढ़ा दिया. बरीरा ने भी मुहम्मद को आयशा की खूबियाँ ही बतलाईं.
मुहम्मद वहां से उट्ठे और सीधे सलूल की तरफ़ गए और इलज़ाम तराशों को कुछ मशविरा देने के बाद उनसे मुआज्रत ख्वाह होने पर जोर दिया. बात बढ़ कर क़बीलाई अज़मतों तक पहुँच गई. दो मक्की और मदनी क़बीलाई सरदारों में पहले लफज़ी जंग हुई, बात बढ़ गई तो हाथ तलवारों तक पहुँच गए. इस नाज़ुकी को देख कर मुहम्मद उठे और सबको ख़मोश किया और ख़ामोशी छा गई. 
आयशा कहती है कि रो रो कर उसका हाल बुरा था कि एक महीने बाद मुहम्मद ने जुबान खोली, आकर बैठे और कहने लगे
" आयशा मुझे यक़ीन है कि अल्लाह जल्द ही तुम्हारे बारे में वह्यी भेजेगा फिर भी अगर तुमने ऐसे फ़ेल का इर्तेकाब किया है तो खुदा तअला से तौबा करो, क्योंकि जब कोई बन्दा गुनाह करके तौबा करता है तो खुदा उसके गुनाहों को मुआफ़ कर देता है. " 
मुहम्मद का कलाम ख़त्म हुवा तो आयशा के आंसू खुश्क हो चुके थे और वह हर एहसास से खुद को बरी कर लिया था, बाप से बोली "इनसे बातें आप ही कर लें या वाल्दा", दोनों ने कहा बेटी मैं खुद हैरान हूँ कि नबी को क्या जवाब दें. आयशा कहती है " खुदा की क़सम मैं ने महसूस किया है कि मुआमले को लोगों ने इतना मशहूर किया है कि सबके दिलों में यह यक़ीन बन गया है कि मैं मुजरिम हूँ, आप लोग मेरी हाँ करने के मुन्तजिर हैं. आप लोग जो बयान करते हो, इसके लिए मेरा खुदा ही मेरा मदद गार है." ये कहती हुई अपने बिस्तर पर चली गई कि
"मैं अपने आप को इस काबिल नहीं समझती कि मेरी ज़ात पर वह्यी उतरे और क़ुरआन में मेरा वाक़िया नमाज़ों में पढ़ा जाए. मैं खुद को इकदम कमतर समझती हूँ और उम्मीद करती हूँ कि अल्लाह ताला नबी को सच ख्वाब में दिखला दे. "
इसके बाद मुहम्मद पर वह्यी आई, वह पसीना पसीना हुए और बोले "आयशा तुम इलज़ाम से बरी हुईं, अल्लाह ने तुम्हारे बारे में वह्यी भेज दी है.
"आयशा की मां ने उस से कहा
"बेटी तू मुहम्मद का शुकिया अदा कर कि उनका दिल साफ़ हो गया है."
आयशा बोली "मैं अल्लाह के आलावा किसी का शुक्रिया नहीं अदा करूंगी." 
इस वह्यी के नाटक के बाद कि मुहम्मद के अल्लाह ने मुहम्मद को अपनी शहादत दे दी, ये सख्स फिर अपनी बे निकाही बीवी ज़ैनब से दर्याफ़्त करता है कि
"ज़ैनब तुम बतलाओ कि आयशा का किरदार कैसा है?"
ज़ैनब भी आयशा की कट्टर सौतन होते हुए भी कहा
"मैंने आयशा के किरदार में कोई लगजिश नहीं पाई." 
* इस वाक़िए की हक़ीक़त तो साफ़ नहीं है कि मुहम्मद की बीवी आयशा पर इलज़ाम सही हैं कि ग़लत? मगर मुहम्मद की पैगम्बरी ज़रूर झूटी साबित होती है. एक कमज़ोर इंसान की तरह वह पूरी ज़िन्दगी शक ओ शुबह में पड़े रहे. उनका पाखंड वह्यी (आकाश वाणी) भी उनको इत्मीनान न दे सकी, जो मुसलमानों का अकीदा तकमील-कुरान है. 




जीम. मोमिन