
सात बातों की लिस्ट है मगर छः बातें ही गिना पाए, सातवीं कोई बात मुहम्मद सोच भी नहीं पाए. इन छः कबीले -कद्र बात में ऐसी कोई नहीं जो इंसानी क़दरों में बरतर हों. बल्कि कई हैं जो नाक़द्री हैं. क्या सिर्फ़ मोमिना खातून पर ही इलज़ाम लगाना जायज़ नहीं? मुहम्मद को कोई इस्लामी रुसवाई याद है जिसका तअल्लुक़ आयशा से है.
ऊपर की ख़याली जन्नत की लालच में मुसलमानों की दुन्या पामाल है.
रुवाए ज़माना जिहाद की कितनी कद्र व् मंज़िलत है, इसकी चर्चा हदीस और कुरान में जगह मिलता है . पूरी दुन्या में जिहाद के शैतान हाथ पाँव फैलाए हुए है जिसकी बदनामी मुसलमानों के सर है. क्या कभी मुसलमान इस पर गौर करते हैं.
रसूल की मरगूब गिज़ा जिहाद थी, उसके बाद ही दीगर काम.
इस हदीस में दो बातें छिपी हुई हैं, पहली गवाह है कि मुसलमान माली लालच में ही जिहाद करते थे,कि ईमान उनमें था ही नहीं.दूसरे कि मुहम्मद जंगी मुजरिम साबित होते हैं.अबू सुफियन फ़तेह के एलान पर भी खामोश मुंह छिपाए खड़े रहे.
जीम. मोमिन
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