Wednesday 4 April 2012

Hadeesi Hadse 29




ख़िज्र का ख़िज्र से पहले नाम क्या था ? इसकी जानकारी देना लाज़मी
 था . वैसे ख़िज्र बमानी हरियाली और वनस्पति तो है ही. इस
 रिआयत से हदीस गढ़ना  कहाँ की दानिशमंदी है.यह मुहम्मदी गढ़ंत है


मोसिने इंसानियत के सैकड़ों जुर्म में से यह एक भी एक जुर्म है 
मुहम्मद जिसको चाहते थे मरवा दिया करते थे .

.मुसलमानों यह है आपका अल्लाह . छीकने पर नाक कटता है. इससे जिस कद्र जल्दी हो सके नजात हासिल करें.

इन्हीं हदीसों का असर है कि मुसलमान जहाँ भी है या तो हुकूमतों के बागी है या गद्दार, यहं तक कि मुस्लिम मुमालिक में भी उसका तालमेल हुकूमतों दे नहीं बैठता. 
इस्लाम सिखलाता है कि मुस्लमान गैर मुस्लिमों की कब्रें खोदते रहें, नहीं समझते कि इससे खुद उनकी कब्र भी खुदती रहती है.
हदीस में आयशा का बयान मुहम्मद क़ी फितरत की  तर्जुमानी करता है.
यह हदीस शियों के अली नवाज़ तबके क़ी दिल आजारी करती है, इसी लिए शिया हदीसों को गलाज़त का ढेर कहते है. 

इस दिन मेरा और रसूल का लुआब भी मख्लूत हुवा था ? ? ?
क्या कुरआन में मंतर तक क़ी भी सलाहियत नहीं है? 
मंतर तो काफिरों क़ी ईजाद है, क्या मुहम्मद कुफ्र पर ईमान रखते थे?
मुहम्मद इन्तेहाई दर्जा कमज़ोर इन्सान थे कि कुफ्र को कई जगह सजदा करते देखे जा सकते हैं. संग अस्वाद को चूमते थे जो सरासर बुत परस्ती थी.


जीम. मोमिन 

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