Tuesday 11 September 2012

Hadeesi Hadse - 52



यह जहन्नुमी आलिमाने-दीन

क़यामत के दिन तमाम इस्लामी ओलिमा और आइमा को चुन चुन कर अल्लाह जब जहन्नम रसीदा कर चुकेगा तो ही उसके बाद दूसरे बड़े गुनाहगारों की सूची-तालिका अपनी हाथ में उठाएगा. यह (तथा कथित धार्मिक विद्वान) टके पर मस्जिद और कौडियों में मन्दिर ढ़ा सकते हैं। ये दरोग़, क़िज़्ब, मिथ्य और झूट के यह मतलाशी, शर और पाखंड के खोजी हुवा करते हैं। इनकी बिरादरी में इनके गढे झूट का जो काट न कर पाए वही सब से बड़ा आलिम होता है। यह इस्लाम के अंतर गत तस्लीम शुदा इल्म के आलिम होते हैं यथार्थ से अपरिचित यानी कूप मंडूक जिसका ईमान से कोई संबंध नहीं होता। लफ्ज़ ईमान पर तो इस्लाम ने कब्जा कर रखा है, ईमान का इस्लामी-करण कर लिया गया है, वगरना इस्लाम का ईमान से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। ईमान धर्म-कांटे का निकला हुवा सच है, इस्लाम किसी अल्प-बुद्धि की बतलाई हुई ऊल-जुलूल बातें हैं, जिसको आँख मूँद कर तस्लीम कर लेना इस्लाम है।

अमरीकी प्रोफेसर सय्यद वकार अहमद हुसैनी कहते हैं "कुरान की 6226 आयातों में से 941 पानी के विज्ञानं और इंजीनयरिंग से संबध हैं, 1400 अर्थ शास्त्र से, जब कि केवल 6 रोजे से हैं और 8 हज से।"
प्रोफेसर हुसैनी का ये सफेद झूट है, या प्रोफ़सर हुसैनी ही फर्ज़ी अमरीकी प्रोफ़सर हैं, जैसा कि ये धूर्त इस्लामी विद्वान् अक्सर ऐसे शिगूफे छोड़ा करते हैं । कुरआन कहता है
"आसमान ज़मीन की ऐसी छत है जो बगैर खंभे के टिका हुआ है. ज़मीन ऐसी है कि जिस में पहाडों के खूटे ठुके हुए हैं ताकि यह अपनी जगह से हिले-डुले नहीं" और "इंसान उछलते हुए पानी से पैदा हुवा है" क़ुरआन में यह है इंजीनयरिंग और पानी का विज्ञान जैसी बातें। इसी किस्म के ज्ञान (दर अस्ल अज्ञान) से क़ुरआन अटा पडा है जिस पर विश्वास के कारण ही मुस्लिम समाज पिछड़ा हुवा है. मलऊन ओलिमा इन जेहाल्तो में मानेयो-मतलब पिरो रहे हैं. हकीक़त ये है की क़ुरआन और हदीस में इंसानी समाज के लिए बेहद हानि कारक, अंधविश्वास पूर्ण और एक गैरत मंद इंसान के लिए अपमान जनक बातें हैं, जिन्हें यही आलिम उल्टा समझा समझा कर मुस्लिम अवाम को गुमराह किया करते है।
अभी पिछले दिनों एन डी टी वी के प्रोग्राम में हिदुस्तान की एक बड़ी इस्लामी जमाअत के दिग्गज और ज़िम्मेदर आलिम महमूद मदनी, जमाअत का प्रतिनिधित्व करते हुए भरी महफ़िल में अवाम की आंखों में धूल झोंक गए। बहस का विषय तसलीमा नसरीन थी। मौलाना तसलीमा की किताब को हवा में लहराते हुए बोले,"तसलीमा लिखती है 'उसने अपने बहू से शादी की " गुस्ताख को देखो हुज़ूर की शान में कैसी बे अदबी कर रही है।" ( मदनी को मालूम नहीं कि अंग्रेज़ी से हिन्दी तर्जुमा में यही भाषा होती है।) आगे कहते है "हुज़ूर की (पैगम्बर मुहम्मद की ) कोई औलादे-नरीना (लड़का) थी ही नही तो बहू कैसे हो सकती है ?" बात टेकनिकल तौर पर सच है मगर पहाड़ से बड़ा झूट, जिसे लाखों दर्शकों के सामने एक शातिर और अय्यार मौलाना बोलकर चला गया और अज्ञात क़ौम ने तालियाँ बजाईं। उसकी हकीक़त का खुलासा देखिए-----
किस्से की सच्चाई ये है कि ज़ैद बिन हारसा एक मासूम गोद में उठा लेने के लायक बच्चा हुवा करता था। उस लड़के को बुर्दा फरोश (बच्चे चुराने वाले) 

ज़ैद का बाप हारसा बेटे के ग़म में परेशान ज़ारों-क़तार रोता फिरता। एक दिन उसे पता चला कि उसका बेटा मदीने में मुहम्मद के पास है, वह फिरोती की रक़म जिस कदर उससे बन सकी लेकर अपने भाई के साथ,मुहम्मद के पास गया। ज़ैद बाप और चचा को देख कर उनसे लिपट गया। हारसा की दरखास्त पर मोहम्मद ने कहा पहले ज़ैद से तो पूछो कि वह किया चाहता है ? पूछने पर ज़ैद ने बाप के साथ जाने से इनकार कर दिया, तभी बढ़ कर मुहम्मद ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और सब के सामने अल्लाह को गवाह बनाते हुए ज़ैद को अपनी औलाद और ख़ुद को उसका बाप घोषित किया। ज़ैद बड़ा हुवा तो उसकी शादी अपनी कनीज़ ऐमन से कर दी। बाद में दूसरी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से की। ज़ैनब से शादी करने पर कुरैशियों ने एतराज़ भी खड़ा किया कि ज़ैद गुलाम ज़ादा है, इस पर मुहम्मद ने कहा ज़ैद गुलाम ज़ादा नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है। मशहूर सहाबी ओसामा ज़ैद का बेटा है 

जो मुहम्मद का बहुत प्यारा था. गोद में लिए हुए उम्र के ज़ैद वल्द मुहम्मद एक अदद ओसामा का बाप भी बन गया और मुहम्मद के साथ अपनी बीवी ज़ैनब को लेकर रहता रहा, बहुत से मुहम्मद कालीन सहाबी उसको बिन मुहम्मद मरते दम तक कहते रहे और आज के टिकिया चोर ओलिमा कहते हैं मुहम्मद की कोई औलादे-नरीना ही नहीं थी. सच्चाई इनको अच्छी तरह मालूम है कि वह किस बात की परदा पोशी कर रहे हैं.
दर अस्ल गुलाम ज़ैद की पहली पत्नी ऐमन मुहम्मद की उम्र दराज़ सेविका थी ओलिमा उसको पैगम्बर की माँ की तरह बतला कर मसलेहत से काम लेते है. खदीजा मुहम्मद की पहली पत्नी भी ऐमन की हम उम्र मुहम्मद से पन्द्रह साल बड़ी थीं. ज़ैद की जब शादी ऐमन से हुई, वह जिंस लतीफ़ से वाकिफ भी न था. नाम ज़ैद का था काम मुहम्मद का, चलता रहा. इसी रिआयत को लेकर मुहम्मद ने जैनब, अपनी पुरानी आशना के साथ फर्माबरदार पुत्र ज़ैद की शादी कर दी, मगर ज़ैद तब तक बालिग़ हो चुका था . एक दिन, दिन दहाड़े ज़ैद ने देखा कि उसका बाप मुहम्मद उसकी बीवी जैनब के साथ मुंह काला कर रहा है, रंगे हाथों पकड़ जाने के बाद मुहम्मद ने लाख लाख ज़ैद को पटाया कि ऐमन की तरह दोनों का काम चलता रहे मगर ज़ैद नहीं पटा. कुरआन में सूरह अहज़ाब में इस तूफ़ान बद तमीजी की पूरी तफ़सील है मगर आलिमाने-दीन हर ऐब में खूबी गढ़ते नज़र आएंगे.
इसके बाद इसी बहू ज़ैनब को मुहम्मद ने बगैर निकाह किए हुए अपनी दुल्हन होने का एलान किया और कहा कि "ज़ैनब का मेरे साथ निकाह सातवें आसमान पर हुवा, अल्लाह ने निकाह पढ़ाया था और फ़रिश्ता जिब्रील ने गवाही दी।" इस दूषित और घृणित घटना में लंबा विस्तार है जिसकी परदा पोशी ओलिमा पूर्व चौदह सौ सालों से कर रहे हैं। इनके पीछे अल्कएदा, जैश, हिजबुल्ला और तालिबान की फोजें हर जगह फैली हुई हैं। "मुहम्मद की कोई औलादे-नारीना नहीं थी" इस झूट का खंडन करने की हिंदो-पाक और बांगला देश के पचास करोड़ आबादी में सिर्फ़ एक औरत तसलीमा नसरीन ने किया जिसका जीना हराम हो गया है।

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बुखारी १००१
"मुहम्मद का कहना है कि कुत्ते की तिजारत, भडुवा गीरी, और काहनों की बाटी हुई मिठाई खाना हराम है."
* क़ुरानी फ़रमान में मुहम्मदी अल्लाह कहता है कि "अपनी लौंडियों की जिस्म फ़रोशी से मिलने वाले फ़ायदे हैं तो मना फिर भी इसके लिए अल्लाह मेहरबान मुआफ करने वाला है."?
यानि इस बद तरीन कमाई खाना गनीमत है मगर कुत्ते की परवरिश के बदले में मिलने वाला मव्ज़ा हराम.
बुखारी अ००७
मुहम्मद ने कहा "अल्लाह तअला जिसे अपना नबी मबऊस (मुक़र्रर)करता है, वह बकरियां को ज़रूर चराए हुए होता है."
 किसी ने पूछा क्या आप भी? कहा
"हाँ मैं भी मक्का में चन्द दिरहम के एवाज़ बकरियां चराइं."
*बकरियां चराने के दौरान मुहम्मद ने पैगम्बरी का ख्वाब भी देखा. मुराद पूरी होने पर दुन्या के बड़े हिस्से को किसी चरवाहे का इल्मे-जिहालत तकसीम किया जो दुन्या के लिए अजाब बना हुवा है.
बुखारी  १००८
मुहम्मद एक मिसाल पेश करते हैं कि
" किसी ने एक काम पूरा करने के लिए कुछ लोगों को काम पर रखा मगर काम पूरा करने से पहले वह थक हार के अपनी उजरत मुआफ करते हुए चले गए.
इसी तरह वह शख्स तीन बार मजदूरों को रखता है मगर हर बार मज़दूर हिम्मत हारके चले जाते हैं.
चौथी बार वह जिस गिरोह को सूरज डूबने से पहले काम पर लगता है, वह काम को पूरा कर देते हैं और साबिका तीनों गिरोहों की पूरी उजरत + अपनी लेकर चले जाते हैं.
मुहहम्मद इस्लाम कुबूल करने वालों को चौथा गिरोह मानते हैं."
*यह मिसाल अपने आप में मुसलमानों को क्या रुतबा देती है कि तीन मेहनत कशों का हक इन्हें मुफ्त मिल गया.?
क्या इनका अल्लाह उस शख्स की तरह है जो तीन गिरोहों की उजरत घोटते को जायज़ समझे और चौथे  को मुफ्त देदे? ये तो बहुत ही नामाकूल अल्लाह है.
मुहम्मद का ज़ेहनी मेयार कुछ यूँ ही था.
मुसलमानों! खुद पर और अपनी नस्लों पर तरस खाओ.
बुखारी १०१०
कुछ लोग सफ़र में थे कि रात हो गई, पास की बस्ती में रुक जाने का फैसला किया. बस्ती पहुँच कर बसती वालों से अपनी मेहमान दारी करने की फ़रमाइश की जिसे बस्ती वालों ने इनकार कर दिया. इत्तिफ़ाक से उस बस्ती के मुख्या को किसी ज़हरीले जानवर ने डंस लिया. वह लोग परेशान हो गए, कोई इलाज काम रहा था. मश्विरह ये हुवा कि चलो बस्ती में टिके मुसाफिरों से दरयाफ्त किया जाए कि उनको शायद कोई मंतर मालूम हो. उनके पास जाकर माजरा बयान किया और पूछा कि आप लोगों के पास कोई मंतर है?
उनमें से एक बोला मंतर तो है मगर उसका मावज़ा अदा करना पड़ेगा, क्योंकि तुम लोगों ने हमारी मेहमानी करने से इंकार कर दिया था. मुआमला बकरयो के एक रेवड़ पर तै हुवा.
मुसाफिर में एक ने कुरान की पहली सूरह 'अल्हम्द' पढना और मुखिया पर दम करना शुरू कर दिया, इत्तेफाक से वह मुखिया ठीक होने लगा और कुछ देर में एकदम ठीक हो गया, गोया उन लोगो को उन्हों ने बकरियों का एक रेवड़ दिया ज़िसको उन लोगों ने आपस में बाँटना चाहा कि उनमें से एक ने कहा चलो रसूल अल्लाह के पास मुआमले को बतलाएं फिर बाटें.
वह लोग मुहम्मद के पास आए और मुआमला बयान किया. इस दिल चस्प वाकिए पर मुहम्मद हँसे और उन से पूंछा कि "तुम को कैसे मालूम हुवा कि 'अल्हम्द' में मंतर छिपा है? कहा, खैर तुम लोग हिस्सा बाँट लो मगर उसमे मेरा हिस्सा भी लगेगा.
*दो बातें सामने आईं कि मुहम्मद अल्हम्द के मुसन्निफ़! हैरत में पड़ गए कि मेरी रचना मंतर का काम भी करती है? उनको लोगों की बेवकूफियों से एक फ़ायदा और भी मिला.
दूसरे यह कि मुहम्मद की नियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जायज़ नाजायज़ मॉल हजम करने में कितने चाक चौबंद थे
उनको क्या कमी थी कि हर मुआमले में अपना माली फ़ायदा ज़रूर देखते थे. आखिर थे तो एक चरवाहे  .
 


जीम. मोमिन 

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