
जीम. मोमिन
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मुहम्मद ?
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मुहम्मद ?
1-मुहम्मद एक औसत दर्जे के अरब कबीले के फ़र्द ए अदना थे. पैगम्बरी के शगूफ़े के बाद इनके क़बीले की छान बीन की गई अगर उसको मुस्तनद माना जाए तो इनके नामचीन मूरिसे आला अब्द मुनाफ़ के बेटे उमरू हुए जो रोटियों के टुकड़ों की तेजारत से मालदार होकर अपना मुक़ाम बना सके. यह मक्का से मुल्क शाम तक का ऊँटों से सफ़र करते और पेशेवर गदागरों से रोटियों के टुकड़े खरीदते, उन्हें इकठ्ठा करके मक्का लाते और टुकड़ों को चूरा करके ऊँटों के सालन में मलीदा बना कर बेचते. खास कर यह धंधा हज के ज़माने में खूब चलता. उमरू का नाम इसी व्यापार की वजेह से हाशिम पड़ गया, क्यूँ कि हश्म का मतलब है चूर करने वाला. इसी रिआयत से मुहम्मद बनी हाशिम कहे जाते हैं.(बनी हाशिम ५०० ई)
मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब कुरैश क़बीला के दबंग परधान थे. उन्होंने प्रचलित अपने देवताओं से मनौती माँगी थी की अगर वह दस जवान बेटों के बाप हो गए तो उनमें से एक की बलि उनको चढ़ा देंगे. वह दस के बजाय बारह जवान बेटों के बाप बन गए. बलि के लिए जब लाटरी डाली तो मुहम्मद के बाप अब्दुल्लह का नाम निकला. दूसरे बेटों ने इसकी मुखालफत की, अब्दुल मुत्तलिब के लिए धरम संकट पैदा हुवा, एक ओझिन के पास गए, उसने समाधान बतलाया कि दस ऊंटों के साथ अब्दुल्ला का नाम लाटरी में रक्खो, अगर ऊंटों में किसी का नाम आए तो सब ऊंटों की बलि चढ़ा कर गोश्त को ग़रीबों में बाँट दो और फिर भी अब्दुल्ला का नाम आए तो उसकी बलि देदो. इस अमल के बाद भी अब्दुल्ला का नाम आया. बहर हल अब्दुल मुत्तलिब जद्दो जहद करते रहे और देवताओं को धोका देने में खुद धोका खा गए, क्यूँ कि मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला की मौत उनकी शादी के बाद और मुहम्मद की पैदाइश से पहले ही होगई.
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2- मुहम्मद कि वालिदा आमिना जब बेवा हुईं तो शौहर अब्दुल्ला का छोड़ा हुआ तरका फ़क़त पाँच ऊँट, बकरियों का एक रेवड़, एक हब्सी लौंडी जिसका नाम बरकत और कुन्नियत उम्मे ऐमन. (सहीमुस्लिम) इसने मुहम्मद को गोद में खिलने से लेकर बड़े होने पर और भी खिदमात दी थीं.आगे ज़िक्र आएगा. यही उम्मे ऐमन मुहम्मद के गोद लिए औलाद ज़ैद बिन हारसा की बीवी भी बनीं और यही उम्मे ऐमन मशहूर सहाबी ओसामा की माँ भी यानी नाबालिग ज़ैद बिन हारसा के बेटे.
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3- मुहम्मद को हलीमा दाई के हवाले किया गया कि उस ज़माने में अरबों का दस्तूर था कि बच्चों को शहर से दूर गाँव की खुली फिज़ा में परवरिश हो और वह ज़मीनी हक़ीक़त से वाकिफ़ हों. गोया मुहम्मद के दादा ने दाइयों की खिदमात का एलान किया, दाइयाँ आतीं, बेवा की हैसियत और दादा के कसीरुर औलादी को देख कर चली जातीं, फिर गरीब हलीमा ने यतीम मुहम्मद को ले जाना मंज़ूर कर लिया (ज़ादा अल्मेआद १९/१) मुहम्मद दो साल बाद अपनी माँ के पास ले आए गए. आमना ने उस बच्चे की परवरिश से मुतमईन होकर उसे वापस हलीमा के सुपुर्द दोबारा कर दिया (इब्ने हश्शाम १६२-१६४)