Wednesday 21 March 2012

Hadeesi Hadse 27


सत्तर हज़ार उम्मी मुहम्मद का तकिया कलाम हुवा करता था. हर मुस्लिम कम से कम एक रोज़ा तो अपनी जिंदगी में रखता ही है, ज़ाहिर है कि वह रोज़ा रखता है तो अल्लाह की रज़ा के लिए ही रखता है, इसतरह वह दोज़ख से कोसो दूर हुवा, फिर मुसलमाओं के लिए तो एक ही रोज़ा रखना काफी है, ये हर साल तीस तीस रोज़े खाह मुखाह के हुए.उम्मी की ऐसी जिहालत जगह जगह पर इस्लाम के उसूलों की काट करती है. अब उम्मी को भला जिहालत से कैसे रोका जा सकता है ? 
इस तरह वह शरह और क़ानून केलिए जगह जगह पर वबाल ए जान बने हुए हैं.

ऐसी बातों की मालूमात मुहम्मद को किन ज़राए से हुवा 
करती थीं? क्या अल्लाह उनके कान में कहता था? जिसकी वजाहत उन्हों ने कहीं की नहीं. कुरआन को ज़रूर वह आल्लाह का कलम बनाए हुए है . . . .
तो हदीसों के लिए क्या कहा जाए, सिवाय इसके कि वह मुहम्मद के गढ़े हुए झूट हैं.
जो शख्स इस क़दर झूठा हो वह पैगम्बर कैसे हो सकता है?
मुर्ग और गधे दोनों कुदरत की तखलीक हैं. कोई बरतर और कोई अबतर कैसे होसकता है. पहला इंसानी खुराक के मसले को हल करता है और दूसरा ढुलाई के मसले को.

मुहम्मद की जिहालत का मुजाहिरा भरपूर इस हदीस में है जो एक तरफ शिर्क को बद तरीन गुनाह कहते है तो दूसरी तरफ उसकी बुलंदी बयान करते हैं कि वह शानदार है, अजीमुश्शान है . ओलिमा इसके आगे हकलाने के सिवा कुछ नहीं कर सकते. जब कि मुहम्मद ज़बान दानी के चक्कर में फंसे हुए हैं.

मुहम्मद अपने खली वक़्त में अपनी पैगम्बरी को ऐसी बातें गढ़ गढ़ कर चमकते. इसे इनकी ज़ेहनी अय्याशी कहा जा सकता है. 


जीम. मोमिन 

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