
यह इरशाद भी मुहम्मद ने औरतों के
झुण्ड देख कर ही किया होगा. औरतें आज तक उनकी लगाई हुई बंदिश की पाबन्द हैं. मर्द
तो अपनी शर्म गाह की बेशर्मी का मुजाहिरा करते हैं. खुद मुहम्मद अपनी जोरू माता
खदीजा की मौत के बाद ऐसे आज़ाद हुए कि जैसे छुट्टा सांड.
आगे देखेंगे कि कहते
हैं कोई मेरी जुबान और लिंग पर काबू करा दे तो मै उसको जन्नत की ज़मानत देता हूँ.
जीम. मोमिन
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